मक्का चावल एवं गेहूं के बाद एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। औद्यौगिक फसल होने के साथ-साथ मक्का फसल का पशुओं के चारे और मानव भोजन में भी महत्वपूर्ण योगदान है। मक्का का प्रयोग औद्यौगिक रूप से स्टार्च एवं शराब तैयार करने के लिए किया जाता है। शहरों के आस पास मक्का की खेती बेबी कॉर्न एवं भुट्टे के लिए की जाती है। भुट्टों को भुनकर खाया जाता है तथा इसके हरे पौधों का प्रयोग साइलेज के रूप भी किया जाता है।
मक्का की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए फसल की देखभाल भी आवश्यक होती है। फसल अगर रोगग्रस्त हो जाये तो उसका प्रभाव सीधे उसके उत्पादन पर आता है। इसीलिए मक्का की खेती में अधिक उत्पादन लेने के लिए मक्का की फसल में लगने वाले हानिकारक कीटों एवं रोगों से नियंत्रण अतिआवश्यक हैं, इनके नियंत्रण हेतु कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार ही उपचार करें। आइये जानते है मक्का की फसल में लगने वाले हानिकारक किट एवं रोग और उनके रोकथाम के उपाय :-
हानिकारक कीट और उनकी रोकथाम :-
तना छेदक - इसकी रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरान 3जी 20 किग्रा अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सीजी 20 किग्रा अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी 1.50 लीटर।
गुलाबी छेदक - इसे रोकने के लिए कार्बोफ्यूरॉन 5 प्रतिशत डब्लयु/डब्लयु 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसके इलावा अंकुरन से 10 दिन बाद 4 किग्रा टराइकोकार्ड प्रति एकड़ डालने से भी नुकसान से बचा जा सकता है। रोशनी और फीरोमोन कार्ड भी पतंगे को पकड़ने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
कॉर्न वार्म - रासायनिक नियंत्रण के लिए बुआई से एक सप्ताह पूर्व खेत में 10 किग्रा फोरेट 10 जी फैलाकर मिला दें।
शाख का कीट - इसे रोकने के लिए डाईमैथोएट 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
दीमक - खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 फीसदी ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
शाख की मक्खी - बिजाई के समय मिट्टी में फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 5 किलो प्रति एकड़ डालें। इसके इलावा डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 300 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी 450 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
हानिकारक रोग और उनकी रोकथाम :-
तने का गलना - इसे रोकने के लिए पानी खड़ा ना होने दें और जल निकास की तरफ ध्यान दें। रोग दिखाई देने पर 15 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन अथवा 60 ग्राम एग्रीमाइसीन तथा 500 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से अधिक लाभ होता है। अथवा 150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी मे घोलकर जड़ों पर डालना चाहिये।
पत्ता झुलस रोग - इसकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 या ज़िनेब 2.0-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7-10 दिन के फासले पर 2-4 स्प्रे करने से इस बीमारी को शुरूआती समय में ही रोका जा सकता है।
पत्तों के नीचे भूरे रंग के धब्बे - इसकी रोकथाम के लिए प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें और मैटालैक्सिल 1 ग्राम या मैटालैक्सिल+मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
तुलासिता रोग - इनकी रोकथाम के लिए जिंक मैगनीज कार्बमेट या जीरम 80 प्रतिशत, दो किलोग्राम अथवा 27 प्रतिशत के तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव आवश्यक पानी की मात्रा में घोलकर करना चाहिए।