सफलता की कहानी: बिहार के भागलपुर के एक किसान ने स्ट्रॉबेरी की खेती से कमाई कर सफलता की नई कहानी लिखी है। दरअसल, गोभी, मक्का और केले की खेती में कम मुनाफा होने के कारण वह कुछ नया करने की सोच रहे थे। इस दौरान उस्मानपुर निवासी खगेश मंडल ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। शुरुआत में स्ट्रॉबेरी की खेती पांच सौ से भी कम पौधों से शुरू होती थी, लेकिन आज उनके आसपास बाईस एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू हो गई है।
पत्ता गोभी की खेती करने वाले खगेश मंडल आज स्ट्रॉबेरी की सफल खेती (Successful Cultivation) कर रहे हैं। स्ट्रॉबेरी के लाल होने से पहले ही सारे फल ऑनलाइन बिक रहे हैं। एक क्विंटल फलों की बुकिंग हो चुकी है फिलहाल खेत में लगे पौधों में फूल आना शुरू भी नहीं हुआ हैं। खगेश ने यूट्यूब देखकर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की है। अब इस काम में बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी उनकी मदद कर रहे हैं। खरीक प्रखंड के उस्मानपुर के किसान 2018 से पहले गोभी की खेती करते थे। इससे किसानों को ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा था। किसान फसलों के विकल्प तलाश रहे थे जिससे अच्छी आमदनी हो।
युवा किसान खगेश का मानना है कि यहां की जमीन इस फल की खेती के लिए काफी अनुकूल है। साथ ही कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने भी उनके फार्म का दौरा किया। उनका कहना है कि बीएयू के वैज्ञानिकों ने उन्हें स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए जरूरी तकनीकें सिखाईं। इसे अक्टूबर से नवंबर के बीच लगाया जा सकता है, जो जनवरी के अंत तक तैयार हो जाता है। वर्तमान में स्ट्रॉबेरी की खेती से स्थानीय किसानों का नजरिया बदल रहा है। आज अन्य किसान भी इसकी खेती के लिए उत्साहित हैं। जाहिर है कि खेती कम लागत और कम मेहनत में अधिक लाभदायक है। पारंपरिक खेती से किसानों का रुझान अब नवाचारों की ओर बढ़ रहा है। इसके साथ ही स्ट्रॉबेरी सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होती है क्योंकि यह कई तरह की जानलेवा बीमारियों के लिए प्रतिरोधी होती है।
खगेश मंडल ने यूट्यूब पर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी ली। इसके बाद बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से संपर्क किया। बीएयू के वैज्ञानिक डॉ. रामदत्त ने ऑस्ट्रेलिया-भारत परिषद परियोजना के तहत उक्त गांव के किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए प्रोत्साहित किया। सभी सुविधाएं उपलब्ध कराकर खेती की तकनीकी जानकारी देना। 2018 में खगेश ने अपने सहयोगी किसान के साथ पुणे के महाबलेश्वर से सात हजार पौधे लाए और आधा एकड़ में लगाया। एक पौधा 15 रुपये में खरीदा गया था। पहले साल में ही अच्छी फसल हुई थी।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के मीडिया सेंटर से प्रचार-प्रसार के चलते सारे फल ऑनलाइन बिक गए। भागलपुर समेत बांका, खगड़िया और कटिहार के ग्राहक ने स्ट्राबेरी को हाथोंहाथ खरीद लिया।
किसान खगेश मंडल ने बताया कि इस बार एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती की गई है। पौधे में फूल आने लगे हैं। फल मार्च में तैयार हो जाएगा। डेढ़ से दो लाख रुपये फसल लगाने में खर्च हो जाते हैं, जबकि आमदनी पांच से छह लाख रुपये तक हो जाती है। मार्च में प्रतिदिन एक क्विंटल स्ट्रॉबेरी की तुड़ाई की जाती है।
ड्रिप सिंचाई की आधुनिक तकनीक
खगेश जुगाड़ से खेतों में ड्रिप इरिगेशन कर रहे हैं। इसके लिए पांच फीट की ऊंचाई पर दो सौ लीटर का ड्रम रखा जाता है। आधे एचपी की मोटर से पानी ड्रम में जाता है और ड्रम से पाइप के जरिए पानी खेत में जाता है। प्रयोग के तौर पर 20 हजार रुपये खर्च कर ड्रिप इरिगेशन से खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि ड्रिप सिंचाई के लिए बागवानी विभाग का सहयोग लिया जाएगा।
स्ट्रॉबेरी को ऑनलाइन बेच रहे हैं
खगेश उत्पादित स्ट्रॉबेरी को ऑनलाइन बेच रहे हैं। तीन सौ रुपए प्रति किलो लोग स्ट्रॉबेरी खरीदते हैं। ऑनलाइन बिक्री के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है। इस ग्रुप पर खेतों से लेकर उत्पादों और पैकेजिंग तक की तस्वीरें शेयर की जाती हैं। जो लोग हमारे उत्पादों को पसंद करते हैं वे हमसे फोन लाइन पर जुड़ते हैं। लोकेशन मिलते ही हम स्ट्रॉबेरी उनके घर भेज देते हैं। सबौर कृषि विश्वविद्यालय के मीडिया सेंटर के माध्यम से भी प्रचार-प्रसार किया जाता है।
200 पौधे भी लगाए गए हैं पपीता के
खगेश ने खेतों में पपीता के पौधे भी लगाए हैं। पपीते की रेड लेडी और 786 किस्मों की अत्यधिक मांग है। खगेश पपीते के पौधे स्वयं तैयार करते हैं। इस साल उन्हें पपीते से अच्छी आमदनी होने की उम्मीद है। हालांकि बारिश के कारण कुछ पौधों को नुकसान पहुंचा है।