Mustard Farming: सरसों, भारत में मूंगफली के बाद सरसों खाने वाले तेलों की फसल में दूसरे स्थान पर आती है। रेपसीड का वानस्पतिक नाम ब्रेसिका कम्पैस्ट्रिस है और सरसों को ब्रेसिका जुन्सिया के नाम से जाना जाता है इनकी फैमिली क्रूसिफैरी है। रेपसीड को सरसों, तोरिया या लाही के नाम से भी जाना जाता है, जबकि मस्टर्ड को राई, राया और लाहा के नाम से जाना जाता है।
सरसों की निम्नलिखित किस्मों के बीज रामधन सिंह बी फार्म, चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार पर उपलब्ध हैं:
आरएच-30 :- यह किस्म बारानी व सिंचित, दोनों अवस्था में बोई जा सकती है। इस किस्म की औसत पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसमें लगभग 40 प्रतिशत तेल अंश होता है। इसके साथ ही इस किस्म को पछेती परिस्थिति में भी बोया जा सकता है। इसका बीज मोटा होता है। और 1000 ग्राम दानों का वजन लगभग 5.5 से 6.0 ग्राम तक होता है। मिश्रित खेती के लिए यह एक उत्ताम किस्म है। इसे नवम्बर के अंत तक बोया जा सकता है। पकने के समय इसकी फलियां झड़ती नहीं। यह किस्म 135-140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
आरएच-781 :- यह पकने में 140 दिनों का समय लेती है। यह पाला तथा सर्दी के प्रति सहनशील किस्म है। इसका दाना मध्यम आकार का होता है और 1000 ग्राम दानों का वजन लगभग 4.2 ग्राम है। इसकी औसत पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है।
आरएच-725 :- यह पकने में 136-143 दिनों का समय लेती है। इसकी औसत पैदावार 10.0-10.5 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह किस्म वर्ष 2018 में जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं उत्तरी राजस्थान के बारानी क्षेत्रों में समय की बिजाई के लिए अनुमोदित की गई थी। इसके दानों में तेल अंश 40 प्रतिशत होता है।
जलवायु
राया को ऐसी भूमि की आवश्यकता होती है, जो पानी भरने पर पानी को अवशोषित कर ले। जहां पानी खड़ा हो जाता है, वहां यह फसल ज्यादा पैदावार नहीं दे पाती। इसके लिए पी-एच मान 7 के लगभग होना चाहिए। पी-एच मान यदि 7 से ज्यादा हो, तो भी यह फसल क्षारीय परिस्थितियों को झेलने में सक्षम है। यह दोमट मृदा में अच्छी पैदावार देती है। खेत की तैयारी बारानी क्षेत्रों में हर बरसात होने पर हैरो लगाने चाहिए।
बिजाई का समय
सामान्यत: सितंबर का अन्तिम सप्ताह और अक्टूबर का प्रथम सप्ताह इसकी बिजाई के लिए उत्तम माना जाता है। राया की बिजाई के लिए 30 सितंबर से 20 अक्टूबर का समय उपयुक्त माना जाता है।
बीज उपचार
बिजाई से पहले 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित - करें। जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप प्रत्येक वर्ष होता है, वहां बिजाई के 45-50 दिनों तथा 65-70 दिनों के बाद कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत की दर से दो छिड़काव करें।
तना गलन
तनों पर लंबे आकार के भूरे जलसिक्त धब्बे बनते हैं, जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तह बन जाती है। ये लक्षण पत्तों तथा टहनियों पर भी नजर आ सकते हैं। फूल निकलने या फलियां बनने के समय आक्रमण होने पर तने टूट जाते हैं और पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं।
बिजाई का तरीका
राया को पंक्ति से पंक्ति पर 30 सें.मी. की दूरी पर बोना चाहिए। बोने के लिए 4 से 5 सें.मी. की गहराई रखनी चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखनी चाहिए। हाईब्रिड बोया गया हो, तो पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी क्रमश: 45 X 10 सें.मी. रखनी चाहिए।
थिनिंग व निराई-गुड़ाई
यह कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसे बिजाई के दो सप्ताह बाद शुरू कर देना चाहिए। एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखनी चाहिए। दस सें.मी. के बाद दूसरा पौधा रखना चाहिए और अन्य पौधों को उखाड़ देना चाहिए। बिजाई के तीसरे सप्ताह बाद निराई-गुड़ाई का कार्य करना लाभकारी होता है।
सिंचाई
पानी की कमी हो तो पौधों में तनाव आ जाता है. ऐसी अवस्था में रासायनिक खरपतवार नियंत्रण लाभकारी नहीं रहता। राया, तोरिया और सरसों में दो सिंचाई उपयुक्त है। पहली सिंचाई फूल आने पर और दूसरी सिंचाई फलियां आने पर ज्यादा पैदावार देती हैं।
उर्वरक डालने का तरीका
यदि सरसों या राया को अंसिंचित क्षेत्रों में बोया जाना है, तो ऐसी अवस्था में सभी उर्वरक बिजाई के तुरन्त पहले प्रयोग करें। सिंचित अवस्था में फॉस्फोरस, पोटाश तथा जिंक सल्फेट और आधी नाइट्रोजन बिजाई से तुरन्त पहले डालें और शेष नाइट्रोजन की मात्रा पहले पानी के साथ डालें।
पोषण
फॉस्फोरस: फसल में फॉस्फोरस तथा गंधक की आवश्यकता पूरी करने के लिए सिंगल सुपर फॉस्फेट का प्रयोग करें। इसमें 12 प्रतिशत गंधक होती है। यदि फॉस्फोरस की पूर्ति के लिए डी.ए.पी. का प्रयोग करना हो, तो उसमें 2 कट्टे (100 कि.ग्रा.) जिप्सम प्रति एकड़ की दर से बिजाई से पहले की जुताई के समय में या बिजाई पूर्व सिंचाई के समय डाल दें।
सल्फर : सरसों उपलब्ध होने वाले सल्फर की पूरे फसल काल में मांग करती है। इसकी ज्यादा आवश्यकता फूल आने के समय होती है सिंचित क्षेत्रों में 6 से 12 इंच और 12-24 इंच की गहराई में सल्फर काफी मात्रा में उपलब्ध होता है, लेकिन 0 से 6 इंच की गहराई में उपलब्ध सल्फेट सल्फर सामान्यतः कम होती है।
उर्वरकों के नाम
यूरिया
- असिंचित क्षेत्रों में मात्रा (कि.ग्रा.)- 32 कि.ग्रा. यदि डी.ए.पी. का प्रयोग किया गया है।
- सिंचित क्षेत्रों में मात्रा (कि.ग्रा.) - 66 कि.ग्रा. यदि डी.ए.पी. का प्रयोग किया गया है।
डी.ए.पी.
- असिंचित क्षेत्रों में मात्रा (कि.ग्रा.)- 17 या 50 कि.ग्रा. एस.एस.पी. प्रति एकड़
- सिंचित क्षेत्रों में मात्रा (कि.ग्रा.) - 22 या 75 कि.ग्रा. एस.एस.पी. प्रति एकड़
जिंक
- सिंचित क्षेत्रों में मात्रा (कि.ग्रा.) - 10 कि.ग्रा.
राया में मरगोजा परजीवी खरपतवार का नियंत्रण
खरपतवारनाशी राउण्डअप/ग्लाइसेल (ग्लाइफोसेट 41 प्रतिशत एस.एल.) की 25 मि.ली. मात्रा प्रति एकड़ बिजाई के 25-30 दिनों बाद व 50 मि.ली. मात्रा प्रति एकड़ बिजाई के 50 दिनों बाद 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। छिड़काव हमेशा फ्लैट फैन नोजल व नैपसैक स्प्रेयर से ही करें। ध्यान रहे कि छिड़काव के समय या बाद में खेत में नमी का होना जरूरी है। इसके लिए छिड़काव से 2-3 दिनों पहले या बाद में सिंचाई अवश्य करें। सुबह के समय पत्तों पर ओस/नमी बनी रहती है, तब भी छिड़काव न करें। एक बात का ख्याल रखें कि मधुमक्खियों के बचाव के लिए छिड़काव दिन में 3 बजे के बाद शाम के समय करें।
सरसों में चेंपा/माहूं
इसका अधिक आक्रमण दिसंबर के अंतिम और जनवरी के प्रथम पखवाड़े में होता है। इन दिनों औसत तापमान 10-20 डिग्री सेल्सियस एवं 75 प्रतिशत आर्द्रता होती है। 10 प्रतिशत पुष्पित पौधों पर 9-19 या औसतन 13 कीट प्रति पौधा होने पर 250 से 400 मि.ली. मिथाइल डेमेटॉन (मैटासिस्टॉक्स) 25 ई.सी. को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो, तो दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करें।
साग के लिए उगाई गई फसल पर 250 से 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो, तो दूसरा छिड़काव 7 से 10 दिनों बाद करें।