वर्तमान समय में मौसम में बदलाव और कोहरे के कारण तापमान में उतार-चढ़ाव हो रहा है, जिससे किसानों के खेतों में लगी आलू की फसल में झुलसा रोग और सरसों में माहू और आरा मक्खी कीट लगने की संभावना बढ़ गयी है। नुकसान से बचने के लिए किसान आलू और सरसों की फसल को बीमारियों और कीटों से बचा सकते हैं।
आइये जानते हैं कीट एवं रोग प्रबंधन के महत्वपूर्ण उपाय
आलू में झुलसा रोग की रोकथाम
आलू में झुलसा रोग दो प्रकार का होता है. पहला- पछेती झुलसा (late blight) और दूसरा अगेती झुलसा(early blight)।
पछेती झुलसा (late blight)
आलू में यह रोग फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टैन्स नामक कवक के कारण होता है। जब पर्यावरण का तापमान 10 से 19 डिग्री सेल्सियस होता है, तो वातावरण आलू में पछेती झुलसा रोग के लिए उपयुक्त होता है। किसान इस रोग को 'अफत' भी कहते हैं। यदि फसल इस रोग से ग्रसित हो और बारिश हो जाए तो यह रोग बहुत ही कम समय में फसल को नष्ट कर देता है। इस रोग के कारण आलू की पत्तियां सूख जाती हैं।
नियंत्रण
फसल की सुरक्षा के लिए किसानों को मैंकोजेब 57% जी.सी.एच. का प्रयोग करना चाहिए। 10-15 दिन के अंतराल पर. पानी में घोल बनाकर 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। संक्रमित फसल पर मैन्कोजेब और मेटालैक्सिल या कार्बेन्डाजिम और मैन्कोजेब का संयुक्त उत्पाद 2.5 ग्राम प्रति लीटर या 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
अगेती झुलसा(early blight)
आलू में यह रोग अल्टरनेरिया सोलाने नामक कवक के कारण होता है। आमतौर पर निचली पत्तियों पर गोलाकार धब्बे बनते हैं, जिनके अंदर एक संकेंद्रित वलय बनता है। धब्बेदार पत्तियाँ पीली होकर सूख जाती हैं। बिहार में यह रोग देर से होता है जबकि ठंडे क्षेत्रों में इस फफूंद के लिए उपयुक्त वातावरण पहले बन जाता है।
नियंत्रण
फसल में इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही जिनेब 75% घुलनशील चूर्ण 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या मैन्कोजेब 75% घुलनशील चूर्ण 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% घुलनशील चूर्ण का 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
सरसों के प्रमुख कीट
माहू (Aphid)
सरसों का एक प्रमुख कीट है माहू। माहू कीट पीले, हरे या गहरे भूरे रंग का मुलायम, पंखों वाला एवं पंखहीन कीट है। इस कीट के वयस्क एवं शिशु दोनों ही कोमल पत्तियों, टहनियों, तनों, फूलों के पुष्पक्रमों एवं फलियों से रस चूसते हैं। इसके आक्रमण से पत्तियाँ मुड़ जाती हैं। पुष्पक्रम पर आक्रमण की स्थिति में फलियाँ नहीं बनती हैं। यह शहद जैसा पदार्थ भी स्रावित करता है, जिस पर काला कवक उगता है। इससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है। इसकी मादाएं बिना खाए-पिए शिशु कीड़े पैदा करती हैं, जो 5-6 दिनों में परिपक्व होकर प्रजनन शुरू कर देते हैं। इस प्रकार, जब हमला गंभीर होता है, तो पूरा पौधा माहू कीटों से ढका हुआ दिखाई देता है।
नियंत्रण
- फसलों की बुआई समय पर करनी चाहिए।
- अनुशंसित मात्रा में नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग करें।
- खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
- खेत में प्रति हेक्टेयर 10 पीले जाल का प्रयोग करना चाहिए।
- नीम आधारित कीटनाशक एज़ाडिरेक्टिन 1500 पीपीएम का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
- अधिक प्रकोप होने पर रासायनिक कीटनाशक के रूप में ऑक्सीडेमेथान मिथाइल 25 ईसी 1 मिली प्रति लीटर या थायोमेथोक्साम 25% डब्लूजी 1 ग्राम प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएस 1 मिली प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
आरा मक्खी (saw fly)
यह वानस्पतिक वृद्धि अवस्था में सरसों का एक प्रमुख कीट है। वयस्क कीट नारंगी-पीले रंग के होते हैं और उनके सिर काले होते हैं। इसकी मादा का ओविपोसिटर आरी जैसा होता है, इसलिए इसे आरा मक्खी कहा जाता है। यह पत्तियों के किनारे पर अंडे देती है, जिनसे 3-5 दिन में प्यूपा निकल आता है। इसका प्यूपा पत्तियों को काटकर नुकसान पहुंचाता है।
नियंत्रण
- फसल काटने के बाद खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी में मौजूद इस कीट का प्यूपा मिट्टी से बाहर निकलकर नष्ट हो जाए।
- नीम आधारित कीटनाशक एज़ाडिरेक्टिन 1500 पीपीएम का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
- रासायनिक कीटनाशकों में एनवेलरेट 0.4% डीपी शामिल है। या मैलथियान 5% घोल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए या ऑक्सीडेटॉन मिथाइल 25 ईसी का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से फसल पर छिड़काव करना चाहिए।