Mustard varieties: सरसों की निम्न किस्मों को प्रमुख रूप से अगेती, सामान्य समय व देर से बुवाई वाले, सिंचित, बारानी तथा लवणीय व क्षारीय क्षेत्रों में पैदावार के लिए वर्णित किया गया है। किसान भाईयों को भी अपनी मिट्टी के प्रकार, सिंचाई की उपलब्धता तथा बुवाई के समय के आधार पर उपयुक्त किस्मों का चयन करना चाहिए। किस्मों की औसत उपज तेल अंश, परिपक्वता आदि प्राप्त करने के लिए उन्नत तकनीकों को अपनाना आवश्यक है।
पूसा विजय (एन. पी. जे. -93) {Pusa Vijay (N.P.J.-93)}
यह प्रजाति 2008 वर्ष में दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों के लिए विमोचित की गई है। लेकिन इसकी अधिक पैदावार की दृष्टि से इसकी लोकप्रियता उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ रही हैं। यह प्रजाति सिंचित क्षेत्रों में समय से बुवाई के लिए सर्वोत्तम है। इसकी औसत पैदावार 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह उच्च तापक्रम, लवण्यता व गिरने के प्रति सहनशील है तथा इसके पौधों की उँचाई 170-180 सेन्टीमीटर तक होती है। यह मोटे दाने वाली (6 ग्राम / 1000 दाने) प्रजाति हैं जिनमें तेल की औसत मात्रा 38.5 प्रतिशत है। यह किस्म बुवाई के 140 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है। यह सफेद रतुआ चूर्ण फफूंदी, मृदुरोमिल आसिता तथा स्क्लेरोटीनिया सड़न के प्रति सहिष्णु है।
पूसा जगन्नाथ (वी. एस. एल. -5 ) {Pusa Jagannath (V.S.L.-5)}
इस प्रजाति का विमोचन केन्द्रीय प्रजाति विमोचक समिति द्वारा वर्ष 1999 में उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों के लिए किया गया है। यह समय से सिंचित क्षेत्रों में बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसका दाना मध्यम (5.5 ग्राम / 1000) आकार का होता जिसमे तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है। यह बुवाई के 125 दिन में तैयार हो जाती है।
पूसा बोल्ड {Pusa bold}
इस प्रजाति का विमोचन 1985 में दिल्ली व पूर्वी राज्यों के लिए किया गया है परन्तु अच्छे प्रदर्शन व लोकप्रियता के कारण इसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी बंगाल, बिहार व उड़ीसा राज्यों के लिए भी अनुमोदित किया गया। इसके पौधों की औसत ऊँचाई 180 सेन्टीमीटर होती है। इसकी फलियाँ लम्बी तथा पकने पर चटखती नही हैं। यह समय पर सिंचित क्षेत्रों मे बुआई के लिए उपयुक्त है। यह बुवाई के 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दानों में तेल की मात्रा 40 प्रतिशत व औसत पैदावार 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
पूसा जय किसान (बायो-902) {Pusa Jai Kisan (Bio-902)}
पादप जैव प्रौद्योगिकी द्वारा विकसित इस प्रजाति का विमोचन केन्द्रीय प्रजाति समिति द्वारा वर्ष 1993 में राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी महाराष्ट्र के सिंचित क्षेत्रों के लिए किया गया है। यह समय से बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 25.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसका दाना मध्यम (6.8 ग्राम / 1000) आकार का व कालापन लिये हुये भूरे रंग का होता है जिसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है यह बुवाई के 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत उँचाई 175-190 सेन्टीमीटर है। फसल पकने पर फलियों के दाने झड़ते नहीं है।
पूसा तारक (ई. जे. 13) {Pusa Tarak (EJ 13)}
यह अगेती प्रजाति है और इसे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिए वर्ष 2009 में विमोचित किया गया। इसकी औसत पैदावार 19.24 क्विटल प्रति हेक्टेयर है इसकी बुवाई सितम्बर से दिसम्बर तक कर सकते हैं। इसकी अगेती फसल की कटाई के बाद प्याज व चन्ने की खेती कर सकते हैं। इसमें तेल की औसत मात्रा 40.1 प्रतिशत है। यह पूरी तरह पक जाने पर भी नहीं झड़ती है। यह बुवाई के 115-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
पूसा महक (जे.डी.-6) {Pusa Mehak (JD-6)}
इस प्रजाति का विमोचन वर्ष 2005 में केन्द्रीय प्रजाति विमोचन द्वारा अगेती प्रजाति के रूप में किया गया तथा बिहार, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, असम, दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी के सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल पाया गया है। इसकी औसत पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसमें तेल की औसत मात्रा 40 प्रतिशत है और बुवाई के 115-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में धान की कटाई के बाद इस प्रजाति को बोया जा सकता है। इसकी सितम्बर बुवाई के बाद उत्तरी भारत में प्याज व चने की खेती की जा सकती है
पूसा अग्रहणी (एस.ई. जे. - 2) {Pusa Agrahani (S.E.J. - 2)}
इस प्रजाति का विमोचन 1998 में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, बिहार, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा तथा असम के लिए किया में गया। यह सिंचित अवस्था में अगेती तथा पछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है यह कम अवधि (110 दिन) में पकने वाली राया की प्रथम प्रजाति है तथा तोरिया का एक अच्छा विकल्प है। इसे देश के उत्तर-पूर्वी व पूर्वी राज्यों में धान की फसल के बाद बोया जा सकता है। इसका दाना मध्यम (4.5 ग्राम / 1000) आकार का है जिसमे तेल की मात्रा 39 प्रतिशत है। फसल पीली पड़ने पर तुरन्त काटकर तिरपाल पर एकत्र करके सुखाकर मढ़ाई करनी चाहिए अन्यथा देर से कटाई करने पर झड़ने का खतरा रहता है।
पूसा सरसों- -21 (एल.ई.एस.-127) {Pusa Mustard - -21 (LES-127)}
यह प्रजाति वर्ष 2007 में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू कश्मीर व हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में उगाने के लिए जारी की गई थी। यह कम ईरूसिक अम्ल (2 प्रतिशत से कम) वाली प्रजाति है। यह सिंचित क्षेत्रों में तथा समय पर बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसमें तेल की औसत मात्रा 36 प्रतिशत है। इसकी औसत पैदावार 21.10 विवंटल प्रति हेक्टेयर है।
पूसा सरसों- 1-22 (एल.ई.टी.-17) {Pusa Mustard - 1-22 (L.E.T.-17)}
पूसा सरसों- 1-22 (एल.ई.टी.-17) प्रजाति वर्ष 2008 में गुजरात व पश्चिमी महाराष्ट्र के सिंचित क्षेत्रों के लिए समय पर बुवाई के लिए अनुमोदित की गई थी। यह कम ईसिक अम्ल (2 प्रतिशत से कम) वाली प्रजाति है। इसकी पैदावार 20.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रजाति 142 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके 1000 दानों का वजन 3.6 ग्राम होता है तथा इसकी पैदावार क्षमता 27.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
पूसा सरसों-24 (एल.ई.टी. - 18 ) {Pusa Mustard-24 (L.E.T. - 18 )}
पूसा सरसों-24 (एल.ई.टी. - 18 ) प्रजाति वर्ष 2008 में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू कश्मीर व हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों लिए जारी की गई थी। यह समय पर बोने के लिए उपयुक्त किस्म है तथा 20.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है यह बुवाई के 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके 1000 दानों का वजन 4 ग्राम होता है यह कम इससिक अम्ल (2 प्रतिशत से कम) की प्रजाति है।
सरसों- -25 (एन. पी. जे. - 112 ) {Mustard - -25 (N.P.J. - 112 )}
सरसों- -25 (एन. पी. जे. - 112 ) प्रजाति का विमोचन वर्ष 2010 में केन्द्रीय प्रजाति विमोचन समिति द्वारा राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू कश्मीर व हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए किया गया था। यह सिंचित अवस्था में अगेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इतकी आसत पैदावार 14.7 क्विटल प्रति हेक्टेयर है। यह सितम्बर (खरीफ की फसल के काटने के बाद) से मध्य दिसम्बर तक बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसकी ऊँचाई 110 से 125 सेन्टीमीटर होती है। यह बारीक दाने वाली प्रजाति है। यह 107 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा इसके दानों में तेल का औसत 39.6 प्रतिशत है।
पूसा सरसों-26 (एन. पी. जे. 113 ) {Pusa Mustard-26 (N.P.J. 113)}
पूसा सरसों-26 (एन. पी. जे. 113 ) बारीक दाने वाली अगेती प्रजाति है। इसके पौधों की ऊँचाई 110-125 सेमी. होती है। यह बुवाई के 126 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं। इस प्रजाति को दिल्ली पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में मध्य सितम्बर में बुवाई करके दिसम्बर के अंत तक काटकर गेहूं प्याज तथा मक्का आदि की फसल लेने के लिए अधिक उपयुक्त है।
पूसा सरसों- 1-27 (ई.जे.-17) {Pusa Mustard - 1-27 (EJ-17)}
पूसा सरसों- 1-27 (ई.जे.-17) प्रजाति 2010 में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा राजस्थान के कोटा क्षेत्रों में उगाने के अनुकूल है। यह अगेती बुवाई सितम्बर के लिए अनूकूल है। इसकी औसतन पैदावार 15.35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसमें 417 प्रतिशत तेल पाया जाता है। यह बुवाई के 118 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह अंकुरण के समय तथा पकने के समय अधिक तापक्रम के प्रति सहनशील है यह तोरिया का एक अच्छा विकल्प है। यह सितम्बर से मध्य दिसम्बर तक फसल चक्र के अनुकूल है।
पूसा सरसों-28 (एन. पी. जे. - 124 ) {Pusa Mustard-28 (N.P.J. - 124 )}
पूसा सरसों-28 (एन. पी. जे. - 124 ) प्रजाति 2010 में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व जम्मू कश्मीर के मैदानी क्षेत्रों दिल्ली एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अगेती बुवाई के लिए अनुमोदित की गई। इसकी औसतन पैदावार 20 क्विटल प्रति हेक्टेयर है। यह बुवाई के 107 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह उच्च तापमान को सहन करने में सक्षम है। इसमें 415 प्रतिशत तेल पाया जाता है। यह सिंचित क्षेत्रों में तोरिया का एक अच्छा विकल्प है। यह सितम्बर से मध्य दिसम्बर तक फसल चक्र के लिए अनुकूल है।
पूसा सरसों 29 (एल.ई.टी. - 36) {Pusa Mustard 29 (L.E.T. - 36)}
पूसा सरसों 29 (एल.ई.टी. - 36) 2013 में पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों के लिए अनुमोदित की गई। यह कम ईरूसिक अम्ल (2 प्रतिशत से कम) वाली प्रजाति है। यह सिचित क्षेत्रों में 21.69 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है। इसमें तेल की मात्रा 37.2 प्रतिशत तथा बुवाई के 143 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह अंकुरण एवं पकने के समय अधिक तापमान के प्रति सहनशील है।
पूसा सरसों-30 (एल. ई. एस. - 43 ) {Pusa Mustard-30 (L.E.S.-43)}
पूसा सरसों-30 (एल. ई. एस. - 43 ) प्रजाति 2013 में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व उत्तराखण्ड के मैदानी क्षेत्रों तथा पूर्वी राजस्थान में समय से सिंचित क्षेत्रों में बुवाई के लिए जारी की गई। इसके 1000 दानों का भार 5.38 ग्राम तथा इसमें ईरूसिक अम्ल (2 प्रतिशत से कम) होता है। इसमें 37.7 प्रतिशत तेल होता है तथा यह बुवाई के 137 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 18.24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
पूसा करिश्मा (एल.ई.एस.-39) {Pusa Karishma (LES-39)}
पूसा करिश्मा (एल.ई.एस.-39) वर्ष 2005 में अनुमोदित कम इरूसिक अम्ल वाली प्रथम प्रजाति है। यह सिंचित क्षेत्रों में तथा समय पर बुवाई के लिए उपयुक्त है। यह 22.0 क्विटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए उपयुक्त है।
पूसा स्वर्णिम (आई.जी. सी. -01) {Pusa Swarnim (IGC-01)}
पूसा स्वर्णिम (आई.जी. सी. -01) करण राई की वर्ष 2003 में अनुमोदित प्रजाति है जो राजस्थान, पंजाब, हरियाणा दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर व उत्तराखण्ड के सिंचित तथा बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह सिंचित अवस्था में 167 क्विंटल तथा बारानी क्षेत्रो में 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है। इसमे तेल की मात्रा 40.43 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म में उच्च दर्जे की सूखा सहिष्णुता है तथा सफेद रतुआ के प्रति उच्च प्रतिरोधकता है। यह लम्बी अवधि की प्रजाति है।
पूसा आदित्य (एन.पी.सी. - 9) Pusa Aditya (NPC - 9)
पूसा आदित्य (एन.पी.सी. - 9) करण राई की प्रमुख प्रजाति है जिसे वर्ष 2006 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रा दिल्ली के लिए बारानी अवस्थाओं में समय पर बुवाई के लिए विमोचन किया गया। इसकी औसत पैदावार 14.00 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रजाति बारानी अवस्थाओं में एवं कम उपजाऊ भूमि में अच्छी पैदावार देती है तथा डाउनी मिल्ड्यू व सफेद रतुआ रोग के प्रतिरोधी है। यह झुलसा तना गलन, पाउड़ी मिल्ड्यू के प्रति भी सहिष्णु और चैंपा के प्रति सहनशील है। इस प्रजाति के दाने बहुत छोटे (4 ग्राम / 1000) आकार के हैं। इसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है। इस प्रजाति के पौधों की औसत ऊँचाई 200-230 सेन्टीमीटर होती है। यह विपरीत परिस्थिति में अच्छी उपज देने वाली करण राई की महत्वपूर्ण प्रजाति है।
टी-59 (वरुणा) {T-59 (Varuna)}
मध्यम कद वाली इस किस्म के पौधे की शाखाएं फैली हुई होती है। यह 125-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी फलियां चौड़ी व छोटी होती है। दाने मोटे तथा काले रंग के होते हैं। औसतन 10-12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज होती है। तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है। यह सफेद रतुआ रोग के प्रति संवेदनशील है लेकिन मोयला पूसा कल्याण की तुलना में कम लगता है।
पीआर-15 (क्रांति) {PR-15 (Kranti)}
असिंचित क्षेत्रों में बुवाई के लिये उपयुक्त इस किस्म के पौधे 155-200 सेन्टीमीटर ऊंचे, पत्तियाँ रोयेंदार, तना चिकना और फूल हल्के पीले रंग के होते हैं। इसका दाना मोटा, कत्थई एवं इसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है। 125-130 दिन में पक जाती है। वरूणा की अपेक्षा अल्टरनेरिया रोग व पाले के प्रति अधिक सहनशील है। तुलासिता व सफेद रोली रोधक है।
भारत सरसों-1 (एन. आर. सी. एच. बी. 101 ) {Bharat Sarso-1 (NRCHB 101)}
भारत सरसों-1 (एन. आर. सी. एच. बी. 101 ) किस्न देर से बोई जाने वाली एवं सिंचित क्षेत्र के लिये उपयुक्त है। इसकी ऊँचाई 170-200 सेन्टीमीटर होती है। यह किस्म 105 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 34 से 42 प्रतिशत होती है। इस फिल्म की उपज 13 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
आर. एच. 749 (2013) {R. H. 749 (2013)}
आर. एच. 749 (2013) किस्म 146-148 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 39 प्रतिशत होती है। इस किस्म की उपज 24 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह किरम सिंचित क्षेत्र के लिये उपयुक्त है।
लक्ष्मी (प्रोविजनल) {Lakshmi (Provisional)}
लक्ष्मी (प्रोविजनल) किस्म 140 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा इसके पौधे की औसत ऊँचाई 180-190 सेन्टीमीटर तथा अधिक फलियों वाली इसकी औसत उपज 22-23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तेल की मात्रा 40-41 प्रतिशत तथा 1000 दानों का भार 5-6 ग्राम होता है।
वसुन्धरा (आर.एच.- 9304) {Vasundhara (RH- 9304)}
समय पर एवं सिंचित क्षेत्र में बोई जाने वाली इस किस्म का पौधा 180 से 190 सेन्टीमीटर ऊँचा, पत्ती अनियंत्रित गहरे दांतेयुक्त, पत्ती की निचली सतह हल्की रोमयुक्त एवं सफेद मध्यम शिरा होता है फली 47-5 सेन्टीमीटर लम्बी एवं प्रति फली में 14-16 बीज होते हैं। 130-135 दिन में पकने वाली इस किस्म की पैदावार 25-27 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है। यह किस्म आडी गिरने तथा फली छिटकने से प्रतिरोधी है तथा सफेद रोली से मध्यम प्रतिरोधी है।
एन.आर.सी.डी.आर. 2 (2007) {N.R.C.D.R. 2 (2007)}
एन.आर.सी.डी.आर. 2 (2007) किस्म 131 156 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 36.5 से 42.5 प्रतिशत होती है। इस किस्म की उपज 19 से 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
स्वर्ण ज्योति (आर.एच.-9802 ) {Swarna Jyoti (RH-9802 )}
देर से बोई जाने वाली एवं सिंचित क्षेत्र के लिये उपयुक्त इस किस्म का पौधा मध्यम ऊँचाई का (130-140 सेन्टीमीटर) होता है। 35-40 दिन में फूल आने वाली यह किस्म 130-135 दिन तक पक जाती है। इसकी पत्तियाँ तीखी नोकयुक्त, तना हरा प्राथमिक शाखाएँ] 8-10. फली 35-4 सेन्टीमीटर लम्बी 10-12 बीज प्रति फली 1000 दानों का वजन 4.0 से 5 ग्राम होता है। तेल की मात्रा 39-42 प्रतिशत होती है। यह किस्म 15 नवम्बर तक बोई जाने पर भी अच्छी पैदावार देती है इसकी औसत पैदावार 13-15 क्विटल प्रति हेक्टेयर है। यह आड़ी गिरने एवं फली छिटकने से प्रतिरोधी, पाले के लिये मध्यम सहनशील व सफेद रतुआ से मध्यम प्रतिरोधी है।
आर. आर. एन. 573 (2013) {R. R. N. 573 (2013)}
आर. आर. एन. 573 (2013) समय से बुवाई के लिये उपयुक्त किस्म है पौधा लगभग 168 से 176 सेन्टीमीटर ऊँचा व इसकी पत्तियाँ चौड़ी, फलियों की नोक एक तरफ मुड़ी हुई होती है। फसल की परिपक्वता अवधि 136 से 138 दिन है। इसके 1000 दानों का भार 44 ग्राम है तथा तेल की मात्रा 41.4 प्रतिशत है। यह किस्म रोग एवं कीटों के प्रति मध्यम सहिष्णु है इसकी औसत उपज 20-22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
गिरीराज (डी.आर.एम. आर. आई. जे. - 31 ) {Giriraj (D.R.M.R.I.J. - 31 )}
गिरीराज (डी.आर.एम. आर. आई. जे. - 31) किस्म 137-153 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 42 प्रतिशत होती है। इस किस्म की उपज 22 से 27 क्विटल प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
आर.एच.-406 (2013) {RH-406 (2013)}
आर.एच.-406 (2013) किस्म 145-150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है। इस किस्म की उपज 22 से 23 क्विटल प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म असिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
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