Proso Millet Farming : कैसे होती है चीना की खेती? जानिए इसके बारे में सबकुछ

Proso Millet Farming : कैसे होती है चीना की खेती? जानिए इसके बारे में सबकुछ
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Kisaan Helpline

Crops Oct 04, 2023

चीना फसल बाजरा श्रेणी (श्रीअन्न) की फसल है तथा यह कम देखभाल एवं कम पानी में बहुत कम समय, प्रजाति के आधार पर लगभग 65-75 दिन में अच्छी पैदावार देती है। इसकी खेती अधिकतर खरीफ मौसम में वर्षा आधारित फसल के रूप में की जाती है। यदि सिंचाई की सुविधा हो तो इसे गर्म मौसम में भी उगाया जा सकता है। इसमें सूखा सहने की क्षमता होती है. विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर इस फसल में 12.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसका भूसा मवेशियों के लिए सुपाच्य एवं पौष्टिक चारे के रूप में जाना जाता है।

चीना (प्रोसो मिलेट) का वानस्पतिक नाम पैनिकम मिलीएसियम है। इसे कॉमन मिलेट, प्रोसो मिलेट, हॉग मिलेट, इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। भारत ही इस फसल का मूल निवास है और यहीं से इसका फैलाव विश्व के अन्य चीना उगाने वाले भागों में हुआ है।  इसे सबसे पुरानी अनाज की फसल के रूप में गिना जाता है।

जलवायु

यह गर्म जलवायु की फसल है। इस कारण इसे शुष्क क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। इसे वर्षा आधारित फसल के रूप में भी उगाया जाता है।

मिट्टी की तैयारी

इस फसल को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। खेत तैयार करने के लिए एक जुताई ट्रैक्टर या बैल चालित मिट्टी पलटने वाले हल से की जाती है और खेत को दो-तीन दिन तक धूप लगने के लिए छोड़ दिया जाता है। इससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। उसके बाद कल्टीवेटर से दो-तीन जुताई करके खेत को जमाकर समतल कर लेना चाहिए।

उन्नत प्रजातियाँ

भारत में चीना फसल की उन्नत किस्में और पूरे देश में आसानी से उगाई जा सकने वाली प्रमुख किस्मों में प्रताप चीना 1 टीएनयू 145, टीएनयू 164, पीपी 162, बीआर 7, टीएनपीएम 230 आदि शामिल हैं।

बीज और बुआई

हम सभी गुणवत्तापूर्ण, स्वस्थ और रोगमुक्त बीजों के महत्व से परिचित हैं। यही बात चीना पर भी लागू होती है। इसलिए हमेशा प्रमाणित बीजों का ही चयन करें या यदि आप घर पर बने बीजों का उपयोग कर रहे हैं तो उन्हें बोने से पहले साफ करके बीजोपचार (2.0 से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बाविस्टिन नामक दवा मिलाकर) करना चाहिए। बुआई की विधि के आधार पर 8-12 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त है। ख़रीफ़ सीज़न में गन्ने की बुआई का समय जून-जुलाई है, लेकिन अगर प्री-मानसून बारिश होती है। अत: मई के दूसरे-तीसरे सप्ताह में भी बुआई की जा सकती है। प्रसारण विधि से 8-10 कि.ग्रा. तथा पंक्तियों में बुआई करने पर (पंक्ति से पंक्ति 30 सेमी तथा पौधे से पौधे 10 सेमी) 10-12 कि.ग्रा. बीज लगा सकते हैं।

खाद एवं उर्वरक

लगभग 15 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट बुआई से 15 दिनों पहले देनी चाहिए। उर्वरक की 60:30:20 (एन:पी:के) के अनुपात में जरूरत होगी। इनमें से आधी नाइट्रोजन यानी 30 कि.ग्रा. (66 कि.ग्रा. यूरिया), 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस (250 कि.ग्रा. एस.एस.पी. या 88 कि.ग्रा. डी.ए.पी.) तथा 20 कि.ग्रा. पोटाश (33 कि.ग्रा. एम.ओ. पी.) बुआई के समय देनी चाहिए। बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा 30 कि.ग्रा. (66 कि.ग्रा. यूरिया) से बुआई के 25 से 30 दिनों बाद टॉप ड्रेसिंग करनी चाहिए।

सिंचाई

खरीफ मौसम में चीना की बुआई करने पर सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। यदि कल्ले निकलने के समय लंबे समय तक सूखा रहता है, तो उपज के नुकसान से बचने के लिए जीवन रक्षक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण

फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए पहले 35 दिनों तक खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। खरपतवार प्रतिस्पर्धा के कारण उपज का नुकसान लगभग एक तिहाई है। इसलिए 18-20 दिन के अंतराल पर दो बार हाथ से निराई-गुड़ाई करें या फिर 1 लीटर शाकनाशी आइसोप्रोट्यूरॉन को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर फसल बोने के 48 घंटे के अंदर छिड़काव करें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की अधिकता होने पर 24-डी नामक दवा की एक किलोग्राम मात्रा का प्रयोग करें। इसे 500-600 लीटर पानी में मिलाकर 20-25 दिन बाद छिड़काव करें।

फसल सुरक्षा

चीना की फसल में रोग बहुत कम लगते हैं। बीज उपचारित करने से बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाता है। यह काफी चिकना होने के कारण इसमें कीड़ों की समस्या भी न के बराबर होती है। फसल पकने के समय पक्षी नुकसान पहुंचाते हैं। पक्षी भी प्रतिदिन एक निश्चित समय पर दाना खाने आते हैं। पक्षियों से फसल बचाने के लिए खेतों पर जाना पड़ता है।

कटाई एवं भंडारण

प्रजाति के आधार पर चीना की फसल 65 से 75 दिनों में पक जाती है। फसल पूरी तरह पकने से कुछ दिन पहले, यानी जब ऊपरी सिरे पर दाने पक जाएं। फिर कटाई करनी चाहिए। मड़ाई हाथ से या बैलों से या धान पैडल थ्रेशर से की जा सकती है। इसे धूप में अच्छी तरह सुखा लें और पूसा बीन या पूसा कोठार में रख लें। अच्छी उत्पादन तकनीक अपनाकर खेती करने से लगभग 20-25 क्विंटल अनाज के साथ-साथ 50 से 55 क्विंटल पौष्टिक भूसे की पैदावार होती है।

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