सरसों की खेती : सरसों फसल सिंचित क्षेत्रों एवं संरक्षित नमी के बारानी क्षेत्रों में ली जा सकती है। सरसों कम लागत और कम सिंचाई सुविधा में भी अन्य फसलों की तुलना में अधिक उपज प्रदान करने वाली फसल है। इसे अकेले या मिश्रित फसल के रूप में बोया जा सकता है।
खेत का चुनाव व तैयारी:- सरसों हेतु दोमट व हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती हैं। अच्छे जल निकास वाली मिट्टी जो लवणीय एवं क्षारीय न हो ठीक रहती है। इसको हल्की ऊसर भूमि में भी बोया जा सकता है। अक्टूबर के पहले पखवाड़े में खेत तैयार करके सरसों की बुवाई करें। जिप्सम का हर तीसरे वर्ष प्रयोग करें। यदि भूमि अथवा सिंचाई जल क्षारीय नहीं है तो जिप्सम की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। सरसों की खेती बारानी एवं सिंचित दोनों प्रकार से की जाती है। समय-समय पर खेत की स्थिति के अनुसार 4-6 जुताई करें। सिंचित क्षेत्रों के लिए भूमि की तैयारी बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व प्रारम्भ करें।
भूमि उपचार:- दीमक और अन्य कीड़ों की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व अन्तिम जुताई के क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से खेत में डाल कर जुताई करें। नमी को ध्यान में रखकर जुताई के बाद पाटा लगायें।
बुवाई का समय: बारानी क्षेत्रों में सरसों की बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक एवं सिंचित क्षेत्रों में इसकी बुवाई अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह तक कर देनी चाहिये।
उन्नत किस्में:- अरावली (आर.एन.- 393), पूसा बोल्ड, आर.एच. 130, लक्ष्मी, वसुन्धरा, आर.जी.एन.- 145, आर.आर.एन- 573. आर.बी.- 50. एन. आर.सी.डी.आर. 601
फसल चक्र:- सीमित सिंचाई जल की परिस्थिति में अधिक पैदावार एवं आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए ग्वार-सरसों फसल चक्र अपनायें।
बीज की मात्रा:- बुवाई के लिए सिंचित क्षेत्रों में 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टर एवं असिंचित क्षेत्रों में बीज की मात्रा 4 से 5 किलो प्रति हैक्टर पर्याप्त है। पौधों के बीच की दूरी 10-15 से.मी. रखते हुए कतारों में 5 से.मी. गहरा बीच बोयें। कतार से कतार की दूरी 30-35 से.मी. रखें। असिंचित क्षेत्रों में बीज की गहराई नमी के अनुसार रखें।
बीजोपचार:- बीज को 2 ग्राम मैन्कोजेब या 3 ग्राम थाइरम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके ही बोयें। सफेद रोली से बचने के लिए बीज को मेटेलेक्जिल (एप्रोन 35 एस.डी.) 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोयें 1 रोगों से बचाव के लिए 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें।
मिश्रित खेती:- बारानी चने के साथ मिश्रित खेती करने से अधिक लाभ मिलता है। इससे फसल को पाला नहीं मारता है तथा दवा भी आसानी से छिड़की जा सकती है। सरसों व चने की अन्तः फसल 7:3 की पंक्ति के अनुपात में बोयें।
जैविक खाद एवं उर्वरक प्रयोग: सिंचित फसल के लिए प्रति हैक्टर 8-10 टन अच्छा सड़ा हुआ देशी खाद बुवाई के तीन चार सप्ताह पूर्व खेत में डालकर तैयार करें। असिंचित क्षेत्र में वर्षा से पूर्व 4-5 टन सड़ा हुआ देशी खाद प्रति हैक्टर वर्षा के बाद खेत में फैलाकर जुताई करें। जस्ते की कमी वाली भूमि (0.6 पीपीएम से कम) में सरसों की उत्पादन वृद्धि हेतु अंतिम जुताई से पूर्व 20 किलो जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर की दर से मुस्काव करके मिट्टी में मिला दे। मिट्टी परीक्षण के परिणाम के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करें, यदि मिट्टी का परीक्षण नहीं कराया गया हो तब सिंचित फसल के लिए 80 किलो नत्रजन, 40 किलो फॉस्फोरस एवं 40 किग्रा पोटाश तथा 300 किलो जिप्सम या 40 किलो गंधक चूर्ण प्रति हैक्टर देवें। नत्रजन की आघी व फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय उर कर देवें तथा शेष नत्रजन पहली सिंचाई के साथ देवें। असिंचित क्षेत्रों में बताये गये उर्वरकों की आधी मात्रा ही बुवाई के समय डालें। गंधक अथवा जिप्सम दो वर्ष में एक बार देना ही पर्याप्त है। अधिक उत्पादन के लिए सरसों में फूल आने की अवस्था पर थायोयूरिया का 0.1 प्रतिशत (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल का छिड़काव करें।
सिंचाई :- प्रथम सिंचाई 30-40 दिन बाद फूल आने से पहले करें, तत्पश्चात आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई 70 से 80 दिन में करें।
निराई-गुड़ाई:- पौधों की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई कर खरपतवार निकाले एवं निराई के साथ छंटाई कर घने पौधे को निकाल कर पौधे के बीच की दूरी 10-12 से.मी. कर दे। सिंचाई के बाद गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ फसल बढ़वार अच्छी होगी।
फसल की कटाई एवं उपज:- सरसों की फसल फरवरी मार्च तक पक जाती है। आमतौर पर जब पत्ते झड़ने लगें और फलियाँ पीली पड़ने लगे तो फसल काट लें अन्यथा कटाई में देर होने पर दाने खेत में झड़ जाने की आशंका रहती है। सरसों की औसतन उपज 15-20 बिच. प्रति हैक्टर प्राप्त होती है।
ध्यान देने योग्य बातें
- बीजोपचार कर बुवाई करें।
- बुवाई से पूर्व संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें।
- अनुकूलतम पौधों की संख्या रखें।
- फसल को पाले से बचाने के लिए फसल पर गंधक के तेजाब के 0.1% (1 लीटर प्रति 1000 लीटर पानी) घोल का छिड़काव फूल आने से पूर्व अच्छी तरह करें। इसे सम्भावित पाला पड़ने की अवधि में दोहराते रहना चाहिये।