Mustard Farming: उन्नत प्रजातियों का स्वस्थ बीज, समय पर बुआई एवं फसल सुरक्षा तरीके अपनाकर सरसों की उत्पादकता को और अधिक बढ़ाया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में समय पर बुआई नहीं हो पाई है, वहां मध्य दिसंबर तक पूसा सरसों 25. पूसा सरसों 26 और पूसा सरसों 28 की बुआई की जा सकती है। ये प्रजातियां कम अवधि की हैं और देरी से बुआई करने पर भी अच्छी पैदावार देने में सक्षम हैं।
दिसंबर के अंतिम सप्ताह में तापमान में तीव्र गिरावट के कारण पाले की भी आशंका रहती है। इससे फसल बढ़वार और फली विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे बचने के लिए सल्फरयुक्त रसायनों का प्रयोग लाभकारी होता है। डाइमिथयाइल सल्फो ऑक्साइड का 0.2 प्रतिशत अथवा 0.1 प्रतिशत थायो यूरिया का छिड़काव लाभप्रद होता है। इसके साथ-साथ पाला पड़ने के समय सिंचाई करने से भी पाले का दुष्प्रभाव कम होता है।
सरसों में सिंचाई, जल को उपलब्धता के आधार पर करें। यदि एक सिंचाई उपलब्ध हो तो 50-60 दिनों की अवस्था पर करें। दो सिंचाई उपलब्ध होने की अवस्था पर पहली सिंचाई बुआई के 40-50 दिनों बाद एवं दूसरी सिंचाई 90-100 दिनों बाद करें। यदि तीन सिंचाइयां उपलब्ध हैं, तो पहली 30-35 व अन्य दो 30-35 दिनों के अन्तराल पर करें। बुआई के लगभग 2 माह बाद जब फलियों में दाने भरने लगे उस समय भी सिंचाई करें।
तिलहनी फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए 20-25 दिनों में एक बार निराई-गुड़ाई करने से सरसों की फसल और जल्दी से बढ़ती है। रसायनों द्वारा नियंत्रण करने पर बुआई से पूर्व फ्लुक्लोरेलिन (45 ई.सी.) को 2.2 लीटर प्रति हैक्टर 600-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें अन्यथा बुआई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व पंन्डीमेथिलिन (30 ई.सी.) 3.3 लीटर प्रति हैक्टर की दर से 600 से 800 लीटर पानी में अच्छी प्रकार मिलाकर छिड़काव करें। बुआई के 15 से 20 दिनों के अन्दर घने पौधों को निकालकर उनकी आपसी दूरी 15 सें.मी. कर देना आवश्यक है।
सरसों कुल को फसलों पर लगभग तीन दर्जन से भी अधिक हानिकारक कोटों का आक्रमण होता है। इसमें माहू एवं आरा मक्खी मुख्य कोट है। माहू कोट लगभग 35 से 70 प्रतिशत तक उपज में हानि एवं 5-10 प्रतिशत तक तेल की प्राप्ति में कमी करता है। जब कॉट का प्रकोप औसतन 25 कोट प्रति पौधा या 10 प्रतिशत पौधों पर हो जाए, तो निम्न से किसी एक कीटनाशक का प्रयोग जैसे इमीडाक्लोरोप्रिड (17.8 प्रतिशत) का 20-25 ग्राम या मोनोक्रोटोफॉस 35 डब्ल्यू.एस.सी. सक्रिय तत्व/हैक्टर या डाइमेथोएट 30 ई.सी. या मिधाइल डिमेटान 25 ई.सी. या क्यूनलफॉस 25 ई.सी. या फॉस्फोमिडान 85 डब्ल्यू.एस.सी. 250 मि. ली. या धार्यामडान 25 ई.सी. 1000 मि.ली. प्रति हैक्टर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा का भी उपयोग सिंचाई के बाद करना होता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि अधिक सिंचाई जल और नाइट्रोजन का प्रयोग न करें। अधिक पानी और नाइट्रोजन का प्रयोग करने से कई प्रकार के रोग जैसे-सफेद रतुआ, मृदु रोमिल असिता और तना गलन से पैदावार और तेल की गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है। सफेद रतुआ एवं अल्टरनेरिया/ काला धब्बा के लक्षण दिखाई देने पर 0.2 प्रतिशत डाइथेन एम-45, मैन्कोजेब या रिडोमिल का छिड़काव करना चाहिए। यदि आवश्यकता पड़े तो 10-15 दिनों के अंतराल पर एक और छिड़काव कर सकते हैं।
तोरिया में दाना झड़ने की आशंका रहती है इसलिए सही समय पर इसकी कटाई कर, खेत को अगली फसल के लिए तैयार करें। तोरिया के बाद पछेती गेहूं, गन्ना, प्याज आदि फसलें उगाई जा सकती हैं। चारा फसलों के साथ 10 प्रतिशत भाग पर सरसों के बीज, जो मिश्रित कर बोया गया था, उसकी कटाई आवश्यक रूप से करनी चाहिए अन्यथा सरसों को अधिक बढ्द्वार चारा फसलों की पैदावार को घटा देती है।