प्राचीन काल से ही तुलसी एक पवित्र पौधा है जिसे घर-घर में लगाकर पूजा की जाती है। तुलसी का आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान है। तुलसी से कई रोगों का इलाज किया जाता है। रोजाना इसका सेवन करने से कई तरह की बीमारियों से राहत मिलती है। वर्तमान में इसकी खेती औषधीय रूप में की जा रही है। यह पौधा पूरे भारत में पाया जाता है, किसान चाहें तो इसकी खेती कर मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। तुलसी की जरूरत औषधीय के साथ-साथ सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली सभी कंपनियों को होती है। सौंदर्य प्रसाधनों के अलग-अलग रासायनिक संघटन के कारण बाजार में उनके तेल की कीमत अलग-अलग होती है।
विश्व बाजार में विभिन्न प्रकार के तुलसी के तेल की कीमत 2000 से 8000 किलोग्राम है। तुलसी की ओसिमम बेसिलिकम प्रजाति तेल उत्पादन के लिए उगाई जाती है। तुलसी की इस प्रजाति की भारत में बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।
तुलसी में अद्भुत उपचार शक्ति होती है। खासकर यह सर्दी, खांसी और बुखार में अचूक औषधि का काम करता है। भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है कि तुलसी स्वाद में कड़वी और तीखी, हृदय के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में लाभकारी, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली और मूत्र संबंधी रोगों को दूर करने वाली होती है। यह कफ और वात संबंधित रोगों को भी दूर करता है।
तुलसी की सफल खेती करने का तरीका
तुलसी के पौधे को खेत में लगाने का सबसे अच्छा समय जुलाई है। सामान्य पौधों को 60 x 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। पौधों को लगाने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई आवश्यक है।
मिट्टी और जलवायु
इसकी खेती कम उपजाऊ भूमि में अच्छी होती है, जिसमें जल निकासी का समुचित प्रबंध हो। इसके लिए बलुई दोमट भूमि बहुत उपयुक्त होती है। इसके लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों जलवायु उपयुक्त हैं।
बुवाई / रोपाई
इसकी खेती बीज द्वारा की जाती है लेकिन बीज को सीधे खेत में नहीं बोना चाहिए। पहले इसकी नर्सरी तैयार कर लेनी चाहिए और बाद में इसकी रोपाई करनी चाहिए।
पौधे तैयार करने का तरीका
15-20 सें.मी. गहरी खुदाई करके खरपतवार आदि निकालकर खेत तैयार करना चाहिए।15 टन प्रति है. की दर से गोबर की सड़ी खाद अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। 1x 1 मी. आकार की भूमि की सतह से उभरी हुई क्यारियां बनाकर 20 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा इतना ही पोटाश प्रति हैक्टर की दर से मिला देना चाहिए। एक हेक्टेयर खेत के लिए 750 ग्राम-1 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। बालू या बालू को 1:10 के अनुपात में मिलाकर 8-10 सें.मी. की दूरी पर पंक्तियों में करना चाहिए। बीज की गहराई अधिक नहीं होनी चाहिए। जमाव के 15-20 दिनों बाद 20 कि. ग्रा./है. की दर से नाइट्रोजन डालना उपयोगी होता है। पौधे पांच-छह सप्ताह में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
रोपाई का तरीका
रोपाई हमेशा शुष्क मौसम में दोपहर के बाद करनी चाहिए। रोपाई के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए। बादल छाए रहने वाले या हल्की बारिश वाले दिन रोपण के लिए बहुत उपयुक्त होते हैं। इसकी रोपाई कतार से कतार की दूरी 60 सें. मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सें. मी. की दूरी पर करना चाहिए।
सिंचाई
यदि वर्षा ऋतु में वर्षा होती रहे तो सितम्बर तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बाद सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है।
खरपतवार नियंत्रण
इसकी पहली निराई रोपाई के एक महीने बाद करनी चाहिए। पहली निराई के 3-4 सप्ताह बाद दूसरी निराई करनी चाहिए। बड़े क्षेत्रों में ट्रैक्टर द्वारा गुड़ाई की जा सकती है।
खाद और उर्वरक
इसके लिए गोबर की खाद 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में डालना चाहिए। इसके अलावा 75-80 किग्रा नत्रजन, 40-40 किग्रा फास्फोरस व पोटाश की आवश्यकता होती है। रोपाई से पूर्व एक तिहाई नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत में डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा खड़ी फसल में दो खुराक में देना चाहिए।
फसल की कटाई
जब पौधे में पूर्ण रूप से फूल आ जाएं और निचली पत्तियां पीली पड़ने लगें तब इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। रोपाई के 10-12 सप्ताह बाद यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है। बोआई के 90-95 दिन बाद फसल पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। पत्ती उत्पादन के लिए पत्तियों को फूल आने की प्रारंभिक अवस्था में तोड़ा जाता है। फसल को जमीनी स्तर पर इस तरह से काटा जाता है कि शाखाओं के कटने के बाद तने फिर से उग आते हैं। जब पौधों की पत्तियाँ हरी होने लगे तब दिन में अच्छी धूप देखकर ही उनकी कटाई शुरू कर देनी चाहिए। सही समय पर कटाई करना आवश्यक है, अन्यथा यह तेल की मात्रा को प्रभावित करेगा। पौधे पर फूल आने से तेल की मात्रा भी कम हो जाती है। जब पौधे पर फूल आने लगें तो उसकी कटाई शुरू कर देनी चाहिए। इसके अलावा नई टहनियां जल्दी आती हैं इसलिए कटाई 15 से 20 सेमी ऊंचाई से करनी चाहिए।
आसवन
तुलसी का तेल पूरे पौधे के आसवन से प्राप्त होता है। इसका आसवन, जल तथा वाष्प आसवन, दोनों विधि से किया जा सकता है। लेकिन वाष्प आसवन सबसे ज्यादा उपयुक्त होता है। कटाई के बाद 4-5 घंटे छोड़ देना चाहिए। इससे आसवन में सुविधा होती है।
उपज
इस फसल की औसत उपज 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा तेल उपज 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक होती है।
अनुमानित व्यय और कमाई
खेत में 10 से 15 हजार तक खाद की लागत लगेगी। एक सीजन में इसकी 8 क्विंटल तक उपज होती है। मंडी में 8 से 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल के भाव तक तुलसी के बीज बिक जाते हैं। वहीं इससे प्राप्त सूखी पत्तियों को प्रतिष्ठित औषधीय कंपनियां 7000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीद लेती हैं। आप इसके सूखे पत्तों को सीधे बाजार में बेच सकते हैं या खेती के सामान को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग दवा कंपनियों या एजेंसियों के जरिए बेच सकते हैं।
स्त्रोत :- ICAR फल-फूल