आलू की खेती मुख्यतः पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, गुजरात, ओडिशा, असोम, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि प्रदेशों में बढ़े पैमाने पर की जाती है। आलू फसल के अंतर्गत आने वाले कुल क्षेत्रफल के लगभग एक चौथाई भाग में साल कंदीय आलू की खेती की जाती है। खासकर, बिहार व पूवी उत्तर प्रदेश में लाल आलू की खेती अधिक क्षेत्र में की जाती है। यहां के उपभोक्ताओं की पहली पसंद लाल आलू है। कश्मीर के उपभोक्ता लाल छिलके वाले आलू को मांस के साथ पकाने में ज्यादा रुचि रखते हैं। इसके साथ ही उपभोक्ताओं को लाल कंदीय छिलके वाले आलू को मांग को देखते हुए पंजाब प्रांत के मांगा एवं गुरदासपुर क्षेत्र के कृषक भी अब लाल कंदीय किस्मों के बीज की मांग करने लगे हैं। लाल छिलके वाले कदों के लिए उपभोक्ता ग्राहक सफेद कदों की तुलना में अधिक कीमत अदा करते हैं।
भाकृअनुप-केन्द्रीय आलू अनुसंधान भास्थल पूर्व में लाल छिलके तथा मध्यम परिपक्वता (90-100 दिन) वाली किस्मों जैसे कुफरी रेड, कुफरी सिन्दूरी, कुफरी लालिमा आदि का विकास किया गया था। इनके कन्द लाल, गोल आकार. मध्यम गहरी आंखों वाले तथा पिछेता झुलसा सहिष्णु थे। विगत कुछ वर्षों में लाल छिलके वाली किस्मों के विकास में संस्थान द्वारा काफी शोध किया गया। कुफरी कंचन, कुफरी अरुण, कुफरी ललित, कुफरी केसर तथा कुफरी माणिक जैसी नवीनतम उन्नत किस्मों को विकसित किया गया है, जिनकी विशेषताएं निम्न हैं:
कुफरी कंचन
- वर्ष 1999 में जारी किया गया कंदों का रंग गहरा लाल तथा लम्बे अंडाकार, गहरी आंखें एवं क्रीमी गूदा
- परिपक्वता 90-100 दिन
- उपज क्षमता 25-30 टन प्रति हैक्टर
- उत्तम भण्डारण क्षमता
- पिछेता झुलसा रोग प्रतिरोधी
- धीमी बीज ह्रास दर
कुफरी अरुण
- वर्ष 2005 में जारी किया गया
- लाल रंग का कंद, अंडाकार, उथली परिपक्वता 80-90 दिन
- आंखें, क्रीमी गूदा
- उपज क्षमता 30-35 टन प्रति हैक्टर कंदों का रखरखाव मध्यम दर्जे का पिछेता झुलसा रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी
कुफरी ललित
- वर्ष 2013 में जारी किया गया लाल गोल कंद, मध्यम गहरी आंखें एवं पीला गूदा
- परिपक्वता 90-100 दिन
- खाने में सुस्वाद, उत्तम भंडारण क्षमता,
- उपज क्षमता 30-35 टन प्रति हैक्टर झुलसा रोग प्रतिरोधी, शुष्क पदार्थ 18 प्रतिशत और 6 सप्ताह से ज्यादा कंद की सुषुप्तावस्था
कुफरी नीलकण्ठ
हाल ही में संस्थान द्वारा पोषकता से भरपूर बैंगनी छिलके वाली किस्म कुफरी नीलकण्ठ का विकास किया गया है। इसकी मांग में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। इस किस्म की विशेषताएं नीचे दी जा रही हैं:
- वर्ष 2018 में जारी किया गया
- हल्का बैंगनी छिलके वाला कंद, क्रीमी सफेद रंग का गूदा, गोल कंद
- परिपक्वता 100 दिन
- एंटीऑक्सीडेंट एंथोसायनिन पिग्मेंट की प्रचुर मात्रा
- पिछेता झुलसा रोग प्रतिरोधी
- शरीर में अत्यधिक प्रतिक्रियाशील अणु (फ्री रेडिकल्स) को नियंत्रित रखने की क्षमता
- शरीर में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता में बढ़ोतरी करता है।
- उपज क्षमता 35-40 टन प्रति हैक्टर मध्यम दर्जे की भण्डारण क्षमता
कुफरी माणिक
- वर्ष 2019 में जारी किया गया
- गहरा लाल कंद
- अंडाकार गोल कंद, मध्यम गहरी आंखें एवं पीला गूदा
- परिपक्वता 90-100 दिन उपज क्षमता 30-35 टन प्रति हैक्टर
- खाने में सुस्वाद, शुष्क पदार्थ 19 प्रतिशत एवं पोषक तत्वों (एंथोसायानिन, कैरोटिन, लोहा, जिंक, कॉपर आदि) से भरपूर उत्तम भंडारण क्षमता एवं झुलसा रोग प्रतिरोधी
कुफरी केसर
- वर्ष 2017 में संस्थान द्वारा जारी किया गया
- लाल रंग का कंद
- परिपक्वता 80-90 दिन
- उपज क्षमता 30-35 टन प्रति हैक्टर
- अंडाकार गोल कंद, मध्यम गहरी
- आंखें एवं पीला गूदा खाने में सुस्वाद, शुष्क पदार्थ 19 प्रतिशत, उतम भंडारण एवं 6 सप्ताह कंद की सुषुप्तावस्था
- पिछेता झुलसा रोग प्रतिरोधी
इस प्रकार, किसान लाल छिलके वाली आलू की उन्नतशील प्रजातियों की खेती कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं तथा आर्थिक समृद्धि की ओर अग्रसर हो सकते हैं।