डॉ. एस.के .सिंह
प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक( प्लांट पैथोलॉजी), एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा , समस्तीपुर बिहार
टमाटर की खेती पूरे देश में सफलतापूर्वक की जा रही है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार में जाड़ों का मौसम टमाटर के लिए बहुत ही अनुकूल है। जाड़ों में टमाटर की सबसे बड़ी समस्या पाला है। टमाटर की खेती हेतु आदर्श तापमान 20 से 28 डिग्री से.ग्रे. है। 20-25 डिग्री से.ग्रे तापक्रम पर टमाटर में लाल रंग का पिगमेंट सबसे अच्छा विकसित होता है, जिसकी वजह से जाड़ों में टमाटर के फल मीठे और गहरे लाल रंग के होते हैं। तापमान 40 डिग्री से.ग्रे से अधिक होने पर अपरिपक्व फल एवं फूल गिर जाते हैं। उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि जिसमे पर्याप्त मात्रा मे जीवांश (ऑर्गेनिक मैटर) उपलब्ध हो।
टमाटर की उन्नत किस्में (Advanced Varieties of tomatoes)
अगर हम टमाटर की उन्नत किस्मों की बात करें तो इसमें कई किस्में आती है, जैसे - अर्का सौरभ, अर्का विकास, ए आर टी एच 3, ए आर टी एच 4, अविनाश 2, बी एस एस 90, को. 3, एच एस 101, एच एम 102, एच एस 110, सिलेक्शन 12, हिसार अनमोल (एच 24 ), हिसार अनमोल (एच 24 ) हिसार अरुण (सिलेक्शन 7), हिसार लालिमा (सिलेक्शन 7 ), हिसार लालिमा (सिलेक्शन 18 ), हिसार ललित (एन टी 8 ) कृष्णा, के एस 2, मतरी, एम.टी एच 6 ), एन ए 601, नवीन, पूसा 120, पंजाब छुहारा (ई सी 55055 X पंजाब ट्रोपिक), पंत बहार, पूसा दिव्या, पूसा गौरव, पूसा संकर 1, पूसा संकर 2, पूसा संकर 4, पूसा रुबी, पूसा शीतल, पूसा उपहार, रजनी, रश्मी, रत्न, रोमा और रुपाली आदि।
बीज की मात्रा और बुवाई
एक हेक्टयेर क्षेत्र में फसल उगाने के लिए नर्सरी तैयार करने हेतु लगभग 300 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। संकर किस्मों के लिए बीज की मात्रा 150-200 ग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहती है। जाड़ों में टमाटर की खेती के लिए आवश्यक है की नर्सरी सितंबर अक्टूबर में उगाई जाय। बुवाई पूर्व थाइरम/मेटालाक्सिल + मैनकोजेब मिश्रित फफुंदनाशक से बीजोपचार अवश्य करें ताकि अंकुरण पूर्व फफून्द का आक्रमण रोका जा सके। नर्सरी मे बुवाई हेतु 1X 3 मी. की ऊठी हुई क्यारियां बनाकर फॉर्मल्डिहाइड द्वारा स्टरलाइजेशन कर लें अथवा कार्बोफ्यूरान 30 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से मिलावें। बीजों को बीज कार्बेन्डाजिम/ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित कर 5 से.मी. की दूरी रखते हुये कतारों में बीजों की बुवाई करें। बीज बोने के बाद गोबर की खूब अच्छी तरह से सड़ी खाद या बारीक मिट्टी से ढक दें एवं फौबारे से पानी का छिड़काव करें। बीज उगने के बाद डायथेन एम-45/मेटालाक्सिल + मैनकोजेब मिश्रित फफुंदनाशक से छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर करना चाहिए, 25 से 30 दिन का सीडलिंग खेतों में रोपाई से पूर्व कार्बेन्डिजिम @1.5 ग्राम/लीटर या ट्राईटोडर्मा @10ग्राम /लीटर पानी के घोल में पौधों की जड़ों को 20-25 मिनट तक डुबाकर उपचारित करने के बाद ही पौधों की रोपाई करें। पौध को खेत में 75 से.मी. की कतार की दूरी रखते हुये 60 से.मी के फासले पर पौधों की रोपाई करें।
मेड़ों पर चारों तरफ यदि संभव हो तो गेंदा की रोपाई करें,जिससे टमाटर में लगनेवाले कीड़ों की उग्रता में भारी कमी आती है। टमाटर की खेती के लिए 20 से 25 टन खूब सड़ी गोबर की खाद एवं 150 किलो नत्रजन, 75 किलो फॉस्फोरस एवं 75 किलो पोटाश तथा यदि वहा की मिट्टी में बोरोन की कमी हो तो बोरेक्स 0.3 प्रतिशत का छिड़काव करने से फल अधिक लगते हैं। जाड़ों में 10-15 दिन के अन्तराल पर हल्की सिंचाई करें। अगर संभव हो सके तो सिंचाई ड्रिप इर्रीगेशन द्वारा करनी चाहिए।
टमाटर मे फूल आने के समय पौधों में मिट्टी चढ़ाना एवं सहारा देना आवश्यक होता है। टमाटर की लम्बी बढ़ने वाली किस्मों को विशेष रूप से सहारा देने की आवश्यकता होती है। पौधों को सहारा देने से फल मिट्टी एवं पानी के सम्पर्क मे नही आ पाते जिससे फल सड़ने की समस्या नही होती है। सहारा देने के लिए रोपाई के 30 से 45 दिन के बाद बांस या लकड़ी के डंडों में विभिन्न ऊॅचाईयों पर छेद करके तार बांधकर फिर पौधों को तारों से सुतली बांधते हैं। इस प्रक्रिया को स्टेकिंग कहा जाता है। आवश्यकतानुसार फसलों की निराई-गुड़ाई करें। फूल और फल बनने की अवस्था मे निराई-गुड़ाई नही करनी चाहिए।
जब फलों का रंग हल्का लाल होना शुरू हो उस अवस्था मे फलों की तुड़ाई करें तथा फलों की ग्रेडिंग कर कीट व व्याधि ग्रस्त फलों दागी फलों छोटे आकार के फलों को छाटकर अलग करें। ग्रेडिंग किये फलों को प्लास्टिक के कैरेट में भरकर अपने निकटतम सब्जी मण्डी या जिस मण्डी मे भेजते है।
टमाटर की औसत उपज 400-500 क्विंटल/है. होती है तथा संकर टमाटर की उपज 700-800 क्विंटल/है. तक हो सकती है।