कृषि वैज्ञानिक समय-समय पर अनुकूल-प्रतिकूल मौसम और प्रकृति को ध्यान में रखते हुए गेहूं, सोयाबीन, चावल और अन्य कृषि जिंसों की किस्में विकसित करते हैं। इनमें से कई किस्में किसानों के बीच लोकप्रिय हो जाती हैं, जबकि कई किस्में खेत में अच्छे परिणाम न देने के कारण चलन से बाहर हो जाती हैं। पिछले कुछ सालों में सोयाबीन के कम दामों के कारण किसानों का सोयाबीन की खेती से मोहभंग होने लगा है।
ऐसे में कृषि वैज्ञानिक सोयाबीन की ऐसी किस्मों को विकसित करने में लगे हुए हैं, जो किसानों को कम लागत में अच्छा उत्पादन दे सकें। इसी कड़ी में हाल ही में कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की कुछ नवीनतम किस्मों की पहचान की है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किए गए परीक्षण और शोध के अनुसार सोयाबीन की यह नई किस्म किसानों को काफी लाभ देगी।
इस वर्ष मार्च महीने में भाकृअनुप-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने धारवाड़ में AICRPS की 54वीं वार्षिक समूह बैठक हुई। इस बैठक में सोयाबीन की चार किस्मों एनआरसी 197, जेएस 23-03, जेएस 23-09 और आरएससी 11- 42 की पहचान की गई। और इस बैठक में जेएस 23-03 और जेएस 23-09 को मध्य क्षेत्र में पहचान के लिए अनुशंसित किया गया हैं। इसी बैठक में एनआरसी 197 उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र के लिए पहचान की गई है। यह वैरायटी शून्य केटीआई किस्म है। वहीं आरएससी 11-42 पूर्वी क्षेत्र में पहचान के लिए अनुशंसित है।
जेएस 2303 सोयाबीन किस्म के बारे में
सोयाबीन जेएस 2303 किस्म को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा विकसित किया गया है, जो अखिल भारतीय सोयाबीन अनुसंधान परियोजना का केंद्र भी है। वर्ष 2021 से 2023 के दौरान मध्य क्षेत्र में किए गए निरंतर परीक्षणों में इसने मात्र 93 दिनों की अवधि में 2167 किग्रा/हेक्टेयर की औसत दर से प्रचलित किस्म की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त किया है।
जेएस 2303 सोयाबीन किस्म की विशेषता:
- सोयाबीन की इस किस्म को रबी और खरीफ दोनों मौसम में बोया जा सकता है।
- सोयाबीन की इस किस्म को 2034 और 9560 सोयाबीन किस्मों के बराबर अवधि वाला बताया जा रहा है।
- बीज दर 16 से 18 किलोग्राम प्रति बीघा यानी 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होगी।
- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन की यह किस्म आदर्श परिस्थितियों में 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने में सक्षम है, यानि प्रति बीघा 7 क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
- इस किस्म के फूल बैंगनी तथा काली नाभिका एवं रोयेरहित फलियाँ होती हैं।
- इसकी फलियों के गुच्छे में तीन फलियाँ होती हैं।
- परीक्षणों के दौरान इसने चारकोल रॉट, एन्थ्रेक्नोज, राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट और पीला मोजेक वायरस जैसी कई बीमारियों के प्रति मध्यम प्रतिरोध दिखाया है।
- इसके फूल बैंगनी, पत्ते नुकीले और पीले बीजों पर काली रंग की नाभिका होती हैं।
- सोयाबीन किस्म जेएस 2303 विवरण कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सोयाबीन की इस किस्म की परिपक्वता अवधि 92 दिन बताई जा रही है।
- यह किस्म मध्य क्षेत्र (संपूर्ण मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और मध्य उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र) के लिए उपयुक्त पाई गई है।
जेएस 23-09 सोयाबीन किस्म के बारे में
जेएस सीरीज की अन्य किस्मों की तरह जेएस 23-09 सोयाबीन किस्म को भी जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा विकसित किया गया है, जो अखिल भारतीय सोयाबीन अनुसंधान परियोजना का केंद्र भी है। वर्ष 2021 से 2023 के दौरान मध्य क्षेत्र में किए गए निरंतर परीक्षणों में इसने मात्र 92 दिनों की अवधि में 2104 किलोग्राम/हेक्टेयर की औसत दर से प्रचलित किस्म की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त किया है।
जेएस 23-09 सोयाबीन किस्म की विशेषता:
- 25 जून से 1 जुलाई तक बुवाई का उचित समय।
- इस किस्म की बीज दर 15 किलोग्राम प्रति बीघा बताई जा रही है।
- इस किस्म में बैंगनी रंग के फूल आते हैं तथा काली नाभिका एवं रोयेरहित फलियाँ होती हैं।
- इस किस्म की फली 2 और 3 दाने की होती है।
- इसके फूल बैंगनी रंग के होते हैं, और नुकीले आकार के पत्ते दिखाई देते हैं।
- इसकी ऊंचाई कम होती है।
- परीक्षणों के दौरान इस किस्म ने चारकोल रॉट के प्रति मध्यम से उच्च प्रतिरोधिता दिखाई है। इसके अलावा यह एन्थ्रेक्नोज और पीला मोजेक रोग के प्रति भी मध्यम प्रतिरोधी पाई गई। इसने राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट और पीला मोजेक वायरस जैसी कई बीमारियों के प्रति मध्यम प्रतिरोधिता दिखाई है।
एनआरसी 197 सोयाबीन किस्म के बारे में
आठ साल के शोध के बाद इंदौर के वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की एक नई किस्म विकसित की है जो हिमाचल और उत्तराखंड के नाथ पहाड़ी क्षेत्र में अच्छी पैदावार देगी। शोध के नतीजों के आधार पर सोयाबीन की नई किस्म 'एनआरसी 197' की पहचान की गई है। गजट नोटिफिकेशन के बाद अब यह किस्म किसानों को उपलब्ध हो सकेगी। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर) इंदौर के वैज्ञानिकों ने खाद्य श्रेणी में सोयाबीन की नई किस्म 'एनआरसी 197' विकसित की है। जो न केवल अच्छी पैदावार देगी बल्कि खाने के लिए भी इस्तेमाल की जा सकेगी।
एनआरसी 197 सोयाबीन किस्म की विशेषता:
- यह 113 दिनों में पकने वाली एक शीघ्र अवधि वाली किस्म है जो पहाड़ी क्षेत्रों के लिए एक बहुत ही उपयुक्त विकल्प है।
- इसकी पत्तियाँ नुकीली होती हैं।
- परीक्षणों में इसकी औसत उत्पादकता 1624 किलोग्राम/हेक्टेयर और अधिकतम उत्पादन क्षमता 2072 किलोग्राम/हेक्टेयर देखी गई।
- सोयाबीन किस्म एनआरसी 197 में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है।
- सोयाबीन की एनआरसी 197 किस्म पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली सोयाबीन की सामान्य किस्मों की तुलना में जल्दी पक जाती है।
- यह किस्म पहाड़ी इलाकों में बुआई के बाद 113 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
आर.एस.सी. 11-42 सोयाबीन किस्म के बारे में
सोयाबीन की किस्म आरएससी 11-42 को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा विकसित किया गया है जो अखिल भारतीय सोयाबीन अनुसंधान परियोजना का केंद्र भी है। वर्ष 2021 से 2023 के दौरान पूर्वी क्षेत्र में किए गए निरंतर परीक्षणों में इसने 2299 किलोग्राम/हेक्टेयर की औसत दर से प्रतिस्पर्धी किस्म की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त किया है।
आर.एस.सी. 11-42 सोयाबीन किस्म की विशेषता:
- सोयाबीन आरएससी 11-42 को पूर्वी विस्तार के लिए उपयुक्त माना गया है।
- इस किस्म की वृद्धि अर्ध-सीमित होती है और इसके फूल बैंगनी होते हैं।
- इस किस्म में इंडियन बड ब्लाइट रोग तथा बैक्टीरियल पुस्तुले के प्रति मध्यम प्रतिरोध है, जबकि इसमें राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट के प्रति मध्यम प्रतिरोध है।
- इसमें चक्र भृंग (गर्टल बीटल) के प्रति मध्यम प्रतिरोध है।
- इसकी औसत परिपक्वता अवधि 101 दिन है।
- यह किस्म पूर्वी क्षेत्र (छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल) के लिए उपयुक्त पाई गई है।