माहू – इसकी पहचान के लिए आप देख सकते है ये कीड़े छोटे-छोटे और भूरे रंग के होते हैं तथा बहुत बड़ी संख्या में मिल कर पौधों के रस को चूसते हैं।फसल को नष्ट करने के लिए ये अपने शरीर से चिपचिपा पदार्थ निकालते हैं जिसके कारण फसल पर काली फफूंद उग जाती हैं जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भंग करती हैं, और फसल को नुकसान पहुंचाती है।
प्रबंधन –
1. मूंगफली की बुवाई समय पर करें।
2. जो पौधे रोगी और इन कीड़ो के लगने से बेकार हो चुके है उन्हें सबसे पहले तोड़कर खेत से दूर किसी गड्ढे में गाड़ दे या फिर नष्ट करें।
3. चिपचिपे पीले ट्रेप का उपयोग करें।
4. आपको इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए या डाइमिथिएट 30 ई.सी. का 1-1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना उत्तम रहता हैं।
सफेद लट – मूंगफली की फसल को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाने वाला कीट हैं। यह बहुभक्षी कीट हैं इस कीट की ग्रब अवस्था ही फसल को काफी नुकसान पहुंचाती हैं। ये ज्यादातर और मुख्य रूप से जड़ों एवं पत्तियों को खाती हैं जिसके फलस्वरूप पौधे सूख जाते हैं।
मादा कीट ये कीट मई-जून के महीने में जमीन के अंदर अंडे देती हैं। इनमें से 8-10 दिनों के बाद लट निकल आते हैं। और इस अवस्था में जुलाई से सितम्बर – अक्टूबर तक बने रहते हैं। मुख्य रूप से इनका उपचार करना बहोत जरुरी है।
प्रबंधन –
1. ग्रीष्मकालीन के समय गहरी जुताई करें।
2. प्रकाश प्रपंच का उपयोग करें।
3. फोरेट 10 जी का 25 किलोग्राम के हिसाब से भूमि उपचारित करें।
4. क्लोरोपायरीफॉस से बीजोपचार प्रारंभिक अवस्था में पौधों को सफेद लट से बचाता हैं।
5. अधिक प्रकोप होने पर खेत में क्लोरोपायरीफॉस का प्रयोग करें।
बालों वाली सुंडियां –यह कीट पत्तियों को खाकर पौधों की पत्तियों को छलनी कर देता हैं। पूर्ण विकसित इल्लियों पर घने भूरे बाल होते हैं। इनका प्रकोप इतना ज्यादा होता है की अगर इसका आक्रमण शुरू होते ही इन पर रोक न लगाई जाये तो इनसे फसल की बहुत बड़ी हानि हो सकती हैं। इसकी रोकथाम के लिये आवश्यक हैं कि खेत में इस कीड़े के दिखते ही इसके अंडों को व छोटे-छोटे इल्लियों से लदे पौधों को काटकर या तो जमीन में दबा दिया जाय या फिर उन्हें घास-फूस के साथ जला दिया जाये।
प्रबंधन –
1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें।
2. प्रकाश प्रपंच का उपयोग करें।
3. खेत के आसपास के इलाके को खरपतवार मुक्त रखें।
4. क्विनालफॉस 1 लीटर कीटनाशी दवा को 700-800 लीटर पानी में घोल बना प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
लीफ माइनर – लीफ माइनर के प्रकोप की पहचान के लिए आपको पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई पडऩे लगते हैं। इसके गिडार पत्तियों में अंदर ही अंदर हरे भाग को खाते रहते हैं और पत्तियों पर सफेद धारियां सी बन जाती हैं। इसका प्यूपा भूरे लाल रंग का होता हैं इससे फसल को काफी हानि हो सकती हैं। मादा कीट छोटे तथा चमकीले रंग के होते हैं मुलायम तनों पर अंडा देती हैं।
इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 1 मि.ली. का 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दें।
दीमक – दीमक एक छोटा कीट हैं यह कीट बहुत सक्रिय होता हैं दीमक पौधों की जड़ों को काटकर नुकसान करती हैं तथा सूखी जगह में दीमक का प्रकोप बढ़ जाता हैं।
प्रबंधन –
1. सड़ी हुई गोबर खाद का इस्तेमाल करें।
2. फसल की समय पर सिंचाई करें।
3. क्लोरोपायरीफॉस से बीजोपचार करें।
4. क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. का 3-4 लीटर सूखी बालू में मिलाकर छिड़काव करें।