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उमरिया | 01-सितम्बर-2015
जिले में कृषि विभाग एवं वैज्ञानिकों की टीम द्वारा फसलों में लगने वाले कीट बीमारियों के प्रबंधन हेतु ग्राम ताली, धौरखोह, सलैया, रामपुर, बांका, पथरहठा एवं सेमडारी आदि ग्रामों में कृषकों के खेतो मे भ्रमण कर किसानो से सीधे संपर्क किया और फसलों में लगे कीट बीमारियों से का समाधान किया। भ्रमण के दौरान ग्राम ताली के कृषक श्री संत सिंह, श्री हल्कू बैगा, रामपुर के श्री राम कुमार कुशवाहा, श्री नरेश सिंह, करनपुरा के श्री कोदू सिंह, पथरहटा के श्री संतान सिंह, सेमडारी के श्री भूपेन्द्र सिंह इत्यादि कृषकों के खेतों में जाकर दल के सदस्यों ने समस्याओं का निराकरण किया गया। कृषि वैज्ञानिक ने किसानों को फसलवार सुझाव दिये जिसमें धान की फसल मे कहीं-कहीं पर तना छेदक कीट की समस्या देखी गई जिसके नियंत्रण के लिए कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 50% एस.पी.दवा का 2 ग्राम/ली. पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। धान के खेतों में बैक्टीरियल लीक ब्लाइट बीमारी का प्रकोप पाया गया जिसके नियंत्रण के लिए पोटाश का 4 कि.ग्राम/एकड की दर से भुरकाव करें, रोग की उग्रता होने पर कापर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लू.पी. की दर 2ग्राम/ली.पानी में घोल बनाकर स्ट्रेप्टोसायक्लिन 6 ग्रा./एकड की दर से छिडकाव करें।
ग्राम पथरहटा, रामपुर एवं सेमडारी में सोयाबीन एवं उडद की फसल में पीला मोजेंक बीमारी की समस्या पाई गई जिसके नियंत्रण के लिए रोग ग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर खेत से बाहर गढ्ढे में दवा कर नष्ट करें साथ ही इमीडाक्लोप्रिड दवा की 125 मि.लि./हें 0 की दर से 500 ली.पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें। कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा आदिवासी उपयोजना के तहत गर्मी में (अप्रैल प्रथम सप्ताह में) अरहर एवं मूंग की अंतवर्तीय खेती के ग्राम ताली के कृषक श्री हल्कू बैगा के खेत में प्रदर्शन डाला गया भ्रमण दल के सदस्यों ने कृषक की अरहर की अच्छी फसल के लिए बधाई दिये। जिले के किसानों से अपील की जाती है कि इस कृषक के खेत में भ्रमण कर भविष्य में अवश्य इस तकनीक को अपनायें, इस तकनीक में पाला एवं अफलन की संभावना नहीं आयेगी साथ ही अरहर का अत्यधिक उत्पादन आने की संभावना हैं। भ्रमण दल ने अरहर के खेतों में कहीं – कहीं पर स्टेरिलिटी मोजेक बीमारी के बीमारग्रस्त पौधे देखे गये इस बीमारी का प्रमुख लक्ष्ण पत्तियों में छोटे-छोटे पीले धब्बे हो जाते हैं, फसल की वृद्धि रुक जाती हैं एवं पौधा बांझ हो जाता है यानी फलन नहीं होता, इस बीमारी को सफेद मक्खी कीट दूसरे स्वस्थ पौधों में फैलाता है, जिन किसानों के खेतों में यह समस्या पाई जाय उन्हे, रोगग्रस्त पौधों को उखाडकर खेत के बाहर गढ्ढों में दवा कर नष्ट करना चाहिए साथ ही साथ सफेद मक्खी कि नियंत्रण के लिए थायोमेथाक्साम 25% डब्लू.जी. दवा को 100 ग्रा.मात्रा को 500 ली. पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना शामिल है
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