स्ट्रॉबेरी की व्यावसायिक खेती, जानिए स्ट्रॉबेरी की उन्नत खेती करने का तरीका और व्यावसायिक लाभ के बारे में

स्ट्रॉबेरी की व्यावसायिक खेती, जानिए स्ट्रॉबेरी की उन्नत खेती करने का तरीका और व्यावसायिक लाभ के बारे में
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Kisaan Helpline

Crops Jun 24, 2021

जैसे की आप जानते है स्ट्रॉबेरी लाल रंग का एक बहुत ही नाज़ुक फल है, जिसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है, जिस वजह से यह लोगो को काफी पसंद होता है। स्ट्रॉबेरी की लगभग 600 किस्में हैं यह सभी स्वाद रंग रूप में एक दूसरे से भिन्न होते है। स्ट्रॉबेरी की खुशबू और स्वाद की वजह से इसका इस्तेमाल आइसक्रीम और केक में किया जाता है। यह एक ऐसा फल है जिसका बीज बाहर की ओर होता है।

स्ट्रॉबेरी (Fragaria sp.) समशीतोष्ण क्षेत्रों का मूल निवासी है, लेकिन ऐसी किस्में उपलब्ध हैं जिनकी खेती उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में की जा सकती है। भारत में इसकी खेती आमतौर पर पहाड़ियों में की जाती है। इसकी खेती का मुख्य केंद्र उत्तर प्रदेश में नैनीताल (जिला) और देहरादून, महाबलेश्वर (महाराष्ट्र), कश्मीर घाटी, बैंगलोर और कलिम्पोंग (पश्चिम बंगाल) हैं। हाल के वर्षों में, पुणे, नासिक और सांगली कस्बों के आसपास महाराष्ट्र के मैदानी इलाकों में स्ट्रॉबेरी की सफलतापूर्वक खेती की जा रही है। स्ट्रॉबेरी छोटे फलों में सबसे व्यापक रूप से अनुकूलित है। स्ट्रॉबेरी पूरे यूरोप में, संयुक्त राज्य के हर राज्य में, साथ ही कनाडा और दक्षिण अमेरिका में उगाई जाती है। इन क्षेत्रों के भीतर जलवायु में व्यापक भिन्नता और स्ट्रॉबेरी के पौधे के व्यापक अनुकूलन से वर्ष के अधिकांश भाग के दौरान फलों की कटाई और विपणन की अनुमति मिलती है।

स्ट्रॉबेरी के फायदे 
स्ट्रॉबेरी में विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन K, केल्सियम, मैग्नीशियम, फोलिक एसिड, फास्फोरस, पोटेशियम, एंटी-ऑक्सीडेंट, लाइकोपीन, लवण पाया जाता है।

स्ट्रॉबेरी का उपयोग और महत्त्व 
स्ट्रॉबेरी का उपयोग से डेड स्किन साफ करने के लिए, दांतों की सफेदी के लिए, कील-मुंहासों की समस्या के लिए, रंगत निखारने के लिए, बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करने के लिए, त्वचा की झुर्रियों और बारीक रेखाओं को साफ करने का काम करता है।

स्ट्रॉबेरी की प्रसिद्ध किस्में
आपको जानकर आश्चर्य होगा की स्ट्रॉबेरी की 600 किस्में इस संसार में मौजूद है। ये सभी अपने स्वाद रंग रूप में एक दूसरे से भिन्न होती है। स्ट्रॉबेरी में अपनी एक अलग ही खुशबू के लिए पहचानी जाती है। स्ट्राबेरी की बहुत सी किस्में उगाई जाती हैं। परन्तु मुख्यत: निम्नलिखित किस्मों का उत्पादन हरियाणा में किया जाता है। स्ट्रॉबेरी की व्यावसायिक रूप से खेती करने के लिए ओफ्रा, सिसकेफ़, चांडलर, ब्लेक मोर, कमारोसा, एलिस्ता, फेयर फाक्स, स्वीट चार्ली आदि किस्में है। भारत में स्ट्रॉबेरी की ज्यादातर किस्में दूसरे देश से मंगवाई जाती है।

पौधरोपण का उपयुक्त समय 
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 10 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने का सही समय होता है लेकिन अगर तापमान ज्यादा हो तो सितम्बर अंतिम में पौधा लगाना चाहिए।

पौधरोपण का तरीका
पौधरोपण के लिए बेड (क्यारियाँ) बनाने की आवश्यकता होती है। बेड बनाने के लिए बेड की चौड़ाई 2 फिट और दो बेड के बीच की दूरी 1.5 फिट होना चाहिए। इसके बाद खेत की पाइपलाइन बिछा देना है। पौधे लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग में 8 – 11 इंच की दूरी पर छेद कर देना है।

उपयुक्त मिट्टी
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए कोई मिट्टी तय नही है लेकिन बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी उपज प्राप्त होती है। जिस खेत का pH मान 5 – 6.5 हो वो स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उपयुक्त है।

अनुकूल जलवायु
स्ट्रॉबेरी के लिए शीतोष्ण जलवायु जिसका तापमान 20 – 30 डिग्री हो उपयुक्त है। तापमान बढ़ने से पौधे को नुकसान पहुंच सकता है।

खेत की तैयारी
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले सितम्बर के पहले सप्ताह में 3 बार जुताई करके 1 हेक्टेयर खेत में 75 टन के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट अच्छे से मिट्टी में मिला दे। मिट्टी परीक्षण के आधार पर खेत में पोटाश और फास्फोरस भी मिला दे।

खाद् और रासायनिक उर्वरक
मिट्टी परीक्षण के आधार पर, कृषि वैज्ञानिकों की सलाह ले कर खेत में समय-समय पर पोटाश और नाइट्रोजन फास्फोरस देना ज़रुरी होता है। मल्चिंग होने के बाद तरल खाद् टपक सिंचाई के जरिये दे।

सिंचाई
स्ट्रॉबेरी की खेती में सिंचाई का विशेष महत्त्व होता है। पहली सिंचाई पौधा लगाने के तुरंत बाद देना है और उसके बाद नमी को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। फल आने से पहले सूक्ष्म फव्वारे से और फल आने के बाद टपक विधि से सिंचाई करते रहना चाहिए।

हानिकारक रोग एवं कीट की रोकथाम
स्ट्रॉबेरी के पौधे में रस भृग, स्ट्रॉबेरी मुकट कीट कण, जड़ विविल्स झरबेरी (एक प्रकार का कीड़ा), कीटों में पतंगे, मक्खियाँ चेफर जैसे कीट इसको नुकसान पंहुचा सकते है। इसके अलावा पत्तों पर पत्ती स्पाट, पत्ता ब्लाइट, ख़स्ता फफूंदी से प्रभावित हो सकती है।
रोकथाम:- रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में डाले नीम की खल डाले और वैज्ञानिकों की सलाह से समय समय पर पौधे रोगों की पहचान कर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करे।

पाले से बचाव का तरीका
पाले से बचाने के लिए पाली हाउस नही होने पर, प्लास्टिक लो टनल का इस्तेमाल कर सकते है जिसमे 100-200 माइक्रोन की पारदर्शी प्लास्टिक चादर का इस्तेमाल करना चाहिए।

फसल की कटाई
जब स्ट्रॉबेरी का रंग 70% असली हो जाये तो तोड़ लेना चाहिए। अगर फल को तोड़ने के कुछ दिन बाद बेचना है तो ऐसे में फल को थोड़ा सख्त ही तोड़ना चाहिए। तुड़वाई अलग अलग दिनों करनी चाहिए और फल को पकड़ कर नहीं बल्कि उसके टहनियो को पकड़ कर तोडना चाहिए नहीं तो फल ख़राब हो सकता है।

उत्पादन
अनुकूल जलवायु और उन्नत खेती के तरीको से स्ट्राबेरी की खेती में लगभग 7 से 12 टन प्रति हेक्टयेर फल प्राप्त किया जा सकता है।

भंडारण और पैकिंग
स्ट्रॉबेरी की पैकिंग प्लास्टिक की प्लेटों में करनी चाहिए और हवादार जगह जहां तापमान पांच डिग्री हो रखना चाहिए। दूसरे दिन तापमान जीरो डिग्री होना चाहिए।

स्ट्रॉबेरी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें:-

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