Agriculture News: अगर हम दलहन सब्जियों की बात करें तो मटर की सब्जी सबसे पहले आती है। अगर किसान इस मौसम में मटर की खेती करते हैं तो उन्हें इसकी खेती से काफी मुनाफा हो सकता है।
मटर फसल की नियमित निगरानी करें। इन फसलों में कवकजनित रोगों जैसे-रतुआ तथा चूर्णिल आसिता की रोकथाम के लिए सल्फरयुक्त कवकनाशी सल्फेक्स को 2.5 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अन्तराल पर 2-3 बार फसल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें या घुलनशील गंधक (0.2.0.3 प्रतिशत) का फसल पर छिड़काव करें। चूर्णिल आसिता के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/लीटर पानी) अथवा डीनोकैप, केराथेन 48 ई.सी. (0.5 मि.ली./लीटर पानी) का भी प्रयोग कर सकते हैं। रतुआ रोग की रोकथाम के लिए मैन्कोजेब दवा की 2.0 कि.ग्रा. या डाइथेन एम-45 को 2 कि.ग्रा./हैक्टर या हेक्साकोनाजोटा । लीटर या प्रोपीकोना । लीटर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें। उचित फसलचक्र अपनायें एवं रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।
इंडोक्साकार्ब (1 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव कीटों से होने वाली क्षति को कम करता है। मटर के तनाछेदक कीट की रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 30 ई. सी. दवा को 1.0 लीटर मात्रा और फलीछेदक कीट की रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफॉस 36 ई.सी. दवा की 750 मि.ली. की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
मटर में बुवाई के 35-40 दिन पर पहली सिंचाई करें। इसके बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई की जा सकती है। इस दौरान खेत की गुड़ाई करना फायदेमंद रहता है।