सोयाबीन पर कॉलर रॉट फंगस का संकट मंडराया, फसल पैदा होने से पहले ही चली गई बर्बादी की ओर

सोयाबीन पर कॉलर रॉट फंगस का संकट मंडराया, फसल पैदा होने से पहले ही चली गई बर्बादी की ओर
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Kisaan Helpline

Crops Jul 06, 2023

कृषि को अनिश्चितताओं और जोखिमों का व्यवसाय भी कहा जाता है, जिसमें कभी बेमौसम बारिश से तो कभी तूफान, बाढ़ और सूखे से फसलें बर्बाद होने का खतरा बना रहता है। किसान अच्छी आमदनी की उम्मीद में फसलों की खेती करते हैं, लेकिन कब अचानक फसल में कीट और बीमारियों का संकट आ जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है। कुछ ऐसी ही आफत मध्य प्रदेश के किसानों पर बिजली बनकर गिरी है। 

निम्न और मध्यम वर्गीय किसानों ने किसी तरह खेत में सोयाबीन और लाल अरहर की बुआई की, जैसे ही फसल उगी, कॉलर रॉट फंगस ने पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लिया। जहां एक तरफ खेतों में ऐसा लग रहा है कि फसल अंकुरित हो गई है, किसानों के बीच खुशी का माहौल था, लेकिन अंकुरित फसल धीरे-धीरे सूखने लगी। जब फसल पैदा होने से पहले ही बर्बादी की ओर चली गई।

सोयाबीन में कॉलर रॉट फंगस

कॉलर रोट को कई स्थानों पर तना सड़न के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग उच्च मिट्टी की नमी और खराब जल निकासी वाले क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है। मृदा जनित रोग होने के कारण कॉलर रॉट रोग पौधों के तने और जड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। कॉलर रॉट सोयाबीन को छोड़कर लगभग सभी फसलों को प्रभावित करता है और यह भारत के हर क्षेत्र में पाया जा सकता है। यह रोग अंकुरण के पूर्व और बाद के चरणों में अंकुरों की मृत्यु, मुरझाने और पुराने पौधों के कमजोर होने का एक प्रमुख कारण है।

सोयाबीन में कॉलर रॉट के लक्षण
  • संक्रमण आमतौर पर मिट्टी की सतह पर या उसके ठीक नीचे होता है। जिसके कारण फसल में दिखाई देने वाले शुरुआती लक्षणों में पौधों का अचानक पीला पड़ना या मुरझाना आ जाता है।
  • जमीन के करीब तने पर हल्के भूरे रंग के घाव दिखाई देते हैं और समय के साथ गहरे और बड़े हो जाते हैं।
  • पत्तियाँ भूरे रंग की हो जाती हैं और सूखने लगती हैं।
सोयाबीन में कॉलर रॉट रोग का नियंत्रण

यह स्थिति अत्यधिक बारिश और मिट्टी में नमी की अधिकता की स्थिति में, बुआई के तुरंत बाद कॉलर रोट नामक कवक से फसलों को प्रभावित करती है। प्रभावित फसलों को बचाने के लिए किसानों को प्रभावित क्षेत्रों पर कार्बेन्डाजिम 40% 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या थीरम 37.5, कार्बोक्सिन 37, 5:1 लीटर पानी में 2.5 ग्राम का घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। साथ ही जिस क्षेत्र में अभी बुआई नहीं हुई है, वहां बीजों को अनुशंसित फफूंदनाशक एफआईआर से उपचारित करके ही बुआई करें।

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