Tomato Farming: हमारे देश में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की सब्जियों में टमाटर का स्थान प्रमुख है। यह लोगो के भोजन का प्रमुख हिस्सा होने के साथ-साथ किसानों की आय का प्रमुख स्त्रोत बना चुका है। वर्तमान में टमाटर की कीमतों को देखते हुए इसके स्वस्थ उत्पाद प्राप्त करना अति महत्वपूर्ण हो गया है।
अधिकांश तह टमाटर फसल के उत्पाद में कमी का प्रमुख कारण कीट, रोग एवं सूत्रक्रमियों का आक्रमण हैं जिसके कारण उत्पाद का अधिकांश हिस्सा (30 से 35 प्रतिशत) इन व्याधियों से नष्ट हो जाता हैं।
टमाटर मुलायम एवं नर्म फसल होने के कारण इस पर रोग एवं कीटों का आक्रमण अधिक होता है जिसमे वातावरण की नमी उर्वरकों का अधिक प्रयोग रोग एवं कीटों के आक्रमण को और अधिक बड़ा देता हैं।
वर्तमान समय में बढ़ते कीटनाशकों एवं फफूंदनाशकों के प्रयोग से कीटों और रोगों में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर दी है जिसके परिणाम स्वरूप इनका नियंत्रण और अधिक जटिल हो गया है।
इन नशीजीवों के प्रकोप की रोकथाम हेतु इस फसल पर किसानों द्वारा जहरीले कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग करने के कारण विषैले कीटनाशकों का समावेश इस सब्जी के खाए जाने वाले भाग में हो जाने से उपभोक्ताओं के स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव तो पड़ता ही हैं साथ-साथ निर्यात गुणवता भी प्रभावित होती हैं।
इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कीट एवं रोगों के उचित नियंत्रण हेतु लेख प्रस्तुत है।
फल छेदक
इसके अंडे पीलापन लिए हुए सफेद रंग के धारीदार होते हैं, पूर्ण विकाशित सुंडिया हल्का पीला रंग युक्त एवं धारिया किनारे पर टूटी हुई होती है। यह सुंडिया टमाटर फल के अंदर छेद कर घुस जाती है और अंदर से फल को नष्ट कर देती है।
मिली बग
यह पत्तियों एवं तना की बाहरी त्वचा में छेद कर रस चूसती रहती है। अर्भक मधुरस कल त्याग करती रहती हैं जो की फफूंद को विकसित करता है। जिसकी वजह से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती हैं जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है।
सफेद मक्खी
इसके शिशु व वयस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं इस कीट व्याधियों से ग्राषित पतियां अंदर की ओर गुड़ जाती है।
थ्रिप्स
यह कीट आकार में बहुत छोटे होते हैं जो पत्तियों पर पाए जाते हैं। यह कीट अपने अंडे उतको के भीतर देता हैं शिशु तथा व्यस्क दोनो पत्तियों के ऊतकों में प्रवेश कर उनका रस चूसते रहते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप पत्तिया अंदर की ओर मुड़ जाती है। जिस पौधे पर इस कीट का आक्रमण होता है। उसकी बढ़वार रुक जाती है, पत्तियां झड़ जाती हैं, और नई कालिकाए काली पड़ कर गिर जाती है।
प्रमुख माईट्स
लाल मकड़ी माइट्सल:- माइट्स पत्तियों की निचली सतह एवं सतह से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां धीरे-धीरे लाल एवम भूरे रंग में परिवर्तित हो जाती हैं और अंत में सुख जाती हैं। ग्रीष्म ऋतु में इसकी वृद्धि अधिक होती है।
अगेती झुलसा (अर्ली ब्लाइट)
अगेती झुलसा जो की मुख्यरूप से (अल्टरनेरिया सोलेनाई) फफूंद द्वारा होता है। इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों में गोलाकार वलय के रूप में धब्बे दिखाई देते हैं तथा इसी प्रकार के लक्षण फल पर भी दिखाई देते हैं, जो सामान्य से बडकर सम्पूर्ण फल को खराब कर देते हैं।
पछेती झुलसा लेट ब्लाइट

आलू का पछेती झुलसा रोग आलू की फसल में लगने वाला यह विनाशकारी रोग (फाइटापथोरा इनफेस्टैन्स) नामक कवक की वजह से होता है। इस रोग का सर्वप्रथम लक्षण भूमि के समीप वाली पत्तियों पर पौधों में फूल आने के समय अथवा अनुकूल वातावरण मिलने पर कभी भी प्रकट हो सकते हैं। यदि रोग के लक्षण कि बात की जाए तो प्रभावित पत्तियों पर वृत्ताकार अथवा अनियमित आकार के हल्के पीले या हरे रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होते हैं। यह धब्बे पत्तियों के ऊपरी सिरो या किनारों से बनना आरंभ होते हुए पत्तियों के मध्य भाग की ओर बढ़ते हुए बनते हैं। नम मौसम मिलने पर यह शीघ्रता से फैल कर भूरे रंग के मृत धब्बों के रूप में विकसित हो जाते हैं और पत्तियां सहित पूरे के पूरे पौधों को अपने गिरफ्त मे ले लेते हैं। यदि मौसम लगातार नम बना रहता है और वातावरण में बदली एवं हल्की बूंदाबांदी होती रहती है तो पौधे के सभी कोमल भाग एक से चार दिनों के अन्दर ही सड़ कर मर जाते हैं। इसके साथ ही साथ उनमें से एक विशेष प्रकार का दुर्गंध भी आने लगता है। मौसम शुष्क होने की दशा में यह रोग प्रभावित पत्तियों पर थोड़े से कत्थई रंग के धब्बे ही बन कर रह जाते हैं तथा यह क्षेत्र कुछ कड़े हो कर सिकुड़ जाते हैं।
पर्ण कुंचन (लीफ कर्ल)
यह रोग मुख्यतः सफेद मक्खी कीट द्वारा प्रसारित होती हैं। इससे ग्रसित पौधों में पत्तियां गुड़ जाती हैं तथा फूल एवम फल छोटे व कम संख्या में बनते । इस रोग से ग्राशित टहनियों का आकार छोटा होने से पौधे भी छोटे रह जाते हैं। पुरानी पत्तियों के किनारे मोटे एवम अंदर की ओर मुड़े हुए दिखाई देते हैं।
सनस्काल्ड
ग्रीम एवं सूखे मौसम में टमाटर के फलों का अचानक मुरझाना तेज धूप में सीधे सूर्य की रोशनी में आने के कारण होता है जिसमे सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने वाला भाग सफेद एवम पीले फफोले युक्त धब्बे प्रकट हो जाते हैं।
समन्वित नाशीजीव एवम रोग प्रबंधन
- अच्छी जल निकासी की व्यवस्था जड़ सड़न रोग से बचाव हेतु नर्सरी हमेशा जमीन से 10 सेमी ऊँची क्यारी बनाकर बुवाई करना चाहिए।
- नर्सरी की बुवाई से पहले मिट्टी को 0.45 मिमी मोटी पॉलिथीन की शीट से ढककर मिट्टी का सूर्य तपीकरण करना चाहिए। जिससे मिट्टी में उपस्थित रोगजनक एवम कीटों के नियंत्रण में सहायता मिलती है। इसके साथ साथ नमी का भी संचय होता है।
- नर्सरी के दौरान रोगों के नियंत्रण हेतु ट्राईकोडर्मा विरिंडी की 250 ग्राम मात्रा को अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर एक सप्ताह तक छोड़ दें। उसके पश्चात इसे 3 वर्ग मीटर की क्यारी में मिला दें। इसके साथ साथ ट्राईकोडर्मा विरिडी एवं स्यूडोमोनारा इन्फालॉरेसेस द्वारा 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम की दर से बीज सोधन करना चाहिए।
- पत्ती मोड़क के प्रबंधन हेतु 0.40 मिमी मोती नायलॉन की जाली इस्तेमाल करना चाहिए।
- अगेती तथा पछेटी झुलसा के नियंत्रण हेतु मैकोजेब + कैबेंडाजिम / 0.25 प्रतिशत की दर से करना चाहिए।
- इसका नियंत्रण नीम ऑयल तथा यूकेलिप्टस ऑयल 0.15 प्रतिशत की दर से उपयोग कर सकते हैं।
- इसके साथ आर्द्र गलन के नियंत्रण हेतु कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 0.3 प्रतिशत की दर से उपयोग किया जा सकता है।
- पर्णकुंचन रोग से बचाव हेतु टमाटर पौध रोपण से पूर्व 0.03 प्रतिशत इमिडेक्लोप्रिड 17.5 एसएसएल के गोल में 15 मिनट तक उपचारित कर रोपाई की जा सकती हैं।
- सूत्रक्रमियों के प्रकोप को कम करने हेतु 250 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर नीम की खली भूमि में मिलाकर उपयोग करना लाभदायक होता है।
- कीट नियंत्रण हेतु परिजीवी पक्षियों के बैठने हेतु 10 स्टैंड प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में लगाना चाहिए।
- टमाटर की पौध के रोपने के 15 दिन के पश्चात् पर्णसुरंग तथा सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु ईमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें। इसके नियंत्रण हेतु नीम ऑयल 5 प्रतिशत की दर से भी उपयोग किया जा सकता है।
- फल भेदक की निगरानी हेतु खेत में गंध पाश 5/हैक्टेयर के हिसाब से लगाए तथा 15 से 20 दिन के अंतराल से इसे बदलते रहना चाहिए। फल बेधक की निगरानी हेतु पौधे के शीर्ष पर इसके अंडो की निगरानी करें। अंडे का परिजीवि ट्राईकोग्रामा किलोनिस को एक लाख प्रति हैक्टेयर की दर से एक सप्ताह के अंतराल से पौधे पर फूल आरंभ होने की दशा में 4 से 5 बार छोड़े।
- टमाटर के पौधे रोपने के 28-35-45 दिनों बाद एच ए एन पी वी 250 एल ई का छिडकव फल भेदक के नियंत्रण हेतु करे।
- फल भेदक ग्रसित फलों को तोड़कर नष्ट कर दें तथा इसके नियंत्रण हेतु रायनाएक्जापर 20 ई सी 0.5 प्रतिशत की दर से उपयोग किया जा सकता है।