उर्वरकों का प्रयोग :- उर्वरकों से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए उनका सही चयन व प्रयोग विधि एक आवश्यक कदम है।
नाईट्रोजन वाले उर्वरक :- अधिकतर नाईट्रोजन यूरिया के रूप में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। यूरिया नाइट्रोजन का एक अच्छा स्त्रोत है, जो , अधिकतर हर प्रकार की भूमि में व फसलों में उपयोग किया जाता है। गंधक (सल्फर) की कमी वाले क्षेत्रों में अमोनियम सल्फेट अधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है, जबकि असिंचित क्षेत्रों में किसान खाद एक लाभदायक उर्वरक है।
फास्फोरस वाले उर्वरक :- अधिकतार फास्फोरसधारी उर्वरक पानी में घुलनशील है जैसे सिंगल सुपर फास्फेट (एस. एस.पी.), डाई अमोनियम फास्फेट (डी.ए.पी.) आदि जो फसलों की आवश्यकता व कीमत के आधार पर चुने जा सकते हैं। अम्लीय भूमि में रॉक फास्फेट, गंधक की कमी वाली भूमि में सिंगल सुपर फास्फेट सल्फेट (ए. पी.एस) का प्रयोग लाभदायक होता है।
पोटाश वाले उर्वरक :- पोटाशियम क्लोराईड (एम.ओ. पी.) एक अच्छा स्त्रोत है, जो अधिकांश भूमि में सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है, परन्तु जो फसलें क्लोरीन को नहीं सह पाती जैसे तम्बाकू, आलू, कुछ फल वृक्ष आदि उनके लिए पोटाशियम सल्फेट (एस.ओ. पी. ) उपयुक्त रहता है, परन्तु यह पोटाशियम क्लोराईड से महंगा है। इसलिए जिन फसलों में गुणवत्ता का विशेष महत्व है उसे वहां ही प्रयोग करना चाहिए।
गंधक वाले उर्वरक :- गंधक की आवश्यकता जिप्सम, सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम, सल्फेट, सल्फेट ऑफ पोटाश से पूरी की जा सकती है।
सूक्ष्म पोषक तत्वों का चयन :- जिंक के लिए जिंक सल्फेट, लोहे के लिए फैरस सल्फेट, तांबे के लिए कॉपर सल्फेट, मैगनीज के लिए मैगनीज सल्फेट प्रयोग करें। बोरॉन के लिए बोरेक्स व मोलिबिडनम के लिए अमोनियम मोलिबिडेट का प्रयोग करें।
उर्वरक प्रयोग की विधि :- उर्वरक चयन करने के बाद उसका सही समय पर प्रयोग आवश्यक होता है। उर्वरक का प्रयोग तीन प्रकार से किया जाता है।
1. भूमि में प्रयोग ।
2. खड़ी फसल में प्रयोग
3. फसल पर छिड़काव
1. भूमि में प्रयोग - इस विधि में उर्वरक बुवाई के समय ड्रिल या पोरे द्वारा दिया जाता है। यदि किसान के पास कोई यंत्र नहीं है तो वह उर्वरक को हाथ से आखिरी जुताई से पहले बिखेर ( छिट्टा लगाना) सकता है। उर्वरक को भूमि की सतह पर न छोड़ें और अच्छी मिट्टी में मिला दें।
2. खड़ी फसल में प्रयोग :- खड़ी फसल में उर्वरक ऊपर से (छोटी फसल में) या पौधे की कतारों के बीच में हाथ से बिखेरा जाता है। उर्वरक को गुड़ाई द्वारा भूमि में मिलाया जाता है या हल्की सिंचाई की जाती है।
उर्वरक देने का उपयुक्त समय :- उर्वरक का प्रयोग बुवाई के समय और खड़ी फसल में किया जाता है। किसी भी फसल की भरपूर पैदावार के लिए आवश्यक है कि प्रारंभ से ही पौधों की अच्छी बढ़वार हो। जिसके लिए बुवाई के समय 1/2 या 1/3 भाग नाईट्रोजन खाद, पूरी फास्फोरस, पोटाश जिंक व गंधक की मात्रा खेत में डालें। नाईटोजन की बीज अंकुरण के समय कम मात्रा में आवश्यकता होती है, परन्तु बढ़ोत्तरी व फल-फूल आने के समय अधिक आवश्यकता होती है, साथ ही नाईट्रोजन खाद का आधा भाग बुवाई के पूर्व और शेष आधा दो या तीन बार में खड़ी फसल में देना चाहिए।
फास्फोरस जड़, बाली और दानों के लिए आवश्यक है, जिसे पौधा उपयुक्त मात्रा में अपने बढ़वार के समय लेता है। यह नाईट्रोजन की तरह जमीन में कम चलायमान नहीं होता, इसलिए इसकी पूरी मात्रा बुवाई से पहले देनी आवश्यक है। खड़ी फसल में फास्फोरस की कमी दूर करना असंभव है। क्षारीय तथा उदासीन भूमि में घुलनशील फास्फोरस जैसे सुपरफास्फेट का प्रयोग करें। पोटाश पौधे का प्रयोग प्रारंभ से अंत तक करता है और बढ़वार की अवस्था में पोटाश का उपयोग नाईट्रोजन व फास्फोरस की अपेक्षा अधिक करता है और यह भूमि में कम चलायमान है अतः पोटाश का भी प्रयोग बुवाई से पूर्व करें। जिंक की कमी के क्षेत्रों में बुवाई से पूर्व जिंक सल्फेट डाल देना चाहिए। खड़ी फसलों में शेष नाईट्रोजन पौधों में फुटाव के समय और फूल आने से पूर्व दिया जाना लाभदायक होता है
उर्वरक डालने का तरीका :- नाईट्रोजन वाले उर्वरकों को छिड़क कर या पोर कर देना चाहिए। यदि उर्वरक यूरिया है तो छिड़कने के बाद सुहागा लगा देना चाहिए। यदि उर्वरक मिट्टी की परत से ढक जाये अन्यथा इसे मिट्टी में पोर देना चाहिए। फास्फोरस और पोटाश वाले उर्वरकों को जमीन में 7 से 10 से.मी. (3-4 इंच ) की गहराई पर बुवाई से पहले पोर देना चाहिए ताकि मिट्टी के कणों के साथ कम संपर्क में आये, भूमि में बंध नहीं पाए और पौधों की जड़ों को आसानी से उपलब्ध हो। जिंक की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व अथवा बुवाई के समय पोर देनी चाहिए।
खड़ी फसलों में नाईट्रोजन दो बार छिड़का जाता है। भारी भूमि में सिंचाई से पहले तथा हल्की भूमि में सिंचाई के बाद, छिड़क कर हल्की गोड़ी कर देनी चाहिए, जिससे वाष्पीकरण द्वारा उर्वरक का नुक्सान न हो। सुबह के सयम जब फसल पर ओस पड़ी हो या पत्ते गीले हों, उस समय नाईट्रोजन खाद फसल पर न छिड़कें अन्यथा फसल के झुलसने का डर रहता है। नाईट्रोजन की खाद को हवा में खुला न छोड़ें। बारानी क्षेत्रों में नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व जिंक उर्वरकों की पूरी मात्रा बुबाई से पूर्व खेत में पोर देनी चाहिए। जिन खेतों में नमी कम हो उनमें नियमित मात्रा में ही उर्वरकों का प्रयोग करें। अगर बारानी फसल में नाईट्रोजन की कमी के लक्षण दिखाई दें तो 2.5 प्रतिशत यूरिया (2.5 कि.ग्रा. यूरिया प्रति 100 लीटर पानी में) के घोल के रूप में दो या तीन बार पौधे के फुटाव के समय या फूल आने से पूर्व छिड़क देना चाहिए।
उर्वरकों के प्रयोग के लिए कुछ विशेष ध्यान देने योग्य बातें -
1. पोषक तत्वों को मिट्टी परीक्षण पर आधारित संतुलित मात्रा में दें।
2. खाद को उचित समय व उचित तरीके में दें।
3. बीज व खाद को साथ न मिलायें।
4. खड़ी फसल में नाईट्रोजन उर्वरक देने के बाद खुला न छोड़े और तुरन्त हल्की गुड़ाई करें।
5. जब फसल पर ओस पड़ी हो तो नाईट्रोजन खाद न डालें।
प्रमोद कुमार यादव, मुकेश कुमार जाट एवं आभा टिक्कू
मृदा विज्ञान विभाग क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, बावल
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार