पपीता की उन्नत खेती, जानिए पपीता की खेती करने के तौर-तरीकों के बारे में

पपीता की उन्नत खेती, जानिए पपीता की खेती करने के तौर-तरीकों के बारे में
News Banner Image

Kisaan Helpline

Crops Apr 11, 2023

Papaya Farming: पपीता एक अत्यंत लोकप्रिय फल है जिसकी भारत में खेती फल उत्पादन तथा पपेन उत्पादन के लिए की जाती है। पपीता एक अच्छा पोषक फल होने के साथ-साथ अपने अंदर बहुत-से औषधीय गुण भी रखता है। यह आम के बाद अधिक मात्रा में विटामिन 'ए' रखने वाला दूसरे नंबर का फल है। पपीता बहुत आसानी से पचने वाला फल है। अतः मरीज भी इसको आसानी से पचा सकता है। यह कब्ज में काफी उपयोगी है। इसे नियमित खाने से मोटापा कम हो जाता है। इसको लगातार चेहरे पर लगाने से दाग धब्बे मिट जाते हैं तथा आदमी गोरा हो जाता है। इसके फलों का उपयोग करके परिरक्षित पदार्थ जैसे मैक्टर, जैम, जैली पटनी अचार, पेठा की मिठाई, टॉफी आदि बनाई जाती है।

भूमि का चुनाव

पपीते की खेती के लिए बलुई दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है जिसका पी. एच. मान 7 के आस-पास हो तथा जल निकास की उचित व्यवस्था हो।

जलवायु

शुष्क और गर्म क्षेत्रों में पपीता अच्छी पैदावार देता है, परन्तु सर्दियों में पाला तथा गर्मियों में तेज हवाएं इसको नुकसान करती हैं। अतः इन क्षेत्रों में सफल खेती के लिए इनसे बचाव का उचित प्रबंध करना आवश्यक है।

किस्मों का चुनाव

विभिन्न कृषि शोध संस्थानों द्वारा अलग अलग प्रदेशों के लिए बहुत सारी उन्नत किस्मों का विकास किया गया है जिनमें से प्रमुख पूसा डेलिसियश, पूसा नन्हा, पूसा ड्वार्फ, पूसा मेजेस्टी, पंत पपीता-3, कुर्ग हनीड्यू एवं वाशिंगटन।

बीज की मात्रा तथा बुवाई

पपीते की एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए उत्तम किस्म का लगभग 250 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। बीज की बुवाई लगभग 20-30 से. मी. ऊँची क्यारियों में करनी चाहिए। बुवाई अगस्त सितम्बर माह में कर दी जाती है। बुवाई के लगभग दो माह पश्चात् पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है।

पौधे का रोपण

गर्मियों के दिनों में खेतों में 2 x 2 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदकर उनमें 20 कि. ग्रा. कम्पोस्ट, 1 कि.ग्रा. नीम या करंज की खली तथा हड्डी का चूर्ण 1 कि.ग्रा. भरकर बंद कर देते हैं। रोपण करने के लिए उत्तम समय अक्टूबर-नवंबर होता है, क्योंकि इस समय रोपे गये पौधों को पाले के मौसम में आसानी से सुरक्षित रखा जा सकता है तथा इस मौसम में रोपित पौधे में रोगों का प्रकोप भी कम होता है। रोपण के पश्चात् पौधों में हल्का पानी दे देना चाहिए तथा कुछ समय बाद अगर पौधे सूख जाते हैं तो उनके स्थान पर नये पौधे लगा देना चाहिए ।

खाद व उर्वरकों का प्रयोग

पपीते की अच्छी खेती के लिए 240 ग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फोरस तथा 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। इनको 4 भागों में विभक्त कर जुलाई से अक्टूबर तक प्रत्येक माह में देना चाहिए। इसके अलावा पपीते में बोरोन तथा जिंक की कमी भी देखी जाती है। इसकी पूर्ति के लिए जिंक सल्फेट 10 किलोग्राम तथा बोरेक्स 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भूमि की तैयारी के समय डालना चाहिए। 

सिंचाई

सिंचाई की आवश्यकता कई बातों पर निर्भर करती है, जैसे भूमि का प्रकार, जलवायु आदि । लेकिन जाड़ों के दिनों में 15 दिनों के अंतराल पर तथा गर्मियों के दिनों में 8-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। सिंचाई करते समय यह ध्यान रखें कि तने के पास पानी खड़ा न रह पाये। 

पौधे में परागण की समस्या

पपीते के खेत में कुछ पौधे नर हो जाते हैं जिसे किसान अनुत्पादक पौधे समझकर उखाड़ देता है जो गलत है। ये नर पौधे ही मादा पौधे को पराग उपलब्ध कराते हैं जो फल बनने में सहायता करते हैं। खेत में 10 प्रतिशत पौधे नर के होने जरूरी हैं।

फलों की तुड़ाई

जब फल तथा फल के गूदे का रंग हल्का पीला होने लगे तो उस समय फल तोड़ लेना चाहिए। अगर फल को पीला पड़ने से पहले ही तोड़ लिया जाता है और फिर उसे कृत्रिम विधि | से पकाते हैं, तो वह मिठास नहीं बन पाती जो प्राकृतिक रूप से पकने पर मिलती है। तुड़ाई करते समय यह ध्यान रखें कि फल पर किसी भी प्रकार की खरोंच न लगने पाए।

पपीते में विषाणुजनित रोग व उनका नियंत्रण

मौजेक रोग
इस रोग में पत्तियों तथा शाखाएँ पीली पड़ जाती हैं तथा पौधे में फल नहीं बनते हैं और पौधे अविकसित रह जाते हैं। 
नियंत्रण
यह वायरस माहू कीट के द्वारा फैलता है। अतः इसकी रोकथाम के लिए रोगोर (2 मि.ली. प्रति लीटर पानी) का छिड़काव समय पर करते रहें अधिक प्रभावित पौधे को जड़ से उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।

पत्ती मोडक रोग
इस रोग में पौधे की पत्तियाँ मुड जाती है तथा टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। पौधे की वृद्धि रूक जाती है जिससे उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता है। 
नियंत्रण
प्रभावित पौधे को जड़ से उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। यह रोग सफेद मख्खी नामक कीट के द्वारा फैलता है। अतः रोगोर / मेटासिस्टॉक्स (2 मी.ली. प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करके कीट को आने से रोका जा सकता है।

उपज तथा आर्थिक लाभ

पपीते की फसल का उचित प्रबंधन करने से और अनुकूल परिस्थितियों में | एक हैक्टेयर से लगभग 35 से 40 टन तक उपज प्राप्त हो जाती है। यदि 1500 रुपए प्रति टन भी कीमत आँकी जाये तो किसानों को प्रति हेक्टयर 34000 रुपए शुद्ध लाभ की प्राप्ति हो सकती है।

Agriculture Magazines

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline