सरसों की फसल में अधिक पैदावार के लिए अपनाएं श्रीविधि, जानिए श्रीविधि तकनीक के बारे में

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Kisaan Helpline

Crops Aug 04, 2021

सरसों सघनता प्रणाली (सिस्टम ऑफ मस्टर्ड इन्टेंसीफिकेशन) से सरसों की बोनी कर किसान भाइयों ने 60 क्विं./हैक्टे तक उत्पादन प्राप्त किया है।

विशेषताः इस विधि से सरसों की रोपण तैयारी कर 15 से 20 दिन तक की स्वस्थ पौध 3x3 फीट पर रोपाई की जाती है।

उपयोगी किस्में: इस पद्धति से सरसों की खेती करने के लिए पूसा वरुणा, पूसा जय किसान, पूसा गोल्ड जैसी किस्में उत्तम पाई गई हैं।

एक हैक्टेयर हेतु आवश्यक आदान 
  1. बीज 250 ग्राम, 
  2. 500 मि.ली. गौ-मूत्र, 
  3. 500 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट, 
  4. 100 ग्राम गुड़, 
  5. 2 ग्राम बीजोपचार दवा (कार्बेन्डाजिम), 
  6. शेष आदान यथा उर्वरक, पौध संरक्षण औषधि, खरपतवार नाशी आदि की कृषि कार्यमाला अनुसार। 

रोपणी तैयार करने की विधि

(1) शोधन
  • 250 ग्राम बीज को 500 मि. ली. गुनगुने पानी में डालकर बीज की छंटाई की जाती है। 
  • छंटाई किए गए बीज को 500 मि.ली. ग्राम केंचुआ खाद एवं 100 ग्राम गुड़ में मिलाकर 6 घंटे की अवधि हेतु शोधन के लिए छाया रखा जाता है।
  • इसके बाद बीज को निथारकर 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम/कार्बोक्सिन फफूंदनाशक बीजोपचार करके, कपड़े की पोटली में 12 घंटे बांधकर अंकुरण हेतु रख दिया जाता है।

(2) रोपणी की बुआई
  • नर्सरी को जमीन से 15 से.मी. ऊंचाई, 1 मीटर चौड़ाई तथा आवश्यकतानुसार लंबाई 10 सेमी. मोटाई में वर्मी कम्पोस्ट/नाडेप कम्पोस्ट/कीट कम्पोस्ट को मिट्टी में मिलाकर तैयार करें। 
  • शोधित एवं उपचारित बीज को पतली तह एवं बराबर दूरी पर नर्सरी में पौध उगाने हेतु डाला जाता है।
  • नर्सरी में बीज उगने के उपरांत उसके ऊपर पतली सी तह वर्मी कम्पोस्ट की डाल दी जाती है तथा पलवार से पौधों के उगने तक ढंक दिया जावे एवं समय-समय पर झारे से पानी का छिड़काव करें।

(3) पौध की एस.एम.आई. विधि से रोपाई
  • नर्सरी 15 से 20 दिन में पौध रोपने हेतु तैयार हो जाती है।
  • पूर्व से तैयार खेत में 15 से 20 दिन अवस्था पौध को, पौध की दूरी व कतार से कतार की दूरी 3 फीट संधारित करते हुए एक-एक पौध की रोपाई करें।
  • रोपाई उपरांत जीवन रक्षक सिंचाई दिया जाना अति आवश्यक है। 

(4) अन्तः शस्य क्रियाएं
  • कोनोबीटर या हेण्ड व्हील हो या रोटरी बीडर चलाकर गुड़ाई की जाना अतिआवश्यक है। ऐसा करने से निम्नानुसार लाभ होते हैं।
  • खरपतवार नियंत्रण होता है।
  • भूमि भुरभुरी होती है व इसमें वायु संचार बढ़ता है जिससे जड़ों का अच्छा विकास होता है।
  • पौधों पर स्वतः ही मिट्टी चढ़ जाती है, जिससे उनका भूमि में स्थायित्व सुदृढ़ होता है।

(5) पौध पोषण प्रबंधन
  • अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट 2.5 टन/हे. की दर से अंतिम बखरनी के समय मिट्टी में मिलाएं। 
  • नत्रजन: स्फुर: पोटाश: सल्फर का अनुपात 60:40: 20:25: कि.ग्रा./ है. की दर से दिया जावे। नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय व आधी मात्रा सिंचाई के समय दी जाती है ।

( 6 ) सिंचाई प्रबंधन
  • रोपाई के 15-20 दिन बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।

सरसों की उन्नत खेती संबंधित सम्पूर्ण जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें: https://www.kisaanhelpline.com/crops/rabi/15_Mustard

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