प्याज और लहसुन के प्रमुख रोग एवं प्रबंधन
बैंगनी धब्बा (पर्पल ब्लाच) :
इस रोग को फैलाने वाले रोगकारक फफूँद बीज एवं मृदा जनित होते हैं। प्याज एवं लहसुन में इस रोग को बैंगनी धब्बा (पर्पल ब्लाच) कहते हैं जो कि आल्टरनेरिया पोरी नामक फफूँद से होता है। इस रोग का लक्षण प्याज की पत्तियों तथा बीज फसल की डंठलो पर शुरूआत में सफेद भूरे रंग के धब्बे बनते हैं तथा जिनका मध्य भाग बैंगनी रंग का होता है। इस रोग का संक्रमण उस समय अधिक होता है, जब वातावरण का तापक्रम 27-30 से. एवं आर्द्रता 10:13 होते हैं। खरीफ मौसम में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।
प्रबंधन:
- फसल अवशेष को एकत्र करके जला देना चाहिए। गर्मी के महीने (मई-जून) में खेत की गहरी जुताई करना चाहिए। फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- स्वस्थ पौधों से बीज का चुनाव करें या प्रमाणित बीज ही प्रयोग करें। बीज का शोधन थायरम या कैप्टान नामक फफ़दीनाशक की 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से करना चाहिए।
- फफूंदीनाशक क्लोरोथैलोनिल 2.0 ग्राम/लीटर या मैन्कोजेब का 2.5 ग्राम/लीटर अथवा प्रोपीनेव 2.0 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
काली फफूंदी (ब्लैक मोल्ड) :
प्याज एवं लहसुन की यह एक भण्डारण की प्रमुख बीमारी है जो एस्परजिलस नाइजर फफूँद के द्वारा होती है। इस रोग के संक्रमण से भण्डारित प्याज व लहसुन में 50: तक हानि होती है। काला चूर्ण, बल्ब की बाहरी सतह पर समूहों में मिलता है जिसे आसानी से हाथ से रंगड़कर हटाया जा सकता है। इस फफूँद के बीजाणु बाद में भीतरी शल्कों तक पहुंच जाते हैं और पूरी प्याज सड़ जाती है। यह रोग भण्डारण में माइट व बीटल्स से फैलती है।
प्रबंधन:
- कटाई के 15 दिन पहले फसल में कार्बेन्डाजिम का 0.1: की दर से छिड़काव करना चाहिए। प्याज व लहसुन की खुदाई के बाद अच्छी तरह से सुखाकर हवादार भण्डारण गृह में रखना चाहिए।
- भण्डारण गृह को प्याज रखने के पहले क्लोरोपाइरीफास व कार्बेन्डाजिम से निर्जमीकृत करना चाहिए।
- भण्डारित प्याज की समय समय पर छँटाई करते रहना चाहिए।
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रसाद कीट (थ्रिप्स) :
यह कीट प्याज एवं लहसुन के साथ-साथ, मिर्च, शिमला मिर्च, टमाटर, गोभी आदि सब्जियों का प्रमुख कीट है। इस कीट के अर्भक व वयस्क दोनों ही प्याज एवं लहसुन की पत्तियों को खुरचकर रस चूसते हैं। क्षतिग्रस्त पत्तियाँ चमकीली सफेद दिखती है जो बाद में ऐंठकर मुड़ और सूख जाती है। ऐसे पौधों के कन्द छोटे रह जाते हैं और उपज में भारी कमी आ जाती है इस कीट के प्रकोप से पौधों में बीमारियाँ अधिक आने लगती है। यह कीट वर्ष भर सक्रिय रहता है। इस जाति का मादा 50 और 70 अण्डे पत्तियों की बाह्य परत में गढडा बनाकर देती है। अण्डों से 5 से 10 दिन बाद छोटे-छोटे अर्भक निकलते हैं। ये पत्तियों के मुलायम भागों से रस चूसना शुरू कर देते हैं। तत्पश्चात जमीन में प्यूपा पूर्व तथा प्युपावस्था गुजारते हैं जो क्रमश: 2 से 3 व 4 से 9 दिन की होती है, प्युपा से पंखदार वयस्क निकलते हैं जो पौधों को क्षति पहुँचाते हैं व प्रजनन करते हैं। इसका पूरा जीवन-चक्र 14 से 30 दिनों में पूरा हो जाता है।
प्रबंधन:
- रोपाई हमेशा समय पर ही करनी चाहिए। शुष्क वातावरण वाली जगहों पर 2-6 सप्ताह के अन्तर पर प्याज की रोपाई करनी चाहिए जिससे थ्रिप्स के जीवन चक्र को नियंत्रित किया जा सके।
- रसाद कीट (थ्रिप्स) को बौछारीय सिंचाई द्वारा भी कम कर सकते हैं क्योंकि बौछारीय से भी सिंचाई रसाद कीट मर जाते हैं।
- प्रोफेनोफास 0.1: या फिप्रोनिल 0.1: अथवा स्पिनोसैड 0.1: की दर से छिड़काव करने पर इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
- प्याज के बीज उत्पादन वाली फसल में उपरोक्त सभी कीटनाशकों का छिड़काव फूल आने से पहले करना चाहिए।
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