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केले की उन्नत खेती कैसे करे!
केला सेहत के लिए बहुत ही अच्छा फल है। इसमें वितमिल के (K) होता है जो की बल्ड प्रेशर के रोगी के लिए दवाई का काम करता है। इसमें कॉलेस्ट्रॉल और सोडियम की मात्र बहूत कम होती है। इसके इलवा ये जोड़ों के दर्द से भी रहत दिलाता है किओकि ये यूरिक एसिड नहीं बनता। इसमें करबोहिदृट्स की मात्र बहुत जियादा होती है। जो की छोटे बच्चों के लिए बहुत ही लाभदायक होता है।
केला आम तौर पे दक्षिण भारत की फसल है। अगर टिशू कल्चर विधि से तैयार ग्रैंड नेंन किस्म के बुटे सही समय पर सर्दी पहले लगा सकते हैं। टिशू कल्चर से पैदा बूटा जल्दी होता है और फल भी जियादा देता है।
ज़मीन कैसी हो ?
केले की कष्ट आम तौर पर साढ़े छेह से साढ़े सात पी एच, की मिट्टी में। जिसमे नमी की ममत्र जियादा हो कर सकते हैं। यह ज़मीन का खरापन साढ़े आठ पी एच, तक सेहन कर सकता है। केले की खेती के लिए मेरा पदारथ भरपूर ज़मीन बहुत ही अच्छी होती है। केले की जड़ जायदा नीचे नहीं होती इस लिए पनि की निकासी होना बहुत जरूरी है।
केले की किस्में :-
पंजाब के लिए ग्रैंड नेंन सीड बहुत ही अच्छा होता है। जिसका बूटा सात से आठ फुट उच्च होता है। इसका एक गुच्छा अठारह से बीस किलो का होता है। फल की मोटाई चौबीस सेंटीमीटर और लम्बाई पेंतीस सेंटीमीटर होती है। जो की बाजार मैं अच्छा मोल देता है।
केला लगने की विधि :- टिशू कल्चर से तैयार तीस सेंटीमीटर के पौधे फरबरी के आखिर और मार्च के स्टार्ट में लगते हैं। इनको छे फुट बए छे फुट में लगन चाहिए। बूटा लगने से पहले दो बाई दो के खड्डे कर लें और N.P.K. (12:32:16) की मात्र से भर दें।
खाद :- केले के बूते को खाद की बहुत जियादा जरूरत पड़ती है। केले को ज़्यादातर न्यट्रोजन और पोटास ततवू से भोजन लेना होता है। पहले चार से छे हफगते में जितने जियादा पत्ते आएंगे उतना ही गुच्छा जियादा बड़ा होगा। पोटाशियम फल जल्दी और जियादा पैदा करने में मद्दद करता है। उत्तरी भारत मैं ये मात्रा नब्बे ग्राम फ़ॉस्फ़ोरस दो सो ग्राम न्यट्रोजन और दो सो ग्राम पोटाशियम प्रति बूटा जरूरी मिलना चाहिए। मार्च महीने में लगे पौधे की खाद इस तरह होनी चाहिए।
फरबरी मार्च प्रति बूटा प्रति ग्राम
यूरिया
डी आ पी। 190
पोटाश
मई प्रति बूटा प्रति ग्राम
यूरिया 60
डी आ पी।
पोटाश 60
जून प्रति बूटा प्रति ग्राम
यूरिया 60
डी आ पी।
पोटाश 60
जुलाई प्रति बूटा प्रति ग्राम
यूरिया 80
डी आ पी।
पोटाश 70
अगस्त प्रति बूटा प्रति ग्राम
यूरिया 80
डी आ पी।
पोटाश 80
समबर प्रति बूटा प्रति ग्राम
यूरिया 80
डी आ पी।
पोटाश ८०
सिंचाई :- केले के बूते को जियादा नमि चाहिए होती है। थोड़ी सी पनि की कमी भी इसकी फसल के अकार को खतरा पैदा करती है। अगर जियादा पनि हो जाये तो तना भी टूट जाता है।
फरबरी मार्च हफ्ते मैं एक बार
मई जून चार से चेह दिन में
जुलाई के बाद बारिश मैं। सात से दस दिन बाद।
दसमब से फरबरी पंद्रह दिन बाद
पौधे का जड़ से फूटना एक गम्भीर समस्या है। अगर ये फुट जाते हैं तो इनकी छटनी करनी चाहिए। सितम्बर तक सर एक ही अच्छा फुटाव वाला पौध रखें।
कांट छंट :- फल के साथ अगर कोई पते लगते हैं या कोई अन्य घास फुस हो तो कटनी जरूरी है।
पौधे की जड़ों में मिट्टी लगते रहना चाहिए। तीन चार महीने के अंतराल पर। दस से बारह इंच मिटटी लगनी चाहिए और फलदार गुच्छों को सहारा भी देना चाहिए इस से फल की गुणवत्ता बानी रहती है।
सर्दिओ से बचाव :- केले का बूटा कोहरा बिलकुल सेहन नहीं कर पाता .केले के फ्लो को सूखे पाटों से या पॉलीथिन से ढके और नीचे को खुल रखें किओंकी फल ने भी बढ़ना होता है। फरबरी मैं पोलयथिीं या पत्ते उतर दें।
अगर केले को सितम्बर में लगाया जाये तो पौधों हो प्रालि या किसी अन्य चीज से कोहरे से बचाव के लिए धक दें।
तुड़वाई :- केले को फल सितम्बर अक्टूबर में आ जाता है। पहले केला तिकोना होता है लेकिन जब ये गोल हो जाये तो समझ लेना की ये तुड़वाई के लिए तैयार है।
एथलीन गैस :-
हरे रंग के तोड़े गए केले को एथलीन गैस से एक सो पी पी म। से चेंबर में जिसका तापमान सोलह से अठारह डिग्री हो में पकाया जाता है। अठारह डिग्री में केला चार दिन तक रह सकता है और बतीस डिग्री मैं ये दो दिन तक रह सकता है।
बीमारयां :-
कीड़े :- तम्बाकू की सूंडी।
तने का गलना
पत्ते और फल का झुलस रोग
इनके लिए टाइम टाइम पर सलाह लेते रहना चाहिए धन्यवाद।
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