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बाराबंकी। हरे-भरे खेतों के बीच दूर से चमकती पॉलीथीन देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है। बाराबंकी जिले के दर्जनों गाँवों में किसान मल्जिंग विधि से मुनाफे की फसल काट रहे हैं।
जिला मुख्यालय से पश्चिम दिशा में करीब 11 किलोमीटर दूर बंकी ब्लॉक के मलूकपुर गाँव के किसान अनिल कुमार (38 वर्ष) ने यहां सबसे पहले मल्चिंग विधि से खेती की शुरूआत की थी। ”जब इसकी शुरुआत की थी तो लोग हंसते थे लेकिन अब दूर-दूर से किसान ये तकनीकी समझने मेरे खेतों पर आते हैं।” अनिल पहले सिर्फ एक एकड़ जमीन पर ही मल्चिंग विधि से खेती करते थे लेकिन अब वो पूरी चार एकड़ जमीन पर मल्चिंग विधि से खेती करने वाले हैं। ”मल्चिंग में शुरुआत में एक बार थोड़ी लागत आती है लेकिन उसके बाद निराई-गुड़ाई और खरपतवार से काफी राहत मिल जाती है। मैंने बीते वर्ष एक एकड़ खरबूजे की फसल से 75 दिन में ही एक लाख का मुनाफा कमाया था।”
अनिल की तरह सफीपुर के पंकज वर्मा (40 वर्ष) भी अपनी डेढ़ एकड़ जमीन पर मल्चिंग विधि से खेती करते हैं। ”मल्चिंग का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसमें सिंचाई का खर्च आधा हो जाता है क्योंकि पानी बूंद-बूंद सिंचाई विधि से लगाया जाता है। फालतू का खरपतवार नहीं होने से खाद की पूरी ताकत फसल को मिलती है इससे पैदावार अच्छी होती है।”
निंदूरा ब्लॉक के पलिया गाँव के ज्योति प्रकाश गुप्ता (56 वर्ष) खरबूज, केला और सब्जियों की खेती करते हैं। वो बताते हैं ”मल्चिंग अपनाने से उनका मुनाफा कई गुना बढ़ गया है। यह तकनीक सब्जियां उगाने वाले किसानों के लिए काफी लाभदायक है।” इसी ब्लॉक के अमसेरुआ गाँव के विसेसर प्रसाद (42 वर्ष) बताते हैं ”मल्चिंग में एक एकड़ में करीब आठ हजार की लागत आती है वहीं ड्रिप सिस्टम पर प्रति एकड़ 40 हजार रुपए का खर्च आता है। ड्रिप विधि पर सरकार 75 फीसदी का अनुदान देती है इसलिए किसान पर बोझ नहीं पड़ता है।” ये विधि छोटे किसानों के लिए फायदेमंद है।
कैसे होती है मल्चिंग
मल्चिंग के लिए खेत को फसल के लिए तैयार करने के बाद तीन-तीन फीट पर खेत में बेड़े बनाते हैं। इसके ऊपर मल्चिंग यानी पॉलीथीन बिछा देते हैं। अब जिस जगह पौधा लगाना होता है वहां छोटा सा छेद कर दिया जाता है। पॉलीथीन के ऊपर सिंचाई के लिए ड्रिप लाइन बिछाई जाती है। ड्रिप लाइन में भी पौधे के पास छेद कर दिया जाता है। इसके चलते एक तो सिंचाई में पानी काफी कम लगता है दूसरे खाद की भी बचत होती है।
फायदा
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