श्रीगंगानगर/जयपुर. तैयारी अभी से शुरू कर दीजिए। दिसंबर-जनवरी में 0 से 5 डिग्री की कड़ाके की ठंड में भी फसल को पाला नहीं मारेगा। किसानों को पाले से सब्जियां खराब होने की फिक्र नहीं सताएगी। सब्जियों को चद्दर ओढ़ाकर न केवल उन्हें बचाया जा सकता है, बल्कि परंपरागत तरीके से सब्जी की खेती की तुलना में दो चार गुना तक पैदावार ली जा सकती है। वो भी कम लागत और कम मेहनत में अधिक गुणवत्ता के साथ।
श्रीगंगानगर कृषि अनुसंधान केंद्र के जोनल डायरेक्टर डाॅ.बीएस यादव ने टमाटर, बैंगन, करेला व मिर्च पर इस तकनीक से रिसर्च करके इसे साबित कर दिया है। वैज्ञानिक भाषा में इसे लो-टनल तकनीक कहते हैं। डाॅ.यादव ने इन चारों ही फसलों पर ट्रायल किया। 15 फरवरी के आसपास चद्दर उतारी। मार्च में उत्पादन लेना शुरू कर दिया। उत्पादन के जो आंकड़े आए, वो वाकई चौंकाने वाले थे।
श्रीगंगानगर के कृषि अनुसंधान केंद्र में टमाटर, करेला, बैंगन व मिर्च पर लो-टनल तकनीक से उत्पादन, पानी भी बचा
उपज के परिणाम
फसल अनुसंधान केंद्र आम खेत में
टमाटर 750 350
मिर्च 400 180
बैंगन 856 400
करेला 400 200
(आंकड़े क्विंटल में प्रति हैक्टेयर)
यूं हुई लो-टनल की शुरुआत
डॉ. यादव 2007 में नई दिल्ली वाटर टेक्नाेलॉजी सेंटर गए थे। वहां उन्होंने लो टनल टेक्निक से सब्जियों की पैदावार कार्यक्रम में जानकारी जुटाई। यहां एआरएस में काम शुरू किया। शुरुआत 2008 में बैंगन की सब्जी से की। तकनीक सफल हुई तो टमाटर, मिर्च एवं करेले की फसल पर भी यही प्रयोग हुआ।
अभी शुरू करें तैयारी
यह तकनीक अपनाने के लिए आज से ही तैयारी करनी होगी। इसके लिए सरिए एवं पॉलीथीन खरीदने का काम अभी करना होगा। सरियों को अर्ध चंद्राकार में मुड़वाना होगा। खेत की जुताई करना, जैविक खाद का छिड़काव करना और फिर पौध लगाने के लिए तैयारी करनी होगी। तभी लो टनल तकनीक से बेहतर उत्पादन ले सकेंगे।