ड्रैगन फ्रूट के पौधे का उपयोग सजावट के साथ-साथ फलों के उत्पादन के लिए भी किया जाता है। ड्रैगन फ्रूट बाहर से अनानास की तरह दिखता है, लेकिन इसके अंदर का गूदा सफेद और काले रंग के छोटे-छोटे बीजों से भरा होता है। इस आकर्षक और रहस्यमयी फल का रंग लाल गुलाबी रंग का होता है। इसके छिलके में हरे रंग की रेखाएं होती हैं, जो ड्रैगन की तरह दिखाई देती हैं, इसलिए इसे ड्रैगन फ्रूट के नाम से भी जाना जाता है। ड्रैगन फ्रूट को ताजे फल के रूप में खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके साथ ही फल से जैम, आइसक्रीम, जेली, जूस और वाइन भी बनाई जा सकती है। सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका उपयोग फेस पैक के रूप में किया जाता है। ड्रैगन फ्रूट सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। यही कारण है कि इसकी लोकप्रियता अधिक है। इसकी खेती आम तौर पर थाईलैंड, वियतनाम, इज़राइल और श्रीलंका में लोकप्रिय है। बाजार में ड्रैगन फ्रूट के ऊंचे दामों के कारण हाल के दिनों में भारत में इसकी खेती बढ़ रही है। कम वर्षा वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।
अनुकूल जलवायु
ड्रैगन फ्रूट उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है। और 50 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता है। इसकी खेती के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। ज्यादा धूप ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए फायदेमंद नहीं होती है। जिन क्षेत्रों में धूप अधिक पड़ती है, वहाँ छायादार स्थानों में भी इसकी खेती की जा सकती है।
खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। अच्छे कार्बनिक पदार्थ और जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 तक उपयुक्त माना जाता है।
खेत की तैयारी
अच्छी तरह जुताई कर खेत को कीड़ों और खरपतवारों से मुक्त करना चाहिए। अच्छी सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए।
बुवाई या रोपण का तरीका
ड्रैगन फ्रूट का प्रचार कटिंग द्वारा किया जाता है। इसे बीज से भी बोया जा सकता है, लेकिन बीज से पौधा बनने में समय अधिक लगता है और उस पौधे में मूल वृक्ष के गुण आने की संभावना भी कम होती है। इसलिए यह इसकी व्यावसायिक खेती के अनुकूल नहीं माना जाता है। उच्च गुणवत्ता के पौधे की छंटाई कर 20 सेंमी. लंबी कलम को खेत में लगाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। कलम को लगाने से पहले मूल पेड़ की छंटाई करके इनका ढेर बना लेना चाहिए। फिर इन पौधों को सूखे गोबर के साथ मिलाकर मिट्टी, बालू और गोबर के 1:1:2 के अनुपात में मिलाकर रोप देना चाहिए। लगाने से पहले उन्हें छाया में रखना चाहिए ताकि सूरज की तेज रोशनी कलम को नुकसान न पहुंचा सके। दो पौधे लगाने के लिए कम से कम 2 मीटर की जगह छोड़नी चाहिए। पौधे लगाने के लिए 60 सेमी. गहरा और 60 सेमी. चौड़ा गड्ढा खोदना चाहिए। इन गड्ढों में पौधे रोपने के बाद मिट्टी, खाद और 100 ग्राम सुपर फास्फेट भी मिलाना चाहिए। इस तरह एक एकड़ खेत में ड्रैगन फ्रूट के अधिकतम 1700 पौधे लगाए जा सकते हैं। इन पौधों को तेजी से बढ़ने में मदद और सहारा देने के लिए लकड़ी या कंक्रीट का इस्तेमाल किया जा सकता है।
खाद और उर्वरक
ड्रैगन फ्रूट के पौधों की वृद्धि में जीवाश्म तत्व प्रमुख भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए 10 से 15 किग्रा जैविक खाद या जैविक खाद देना चाहिए। इसके बाद हर साल जैविक खाद की मात्रा दो किलो बढ़ानी चाहिए। इस फसल के समुचित विकास के लिए रासायनिक उर्वरकों की भी आवश्यकता होती है। वानस्पतिक अवस्था में ड्रैगन फ्रूट को रासायनिक खाद पोटाश: सुपर फास्फेट: यूरिया 40:90:70 ग्राम प्रति पौधा की दर से देना चाहिए। जब पौधों में फल लगने का समय हो तो नाइट्रोजन की मात्रा कम तथा पोटाश की मात्रा अधिक देनी चाहिए ताकि उपज अधिक हो। फूल आने से लेकर फलने तक यानी फूल आने से ठीक पहले अप्रैल में फल लगते हैं। इस प्रकार, रोपण, फूल और फलों के विकास के समय और गर्म और शुष्क मौसम में बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके लिए सिंचाई की बूंद-बूंद विधि का प्रयोग करना चाहिए।
पुष्पण व फलन
ड्रैगन फ्रूट के पौधे एक साल में ही फल देने लगते हैं। इसके पौधों में मई से जून के महीने में फूल आते हैं और अगस्त से दिसंबर तक फल लगते हैं। फूल आने के एक महीने बाद ड्रैगन फ्रूट की तुड़ाई की जा सकती है। दिसम्बर माह तक पौधे फल देने लगते हैं। इस अवधि में एक पेड़ से कम से कम छह बार फल तोड़े जा सकते हैं। फल पके हैं या नहीं, इसका पता फलों के रंग से आसानी से लगाया जा सकता है। कच्चे फलों का रंग गहरा हरा होता है, जबकि पकने पर यह लाल हो जाता है। रंग बदलने के तीन से चार दिनों के भीतर फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। यदि फलों का निर्यात किया जाना है तो उन्हें मलिनकिरण के एक दिन के भीतर तोड़ लेना चाहिए।
कीट और रोग
आमतौर पर ड्रैगन फ्रूट में कीट और रोगों का प्रकोप कम होता है। फिर भी इसमें एन्थ्रेक्नोज रोग और थ्रिप्स का प्रकोप देखा गया है। एन्थ्रेक्नोज रोग के नियंत्रण के लिए मैंकोजेब घोल का 0.25 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। थ्रिप्स के लिए एसीफेट का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए।
पैदावार
ड्रैगन फ्रूट एक सीजन में 3 से 4 बार फल देता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 800 ग्राम तक होता है। एक पौधा 45 से 125 फल देता है। इस प्रकार इसकी औसत उपज पांच से छह टन प्रति एकड़ होती है।
स्त्रोत: ICAR फल-फूल