रबी (Rabi) मौसम में बुवाई अक्टूबर-नवम्बर माह में तथा रोपाई दिसंबर से जनवरी के पहले सप्ताह तक की जाती है। यह मौसम प्याज की खेती के लिए सर्वोत्तम है। यह प्याज अधिकतर ग्रीष्मकाल में आने के कारण इसे ग्रीष्मकालीन प्याज भी कहते हैं। प्याज के अंतर्गत क्षेत्रफल का 60 प्रतिशत इसी मौसम में लगाया जाता है। महाराष्ट्र के कोकन का तटीय भाग, चंद्रपूर तथा भंडारा के क्षेत्र को छोड़कर संपूर्ण राज्य में रबी मौसम में प्याज की खेती होती है।
उत्तर भारत के सभी राज्यों में इसी मौसम में प्याज की खेती की जाती है। नवम्बर माह के अंत में लगायी फसल मार्च-अप्रैल में निकाली जाती है। इस समय पत्तियाँ अच्छी तरह सूखती है तथा अच्छी तरह सूखा हुआ प्याज अधिक समय भण्डारित होता है। रबी प्याज की रोपाई में जितनी देर होती है, उतनी ही उपज घटती है तथा प्याज का आकार छोटा रह जाता है। रबी प्याज लगाने में अधिक देरी होने से यह जून में तैयार होता है और उस समय वर्षा होने से प्याज को नुकसान होता है तथा यह अच्छी तरह सूख नहीं पाता है फलस्वरुप भण्डारण में अधिक सड़ने लगता है। रबी प्याज को अप्रैल से जून तक निकाला जाता है। इस दौरान अधिक उत्पादन होने से अगस्त माह तक बाजार भाव अच्छे नहीं मिलते हैं। इस दौरान अधिक उत्पादन होने से अगस्त माह तक बाजार भाव अच्छे नहीं मिलते है। इन परिस्थितियों में प्याज का भण्डारण करना लाभदायक रहता है। भण्डारण के लिए नवम्बर माह के अंत से दिसम्बर माह के मध्य तक की गयी रोपाई सर्वोत्तम होती है।
नर्सरी में पौध तैयार करना: रबी प्याज की उन्नत किस्म के बीज को 3 मीटर लम्बी, 1 मीटर चौड़ी व 20-25 से.मी. ऊंची उठी हुई क्यारियां बनाकर बोनी करें। 500 मीटर वर्गक्षेत्र में तैयार की गई नर्सरी की पौध एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होती है। प्रत्येक क्यारी में 40 ग्राम डी.ए.पी., 25 ग्राम यूरिया, 30 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश व 10-15 ग्राम फ्यूराडान डालकर अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। सितम्बर अक्टूबर माह में क्यारीयों को तैयार कर क्लोरोपाईरीफॉस (2 मिली./ लीटर पानी) कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/लीटर पानी) को धोलकर क्यारी की मिट्टी को तर कर 250 गेज मोटी सफेद पॉलिथिन बिछाकर 25-30 दिनों तक मिटटी का उपचार कर लें। इस विधि से मिटटी को उपचारित करने को मृर्दा शौर्यीकरण कहतें है। ऐसा करने पर मिटटी का तापमान बढऩे से भूमि जनित कीटाणु एंव रोगाणु नष्ट हो जाते है। बीजों को क्यारियों में बोने से पूर्व थायरम या कार्बोसिन/बाविस्टीन नामक फफूंदनाशक दवा से 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। उपचारित बीजों को 5-10 सेमी. के अंतर पर बनाई गई कतारों 1 सेमी. की गहराई पर बोएं। अंकुरण के पश्चात पौध को जडग़लन बीमारी से बचाने के लिए 2 ग्राम थायरम 1 ग्राम बाविस्टीन दवा को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। बुआई के लगभग 7-8 सप्ताह बाद पौध खेत में रोपण के लिए तैयार हो जाती है।
भण्डारण: आमतौर पर खरीफ की तुलना में रबी प्याज में भण्डारित करने की आवश्यकता ज्यादा होती क्योंकि यह बाजार में तुरंत कम बिकता है। प्याज को भण्डारित करते समय निम्न सावधानियां रखना चाहिए।
1. भण्डारण से पहले कंदों को अच्छी तरह सुखा लें, अच्छी तरह से पके हुए स्वस्थ (4-6 सेमी आकार) चमकदार व ठोस कंदों का ही भण्डारण करें।
2. भण्डारण नमी रहित हवादार गृहों में करें। भण्डारण में प्याज के परत की मोटाई 15 सेमी. से अधिक न हों।
3. भण्डारण के समय सड़े गले कंद समय-समय पर निकालते रहना चाहिए।