सोयाबीन भारतवर्ष में महत्वपूर्ण फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। सोयाबीन का उत्पादन 1985 से लगातार बढ़ता जा रहा है और सोयाबीन के तेल की खपत मूँगफली एवं सरसों के तेल के पश्चात सबसे अधिक होने लगा है। सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है।
सोयाबीन की फसल में अच्छे उत्पादन के लिए हानिकारक कीट और रोग से फसल का बचाव करना अति आवश्यक होता है, साथ ही समय-समय पर फसल की देखभाल करना आवश्यक होती है। अच्छी उपज के लिए खाद एवं रासायनिक उर्वरक आवश्यकता अनुसार खेत तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए।
हानिकारक कीट और उनके रोकथाम के उपाय :-
सफेद मक्खी:- सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए, थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 300 मि.ली का छिड़काव प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहले छिड़काव के 10 दिनों के बाद दूसरा छिड़काव करें।
गर्डल बीटल:- यह इस फसल का सबसे हानिकारक है। इसके रोकथाम के लिए 35-40 दिन की फसल पर डाइमिथोएट 30 ई.सी. या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल.या प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. 600-1000 मिली. दवा की प्रति हेक्टेयर की दर से 400-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। तीन सप्ताह बाद फिर छिड़काव करे। गर्डल बीटल के प्रभावी नियंत्रण हेतु थायाक्लोप्रिड 24 एस.सी. 750 मिली./हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
तंबाकू सुंडी:- यदि इस कीट का हमला दिखाई दे तो एसीफेट 57 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी को 1.5 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें। यदि जरूरत पड़े तो पहले छिड़काव के 10 दिनों के बाद दूसरा छिड़काव करें।
बालों वाली सुंडी:- बालों वाली सुंडी का हमला कम होने पर इसे हाथों से उठाकर या केरोसीन में डालकर खत्म कर दें । इसका हमला ज्यादा हो तो, क्विनालफॉस 300 मि.ली. या डाइक्लोरवास 200 मि.ली की प्रति एकड़ में छिड़काव करें।
पीला चितकबरा रोग:- यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। इससे अनियमित पीले, हरे धब्बे पत्तों पर नज़र आते हैं। प्रभावित पौधों पर फलियां विकसित नहीं होती। इसकी रोकथाम के लिए पीला चितकबरा रोग की प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें। सफेद मक्खी को रोकथाम के लिए, थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 400 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहले छिड़काव के 10 दिनों के बाद दूसरा छिड़काव करें।
हानिकारक फफूंदजनित रोग और उनके रोकथाम के उपाय:-
सोयाबीन के पत्तों पर कई तरह के धब्बे वाले फफूंद जनित रोगों के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डबलू पी या थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्लू पी 0.05 से 0.1 प्रतिशत से 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव 30-35 दिन की अवस्था पर तथा दूसरा छिड़काव 40–45 दिन की अवस्था पर करना चाहिए।
बैक्टीरियल पश्चयूल नामक रोग को नियंत्रित:- स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या कासूगामाइसिन की 200 पी.पी.एम. 200 मि.ग्रा; दवा प्रति लीटर पानी के घोल और कापर आक्सीक्लोराइड 0.2 (2 ग्राम प्रति लीटर) पानी के घोल के मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए।
विषाणु जनित पीला मोजेक वायरस रोग व वड व्लाइट रोग प्राय: - एफिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स आदि द्वारा फैलते हैं अत: केवल रोग रहित स्वस्थ बीज का उपयोग करना चाहिए। एवं रोग फैलाने वाले कीड़ों के लिए थायोमेथेक्जोन 70 डब्लू एव. से 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम की दर से उपचारित कर एवं 30 दिनों के अंतराल पर दोहराते रहें। रोगी पौधों को खेत से निकाल देवें। इथोफेनप्राक्स 10 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर थायोमिथेजेम 25 डब्लू जी, 1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर।