सोयाबीन भारतवर्ष में महत्वपूर्ण फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र एवं विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा अलग क्षेत्रों के लिए वहाँ की कृषि जलवायु एवं मिट्टी के लिए अलग किस्मों का विकास किया गया है एवं किस्में समर्थित की गई हैं। उसी के अनुसार सोयाबीन किस्में बोई जानी चाहिए। इन किस्मों का थोड़ा बीज लाकर अपने यहाँ ही इसे बढ़ाकर उपयोग में लाया जा सकता है।
सोयाबीन की किस्म JS 9560 फसल को तैयार होने में दूसरी किस्मों की अपेक्षा कम समय लगता है और उत्पादन भी अच्छा रहता है।
विशेषताएं
1. सोयाबीन की JS 9560 किस्म की फसल सबसे कम दिनों में पकने वाली फसल है।
2. सोयाबीन की JS 9560 किस्म किसानों के पास वर्ष 2007 में आई थी।
3. इस सोयाबीन के लिए खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए अच्छे जलनिकासी वाली भूमि में इसका उत्पादन अच्छा होता हैं।
4. अन्य सोयाबीन किस्मों की अपेक्षा सोयाबीन JS 9560 की किस्म का दाना बड़ा और पिले रंग का होता हैं।
आइये जानते है बुवाई का तरीका, समय और उत्पादन:-
बीज की मात्रा
छोटे दाने वाली किस्में - 70 किलो ग्राम प्रति हेक्टर
मध्यम दाने वाली किस्में - 80 किलो ग्राम प्रति हेक्टर
बडे़ दाने वाली किस्में - 100 किलो ग्राम प्रति हेक्टर
बुवाई का समय
जून के अन्तिम सप्ताह में जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त है।
बुवाई का तरीका
सोयाबीन की बोनी कतारों में करना चाहिए। बीज की बुवाई सीडड्रिल द्वारा की जाती है। बोने के समय अच्छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेमी गहराई तक उपयुक्त नमी होना चाहिए। जुलाई के प्रथम सप्ताह के पश्चात बोनी की बीज दर 5- 10 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए।
दुरी
कतारों की दूरी 30 सेमी. ‘’ बोनी किस्मों के लिए ‘’ तथा 45 सेमी. बड़ी किस्मों के लिए उपयुक्त है।
गहराई
बीज 2.5 से 3 सेमी. गहराई तक बोयें।
फसल की समयावधि
एक अच्छी पैदावार के लिए ये बहुत अच्छा साबित होता है। 95 से 100 दिनों में आपकी फसल तैयार हो जाती है।
उत्पादन
फसल का उत्पादन 25 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है।
बुवाई सम्बंधित आवश्यक कार्य
खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। मानसून की वर्षा के पूर्व बोनी नहीं करे। मानसून आगमन के पश्चात बोनी शीघ्रता से पूरी करें। खेत नींदा रहित रखें। सोयाबीन के साथ ज्वार अथवा मक्का की अंतरवर्तीय खेती करें। खेतों को फसल अवशेषों से मुक्त रखें तथा मेढ़ों की सफाई रखें।