Til ki kheti: हर किसान खेती से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहता है, लेकिन यह तभी संभव है जब खेती अलग तरीके से की जाए। आज भी अधिकांश किसान धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों की खेती कर रहे हैं। ऐसी खेती में मुनाफा अन्य फसलों की तुलना में कम होता है। वहीं अगर आप इससे कुछ अलग खेती करते हैं तो आपको बंपर मुनाफा हो सकता है। ऐसी ही एक खेती है तिल की खेती, जिससे किसान मोटी कमाई कर सकते हैं।
देश में बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों का आयात किया जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में तिलहन मिशन कार्यक्रम के कारण तिलहन उत्पादन में वृद्धि हुई है। तिलहनी फसलों में तिल का अपना ही महत्व है। यह राजस्थान की प्रमुख ख़रीफ़ तिलहनी फसल है और राज्य में लगभग 4-5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है।
गर्मियों में तिल की खेती करना बहुत आसान है। कम लागत में अधिक मुनाफा पाने के लिए किसान गर्मियों में तिल की बुआई कर सकते हैं। तिल का उत्पादन वर्षा ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में अधिक होता है। ग्रीष्म ऋतु में कीट एवं रोगों का प्रकोप बहुत कम होता है, जिससे फसल अच्छी होती है।
तिल की उन्नत किस्में
अगर आप तिल की खेती करना चाहते हैं तो इसकी उन्नत किस्में आपको बेहतर पैदावार के साथ अधिक मुनाफा दे सकती हैं। तिल की उन्नत किस्में- आर.टी. 46, आर.टी. 125, आर.टी. 127, आर.टी. 346, आर.टी. 351 हैं। ये किस्में 78 से 85 दिनों में पक जाती हैं। इससे प्रति हेक्टेयर 700 से 800 किलोग्राम बीज प्राप्त किया जा सकता है। इसमें तेल की मात्रा 43 से 52 प्रतिशत होती है।
गर्मी के मौसम में किसान इसकी बुआई फरवरी माह में कर सकते हैं। गर्मी के मौसम में तिल की इन किस्मों की खेती करने से अधिक पैदावार मिलेगी। टी.के.जी. 21 किस्म 80 से 85 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर लगभग 6 से 8 टन उपज देती है। इसके अलावा टी.के.जी. 22, जे.टी. 7, 81,27 आदि का भी उपयोग किया जा सकता है। ये किस्में 75 से 85 दिन में तैयार हो जाती हैं और 30 से 35 दिन में फूल भी आने लगते हैं। इन किस्मों की प्रति हेक्टेयर उपज 8-10 टन है।
खेती की तैयारी कैसे करें?
अधिक खरपतवार वाली भूमि के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करें। मानसून की पहली बारिश होते ही खेत की 1-2 बार जुताई करके भूमि तैयार कर लें। 3 वर्ष में एक बार प्रति हेक्टेयर 20-25 टन गोबर की खाद का प्रयोग करें।
बीज की बुआई एवं बीजोपचार
तिल की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 2-2.5 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें। तिल की बुआई मानसून की पहली बारिश के बाद जुलाई के पहले सप्ताह में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी पर करें। बुआई से पहले बीज को 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम + 2 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कैप्टान या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। बैक्टीरियल ब्लाइट से बचाव के लिए बीजों को 10 लीटर पानी में 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के घोल से 2 घंटे तक उपचारित करें तथा बीजों को छाया में सुखाने के बाद ही बोयें। तिल को कीटों से बचाने के लिए बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूयूएस 7.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर बोयें।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
आईसीआरएस के मुताबिक नमी की कमी होने पर फलियों में दाना बनने की अवस्था में ही सिंचाई करें। बुआई के 20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकाल दें। यदि तिल की नई अवस्था में निराई-गुड़ाई करना संभव न हो तो बुआई से पहले एलाक्लोर 2 किलोग्राम दाना या 1.5 लीटर तरल पदार्थ प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। इसके बाद हर 30 दिन में एक निराई-गुड़ाई करें।
जैविक समाधान
तिल में जैविक कीट प्रबंधन के लिए बुआई से पहले 8 टन सड़ी हुई खाद और 250 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर डालें. बीज को मित्र कवक ट्राइकोडर्मा विराइड 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बोयें। इस फफूंद को 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद को बीज के साथ मिलाकर मिट्टी में डालें। खड़ी फसलों में कीट एवं रोगों के नियंत्रण के लिए नीम आधारित कीटनाशक (एजाडिरेक्टिन 3 मिली प्रति लीटर) का 30-40 दिन एवं 45-55 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें।
तिल पर पित्त मक्खी, आर्मीवर्म, हॉकमोथ, फड़का, झुलसा व अंगमारी, पत्ती और फली छेदक, पत्ती धब्बा आदि बीमारियों और कीड़ों का हमला होता है। किसानों को इनसे खुद को बचाने के उपाय करने चाहिए।
कटाई एवं भंडारण
फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब पौधों की पत्तियाँ पीली होकर गिरने लगें तथा नीचे की फलियाँ पक जाएँ, ताकि बीज गिरने न लगें। फसल को काटकर सीधे खेत या खलिहान में रखना चाहिए।