Chilli Farming: मिर्च की देखभाल करना बहुत कठिन नहीं है, लेकिन इसके लिए थोड़ा ध्यान और प्रयास की आवश्यकता होती है। मिर्च की खेती के लिए 15°-35° सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। 40° सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर इसके फूल एवं फल गिरने लगते हैं।
उपयुक्त भूमि
इसकी खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। अच्छे जल निकास वाली एवं कार्बनिक युक्त प्रदार्थ बलुई - लाल दोमट मृदा जिसका पी-एच मान 6.0 से 7.5 हो, मिर्च की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
उन्नत किस्में
इसकी प्रमुख उन्नत प्रजातियां जैसे- पूसा सदाबहार, पूसा ज्वाला, अर्का लोहित, अर्का सफल, अर्का श्वेता, अर्का हरिता मथानिया लौंग, पंत सी-1, पंत सी-2, जी-3, जी-5, हंगेरियन वैक्स (पीले रंग वाली), जवाहर 218. आर. सी. एच. - 1, एल. सी.ए.- 206 आदि हैं।
नर्सरी में बीजों के बुवाई का समय
गर्मी की फसल के लिए फरवरी-मार्च में पौधशाला में बीजों की बुआई की जाती है। एक हैक्टर पौध तैयार करने के लिए संकर और अन्य प्रजातियां के लिए 250 ग्राम और 1.0-1.5 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है।
नर्सरी तैयार करने का तरीका
नर्सरी के लिए मीटर चौड़ी, 1 3 मीटर लंबी और 10 से 15 सें.मी. जमीन से उठी हुई क्यारियां तैयार करें।
बीजोपचार
बुआई से पूर्व बीज को बाविस्टिन या कैप्टॉन की 2 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। पौधशाला में कोटों की रोकथाम के लिए 2 ग्राम फोरेट 10 वर्गमीटर की दर से जमीन में मिलाएं या मिथाइल डिमेटोन 1 मि.ली./लीटर पानी या एसीफेट । मि.ली./लीटर पानी का पौधों पर छिड़काव करें।
पौध रोपण का तरीका
नर्सरी में बुआई के 4-5 सप्ताह बाद पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है। गर्मी की फसल में पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी 60X30-45 सें.मी. रखें।
उर्वरक प्रबंधन
जायद मिर्च रोपाई के लिए प्रति हैक्टर 70 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50-60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 50-60 कि.ग्रा. पोटाश मृदा में अन्तिम जुताई के समय मिला दें। शेष बची हुई आधी मात्रा, 30 व 45 दिनों के बाद टॉप ड्रेसिंग के द्वारा खेत में डालें एवं तुरंत सिंचाई कर दें।
रोग एवं कीट प्रबंधन
मिर्च की फसल को वायरस रोग व कीटों से बचाने के लिए 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 लीटर पानी में मिलाकर 10-15 दिनों के अंतराल पर एक एकड़ में खड़ी फसल पर छिड़काव करें।