सरसों की खेती (Mustard Farming) मुख्य रूप से भारत के सभी क्षेत्रों पर की जाती है। सरसों की खेती (Mustard Farming) हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की एक प्रमुख फसल है। यह प्रमुख तिलहन फसल है। सरसों की खेती (Mustard Farming) खास बात है की यह सिंचित और बारानी, दोनों ही अवस्थाओं में उगाई जा सकती है।
इसका उत्पादन भारत में आदिकाल से किया जा रहा है। इसकी खेती भारत में लगभग 66.34 लाख हेक्टेयर भूमि में की जाती है, जिससे लगभग 75 से 80 लाख उत्पादन मिलता है। सरसों की यदि वैज्ञानिक तकनीक से खेती की जाए, तो उत्पादक इसकी फसल से अधिकतम उपज प्राप्त कर सकते है। इस लेख में सरसों की उन्नत खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है।
उपयुक्त जलवायु: भारत में सरसों की खेती (Mustard Farming) शीत ऋतु में की जाती है। इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवष्यकता होती है। सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्ड़ल में बादल छायें रहना अच्छा नही रहता है। अगर इस प्रकार का मोसम होता है, तो फसल पर माहू या चैपा के आने की अधिक संभावना हो जाती हैं।
भूमि का चयन: सरसों की खेती रेतीली से लेकर भारी मटियार मृदाओ में की जा सकती है। लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। यह फसल हल्की क्षारीयता को सहन कर सकती है। लेकिन मृदा अम्लीय नही होनी चाहिए।
उन्नत किस्में:
सिंचित क्षेत्र: लक्ष्मी, नरेन्द्र अगेती राई- 4, वरूणा (टी- 59), बसंती (पीली), रोहिणी, माया, उर्वशी, नरेन्द्र स्वर्णा-राई- 8 (पीली), नरेन्द्र राई (एन डी आर- 8501), सौरभ, वसुन्धरा (आरएच- 9304) और अरावली (आरएन- 393) प्रमुख है।
असिंचित क्षेत्र: वैभव, वरूणा (टी – 59), पूसा बोल्ड और आरएच- 30 प्रमुख है।
विलम्ब से बुवाई: आशीर्वाद और वरदान प्रमुख है।
कटाई एवं गहाई:
फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है। अतः पोधों के पीले पड़ने एवं फलियां भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। फसल को सूखाकर थ्रेसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है।
पैदावार: सरसों की उपरोक्त उन्नत तकनीक द्वारा खेती करने पर असिंचित क्षेत्रो में 17 से 25 क्विंटल तथा सिंचित क्षेत्रो में 20 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दाने की उपज प्राप्त हो जाती है।