Lentil Farming: मसूर की बुआई का उचित समय उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर के अंत में तथा उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र व मध्य क्षेत्र में नवंबर का दूसरा पखवाड़ा है। पंतनगर जीरो टिल सीडड्रिल द्वारा मसूर की बुआई अधिक लाभप्रद है। 10 कि.ग्रा. मसूर बीज को 200 ग्राम राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम कल्चर से उपचारित करके बोना चाहिए। विशेषकर उन खेतों में जिनमें पहले मसूर न बोई गयी हो। इसके अतिरिक्त फॉस्फेट सोल्बुलाइजिंग बैक्टीरियल कल्चर का प्रयोग पौधों को फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ाता है, जिसके प्रयोग से उत्पादन अच्छा होता है।
मसूर की उन्नत प्रजातियां जैसे-पूसा वैभव, पूसा मसूर 5, पूसा शिवालिक, गरिमा, वी.एल. मसूर 507, वी.एल. मसूर 1, वी.एल. मसूर 4, वी.एल. मसूर 103. वी.एल. मसूर 125, वी.एल. मसूर 126. वी.एल. मसूर 129. पंत मसूर 5, पंत मसूर 6. पंत मसूर 7. एच.यू.एल. 57 आदि प्रजातियों की बुआई करें।
मसूर के बड़े दानें वाली प्रजातियों के लिए बीज दर 55-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर तथा छोटे दानों वाली प्रजातियों के लिए बीज दर 40-45 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर उचित है। बीजजनित रोगों से बचाव के लिए थीरम 2.5 ग्राम या जिंक मैग्नीज कार्बोनेट 3.0 ग्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज को बोने से पूर्व शोधित कर लेना चाहिए।
मसूर की फसल में उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण की सिफारिश के आधार पर करना चाहिए। मसूर की बुआई से पूर्व 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. गंधक प्रति हैक्टर की दर से संस्तुत है। यदि डीएपी उपलब्ध है तो इसकी 100 कि.ग्रा. तथा सल्फर 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर प्रयोग करें। सल्फर की पूर्ति 200 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर जिप्सम से भी की जा सकती है। यदि मृदा में नमी कम है तो खाद की मात्रा कम कर देना चाहिए।
उचित जल निकास वाले खेत जिनमें घुलनशील लवणों की मात्रा अधिक न हो, पी-एच मान 6.5 से 7.5 के मध्य हो तथा बलुई दोमट से चिकनी दोमट मृदा दलहनी फसलों के लिए आदर्श होती है। एक गहरी जुताई के बाद हैरो तथा पाटा लगाने से बुआई के लिए खेत तैयार हो जाता है।