Teak Cultivation : सागवान (सागौन) की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। इसका उपयोग कीमती फर्नीचर से लेकर प्लाईवुड और रेलिंग तक हर चीज में किया जाता है। दीमक सागौन की लकड़ी नहीं खाते, इसलिए इस लकड़ी से बनी कोई भी चीज कई सौ साल तक चलती है। पारंपरिक खेती की तुलना में सागौन की खेती में बहुत कम श्रम की आवश्यकता होती है।
सागौन की उन्नत किस्में
सागौन की कई उन्नत किस्में हैं, जिन्हे ऊगा कर अच्छी कमाई भी जा रही है। उपज की दृष्टि से ये सभी किस्में सामान्य हैं, इन्हें विभिन्न जलवायु के अनुसार उगाया जाता है।
सागौन की कुछ प्रमुख किस्में
दक्षिण और मध्य अमेरिकी सागौन, पश्चिम अफ्रीकी सागौन, आदिलाबाद सागौन, नीलांबर (मालाबार) सागौन, गोदावरी सागौन और कोनी सागौन इस प्रकार हैं। इन सभी प्रकार के वृक्षों की लंबाई भिन्न-भिन्न पाई जाती है।
सागौन की खेती का समय
किसानों को सागौन की खेती से पहले गर्मियों में 4 फीट गहरा गड्ढा खोदना चाहिए। इसके बाद बरसात के मौसम में गोबर या कम्पोस्ट खाद डालकर पौधे लगाना चाहिए। सागौन की खेती के लिए जून-जुलाई का महीना सबसे उपयुक्त होता है।
सागौन के पेड़ लगाने की विधि
सबसे पहले खेत की 2 से 3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। गड्ढे में खाद, कीटनाशक आदि अवश्य डालें। प्रति एकड़ खेत में 500 से 800 से अधिक पौधे न लगाएं। पौधे से पौधे की दूरी 5 मीटर रखनी चाहिए।
सिंचाई
सागौन के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसलिए इसके पौधे रोपने के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए और एक महीने तक मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में दो बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, जबकि सर्दी के मौसम में इसके पौधों को 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। इसके अलावा बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही इसके पौधों की सिंचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण
सागौन की खेती के शुरूआती दो-तीन वर्षों में खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। समय-समय पर खरपतवार हटाने का अभियान चलाया जाना चाहिए। इस अभियान को पहले वर्ष में तीन बार, दूसरे वर्ष में दो बार और तीसरे वर्ष में एक बार अच्छी तरह चलाना आवश्यक है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि सागौन एक ऐसी प्रजाति का वृक्ष है, जिसकी वृद्धि और विकास के लिए पर्याप्त धूप आवश्यक है।
सागौन की खेती से संबंधित समस्याएं
नेक्रोसिस और दीमक जैसे कीट बढ़ते सागौन के पौधे को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। सागौन के पौधे में आमतौर पर पॉलीपोरस ज़ोनलिस होते हैं जो पौधे की जड़ को सड़ते हैं। गुलाबी रंग का कवक पौधे को खोखला कर देता है। ओलिविया टेक्टन और अनसिनुला टेक्टन पाउडरयुक्त फफूंदी का कारण बनते हैं जो असमय पत्तियों के झड़ने का कारण बनते हैं। इसके बाद, पौधे की सुरक्षा के लिए रोगनिरोधी उपाय करना आवश्यक हो जाता है। इन रोगों से लड़ने में कैलोट्रोपिस प्रोसेरा, धतूरा धातु और अजादिराछा इंडिका की ताजी पत्तियों का रस बेहद कारगर साबित होता है। जैविक और अकार्बनिक उर्वरकों की तुलना में, यह हानिकारक कीटों को अच्छी तरह से समाप्त करता है और साथ ही पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
सागौन की खेती के लाभ
आम तौर पर सागौन के पेड़ की कीमत की बात करें तो यह तैयार होने के बाद लंबाई और मोटाई के हिसाब से 25 हजार से 40 हजार रुपये प्रति पेड़ तक बिकता है। जानकारों के मुताबिक अगर किसान एक एकड़ जमीन में संकर सागौन की खेती करें तो करीब 500 सागौन के पौधे लगाए जाते हैं। और जब ये पौधे कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं तो इससे होने वाली आमदनी करोड़ों में मुनाफा देती है।
सागौन की लकड़ी का उपयोग
इसकी लकड़ी हल्की और मजबूत होती है। इसकी खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होती है। सागौन की इमारती लकड़ी का उपयोग बिस्तर बनाने, कुर्सियाँ बनाने, घरों में दरवाजे और खिड़कियाँ बनाने, रेल के डिब्बे बनाने, हवाई जहाज बनाने, दुकानों में काउंटर बनाने आदि के लिए किया जाता है। इनकी लकड़ी से बनी चीजें सालों तक चलती हैं।