स्वीट कॉर्न (मीठी मक्का) की वैज्ञानिक खेती , आइये जानते है स्वीट कॉर्न की उन्नत खेती के बारे में

स्वीट कॉर्न (मीठी मक्का) की वैज्ञानिक खेती , आइये जानते है स्वीट कॉर्न की उन्नत खेती के बारे में
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Kisaan Helpline

Crops May 19, 2021

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि स्वीट कॉर्न फायदे की खेती है। स्वीट कॉर्न (Sweet corn) की बढ़ती मांग के चलते बाजार में कीमत अच्छी मिलती है। यह दोहरे लाभ की खेती है, क्योंकि इसके पौध का इस्तेमाल पशु चारे के लिए किया जा सकता है।
स्वीट कॉर्न एक स्वादिष्ट पौष्टिक आहार है तथा पत्तों में लिपटे रहने के कारण कीटनाशक रसायनों के प्रभाव से लगभग मुक्त होती है | इसमें फास्फोरस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है | इसके अलावा इसमें कार्बोहाईड्रेट्स, प्रोटीन, कैल्सियम, लोहा व विटामिन भी पाई जाती है |
स्वीट कॉर्न की फसल को बेबी कॉर्न और मीठी मक्का के नाम से भी जाना जाता हैं। जहां सिंचाई की उचित व्यवस्था है वहां पर मई-जून का समय स्वीट कॉर्न की खेती के लिए उचित समय हैं। स्वीट कॉर्न की खेती करके किसान अधिक लाभ कमा सकता हैं।

स्वीट कॉर्न मक्का की खेती से लाभ
•     फसल विविधिकरण,
•     किसान भाइयों, ग्रामीण महिलाओं एवं नवयुवकों को रोजगार के अवसर प्रदान करना,
•     अल्प अवधि में अधिकतम लाभ कमाना,
•     निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा का अर्जन तथा व्यापार में बढ़ावा,
•     पशुपालन को बढ़ावा देना,
•     मानव आहार संसाधन उद्दोग (फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री) को बढ़ावा देना तथा
•     सस्य अन्तराल  (इंटर्क्रोपिंग) द्वारा अधिक आय अर्जित करना |

उत्पादन तकनीक:
स्वीट कॉर्न की उत्पादन तकनीक कुछ विभिन्नता के अलावा सामान्य मक्का की ही तरह है | ये विभिन्नताएँ निम्नलिखित हैं –
•     अगेती परिपक्वता (जल्द तैयार होने वाली) वाली एकल क्रास संकर मक्का की क़िस्मों को उगाना,
•     पौधे की अधिक संख्या,
•     झंडो को तोड़ना (डीटेस्लिंग) तथा
•     भुट्टा में सिल्क आने के 1-3 दिन के अन्दर भुट्टा की तुड़ाई |
बेबी कॉर्न की अधिक उपज लेने के लिए निम्न तकनीकों को अपनाना चाहिए

उपयुक्त क़िस्मों का चुनाव
स्वीट कॉर्न की खेती के लिए एचएम-4, गंगा सफेद-2, पूसा अर्ली हाइब्रिड मक्का 3 व पूसा अर्ली हाइब्रिड मक्का 5 उन्नत किस्में हैं। बुवाई में इन किस्मों का इस्तेमाल करें।

बुवाई का समय
खासकर उत्तर भारत में दिसम्बर एवं जनवरी महीनों को छोड़ कर सालों भर बेबी कॉर्न की बुवाई की जा सकती है | उत्तरी भारत में मार्च से मई माह तक बेबी कॉर्न की माँग अधिक होती है | इसके लिए जनवरी माह  के अंतिम सप्ताह में बुवाई करना उपयुक्त होता है | दक्षिणी भारत में इसे सालों भर उगाया जा सकता है |  अतः बाजार में स्वीट कॉर्न की माँग के समय को ध्यान में रखते हुए बुवाई की जाए तो अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है |

बुवाई की विधि
बुवाई मेंड़ अथवा क्यारियों के दक्षिणी भाग में की जानी चाहिए | सीधे रहने वाले पौधे के लिए मेंड़ एवं पौधा से पौधा की दूरी 60 से.मी.X15 से.मी. तथा फैलने वाले पौधे के लिए 60 से.मी.X 20से.मी. दूरी रखना चाहिए |

बीज दर
किस्म/प्रजाति के टेस्ट वजन के अनुसार लगभग 10 कि.ग्रा. प्रति एकड़ बीज का प्रयोग करना चाहिए |

बीज उपचार
बुवाई से पहले प्रति किग्रा बीज मे एक ग्राम बावीस्टीन या कैप्टान मिला देना चाहिए | रसायन उपचारित बीज को छाया में सुखाना चाहिए | इस तरह मक्का के फसल को फफूंदजनित रोग, जड़गलन आदि बीमारियों से बचाया जा सकता है | तना भेदक (शूट फ्लाई) से बचाव के लिए फिप्रोनिल 4-6 मि.ली./ कि.ग्रा. बीज में मिलाना चाहिए |

उर्वरक प्रबंधन
मृदा परीक्षण के आधार पर पोषक तत्वों का प्रयोग बेहतर होता है | समान्यतः 60-72:24:24:10 कि.ग्रा./एकड़ के अनुपात में एन.पी.के. तथा जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए | इसके अलावा अच्छी उपज के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद (FYM) 8-10 टन/हे का भी प्रयोग करना चाहिए | सम्पूर्ण फास्फोरस, पोटाश, जिंक एवं 10% नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के समय खेत में डालना चाहिए| नाइट्रोजन की शेष मात्रा को चार बार (टुकड़ो में अर्थात, 4 पत्तियों की अवस्था में 20%,  8 पत्तियों की अवस्था में 30%, नर मंजरी को तोड़ने से पहले 25% तथा  नर मंजरी को तोड़ने के बाद 15%) प्रयोग करने से पूरे फसल के दौरान कम से कम नुकसान के साथ-साथ इसकी उपलब्धता बनाए रखने में सहूलियत होती है |

खरपतवार प्रबन्धन
बुवाई के तुरंत बाद एव अंकुरण के पूर्व खरपतवारनाशी एट्राजिन/ एटाट्राफ 400-600 ग्रा./ एकड़ की दर से 200-250 ली. पानी मे घोलकर छिड़काव करने से अधिकतर खर-पतवार का प्रबन्धन हो जाता है | अगर जरूरत पड़े तो 1-2 बार खुरपी से गुड़ाई कर देने से बाकी बचे हुए खर-पतवार का भी प्रबन्धन हो जाता है | छिड़काव या गुड़ाई करने वाले व्यक्ति को आगे के बजाय पीछे की ओर बढ़ना चाहिए |

सिंचाई प्रबन्धन
मक्का की फसल में मौसम, फसल की अवस्था तथा मिट्टी के अनुसार सिंचाई की जरूरत होती है| पहली सिंचाई युवा पौध की अवस्था, दूसरी फसल के घुटने की ऊंचाई के समय, तीसरी फूल (झण्डा) आने से पहले तथा चौथा तुड़ाई के ठीक पहले देनी चाहिए |

कीटों का प्रबन्धन
तना छेदक मक्का का एक प्रमुख हानिकारक कीट है| पौध जमन॓ के 10 दिन बाद इसके ऊपरी भाग (गोभ) में 85% वेटेबल पाउडर बाला कारबेरिल का 2.5 ग्रा॰/ली॰ पानी में घोल कर छिड़काव करने से इस कीट का प्रबन्धन हो जाता है।

झंडो को निकालना
झण्डा बाहर दिखाई देते ही निकाल देना चाहिए | इसे पशुओं को खिलाया जा सकता है | इस क्रिया में पौधों से पत्तों को नहीं हटाना चाहिए |

तुड़ाई
स्वीट कॉर्न की तुड़ाई के लिये निम्न बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी होता है -
•     बेबी कॉर्न की भुट्टा  (गुल्ली) को 1-3 से॰ मी॰ सिल्क आने पर तोड़ लेनी चाहिए |
•     भुट्टा तोड़ते समय उसके ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाना चाहिए |  पत्तियों को हटाने से ये जल्दी  खराब हो जाती है |
•     खरीफ़ में प्रतिदिन एवं रबी में एक दिन के अन्तराल पर सिल्क आने के 1-3 दिन के अन्दर भुट्टे की तुड़ाई कर लेनी चाहिए |
•     एकल क्रॉस संकर मक्का में 3-4 तुड़ाई जरूरी होता है |

उपज
स्वीट कॉर्न की उपज इसके क़िस्मों की क्षमता एवं मौसम पर निर्भर करती है | एक ऋतु में 6-8 क्विंटल/एकड़ बेबी कॉर्न (बिना छिलका) की उपज ली जा सकती है | इससे 80-160 क्विंटल/एकड़ हरा चारा भी मिल जाता है | इसके अलावा कई अन्य पौष्टिक पौध उत्पाद जैसे- नरमंजरी, रेशा, छिलका, तुड़ाई के बाद बचा हुआ पौधा आदि प्राप्त होता है जिन्हें पशुओं को हरा चारा के रूप में खिलाया जा सकता है |

तुड़ाई उपरान्त प्रबन्धन
इसके लिए निम्न तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए-
•    स्वीट कॉर्नका छिलका तुड़ाई के बाद उतार लेनी चाहिए | यह कार्य छायादार और हवादार जगहों पर करना चाहिए |
•     ठंडे जगहों पर स्वीट कॉर्न का भंडारण करना चाहिए |
•     छिलका उतरे  हुए बेबी कॉर्न को ढ़ेर लगा कर नहीं रखना चाहिए, बल्कि प्लास्टिक की टोकड़ी, थैला या अन्य कन्टेनर में रखना चाहिए |
•     स्वीट कॉर्न को तुरंत मंडी या संसाधन इकाई (प्रोसेसिंग प्लान्ट) में पहुँचा देना चाहिए |

विपणन (मार्केटिंग)
इसकी बिक्री बड़े शहरों (जैसे- दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता आदि) के मंडियों में की जा रही है | कुछ किसान बन्धु इसकी बिक्री सीधे ही होटल, रेस्तरां, कम्पनियों (रिलायन्स, सफल आदि) को कर रहे हैं | कुछ यूरोपियन देशों तथा यू॰ एस॰ ए॰ में बेबी कॉर्न के आचार एवं कैन्डी की बहुत ही ज्यादा माँग है | हरियाणा राज्य के पानीपत जिला से पचरंगा कम्पनी द्वारा इन देशों में स्वीट कॉर्न के आचार का निर्यात किया जा रहा है |

प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग)
नजदीक के बाजार में स्वीट कॉर्न (छिलका उतरा हुआ) को बेचने के लिये छोटे–छोटे पोलिबैग में पैकिंग किया जा सकता है | इसे अधिक समय तक संरक्षित रखने के लिये  काँच(शीशा) की पैकिंग सबसे अच्छी होती है | काँच के पैकिंग में 52% बेबी कॉर्न  और 48% नमक का घोल होता है | बेबी कॉर्न को डिब्बा में बंद करके दूर के बाजार या अन्तराष्ट्रीय बाज़ारों में बेचा जा सकता है | कैनिंग (डिब्बाबंदी) की विधि निम्न फ्लो डाईग्राम में प्रदर्शित है –
छिलका उतरा हुआ स्वीट कॉर्न -> सफाई करना –> उबालना –> सुखाना -> ग्रेडिंग करना -> डिब्बा में डालना -> नमक का घोल डालना –> वायुरुद्ध करना -> डिब्बा बंद करना –> ठंडा करना -> गुणवत्ता की जाँच करना

आर्थिक लाभ
एक एकड़ स्वीट कॉर्न को पैदा करने में लगभग 8,000-10,000 रु॰ खर्च आता है | हरे चारे को मिलाकर कुल आमदनी लगभग 38,000-40,000 रु॰ / एकड़ होता है । अतः किसान भाइयों को स्वीट कॉर्न के उत्पादन से शुद्ध आमदनी लगभग 30,000 रु॰ / एकड़ होता है | एक साल में 3-4 स्वीट कॉर्न की फसल ली जा सकती है | इस प्रकार एक वर्ष में एक एकड़ से लगभग 90,000 रु॰ शुद्ध आमदनी प्राप्त की जा सकती है | अतिरिक्त लाभ लेने के लिये स्वीट कॉर्न के साथ अन्तः फसल ली जा सकती है|


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