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एक गिलास पानी से एक किलो धान की उपज. सुनकर कौन किसान भाई हैरान नहीं हो जाएगा पर यकीन मानिए अब यह हकीक़त बन चूका है. इस हकीक़त को सच कर दिखलाया है भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, पटना के वैज्ञानिकों ने जिन्होंने नई एरोबिक धान की प्रजाति विकसित की है जो सूखा प्रभावित क्षेत्रों के काफी असरदार होगी. इसके लिए बहुत कम पानी की जरूरत होगी. फ़िलहाल अभी तक तो एक किलो धान उपजाने में तक़रीबन एक हजार लीटर पानी खर्च हो जाता है.
अगले वर्ष से किसानों को यह बीज मिल सकेगा. एरोबिक धान की खेती से किसानों की लागत काफी कम हो जाएगी. एकतरफ जहाँ पानी पर लगने वाले खर्च की बचत होगी वहीँ इसके बीज की सीधे बुआई होने से दो बार होने वाले खर्च से भी बचत होगी और खेत में पानी जमा रखने की जरूरत नहीं होगी. हल्की सिंचाई से ही अच्छा उत्पादन मिलेगा.
इस बीज से तैयार धान को 20 दिनों तक पानी नहीं मिलने पर यह मुरझाएगा नहीं और इसकी फसल 120-125 दिनों में हो जाएगी. सामान्य स्थिति में उपज (प्रति हेक्टेयर) 45 से 55 क्विंटल तो सूखे की स्थिति में 30 से 35 क्विंटल होने की उम्मीद है.
बिहार-झारखंड को अधिक लाभ
बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, एमपी, आंध्र, ओडीशा सहित ऊंचे इलाकों को अगैती खेती से रबी उत्पादन में अधिक लाभ मिलेगा तथा लागत भी कमी आएगी. इससे तैयार चावल लंबा-हल्का सुनहला व स्वाद में बेहतर होगा.
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