लौंग की व्यावसायिक खेती, जानिए बुवाई का तरीका, अनुकूल जलवायु और पैदावार के बारे में

लौंग की व्यावसायिक खेती, जानिए बुवाई का तरीका, अनुकूल जलवायु और पैदावार के बारे में
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Kisaan Helpline

Crops Oct 11, 2021

जैसे की आप जानते है लौंग मसालों के रूप में प्रयोग की जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है। इसका सर्वाधिक उपयोग मसलों के रूप में किया जाता है। यह औषधीय गुणों से भरपूर है, अतः इसे आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी प्रयोग किया जाता है। सर्दियों के मौसम में इसका भरपूर प्रयोग किया जाता है। लौंग का पौधा एक सदाबहार तथा बहुवर्षीय पौधा है। एक बार लगाने के बाद यह कई वर्षों तक पैदावार देता रहता है।

लौंग की खेती के लिए अनुकूल जलवायु 
लौंग की खेती करने के लिए सामान्य रूप से बारिश की आवश्यकता नहीं है। लौंग के पौधे अधिक गर्मी व अधिक सर्दी दोनों सहन नहीं कर पाते हैं। यदी जब अधिक तेज गर्मी या अधिक तेज ठंड पड़ने लगता है तो इसके कारण पौधों का विकास रुक जाता है। लौंग की खेती करने के लिए छायादार जगह तथा सामान्य तापमान की जरूरत होती है।

तापमान
गर्मियों में इसकी खेती करने के लिए अधिकतम 30 से 35 डिग्री तथा सर्दियों में 15 डिग्री सेंटीग्रेड से पौधों का विकास हो सकता है।

भूमि का चयन
लौंग की खेती के लिए जीवाश्मयुक्त दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो।

नर्सरी तैयार करने का तरीका
उसके नर्सरी में जैविक खाद के मिश्रण से तैयार की गई भूमि में 10 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए पंक्ति अनुसार बीज की रोपाई करनी चाहिए। लौंग के पौधे तैयार होने में लगभग 2 वर्ष का समय लगता है।

खेती की तैयारी
लौंग का पौधा 100 वर्ष से 150 वर्ष तक पैदावार देता रहता है। 16 वर्ष की उम्र तक यह उत्तम पैदावार देता है । इसको खेत में लगाने से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर पाटा चला के भूमि को समतल कर लें। जिससे मिट्टी बारीक एवं भुरभुरी बन जाए और खरपतवार नष्ट हो जाएं। जुताई के बाद खेत में लगभग 15 से 20 फिट की दूरी पर एक मीटर व्यास की डेढ़ से दो फीट की गहरे गड्ढे तैयार करें। मिट्टी में जैविक खाद तथा रसायनीक खाद की उचित मात्रा मिला कर गड्ढे में भर देते हैं।

पौध तैयार करना
लौंग की खेती करने से पहले लौंग के बीज से पौधे को नर्सरी में तैयार किया जाता है। बीज को नर्सरी में लगाने से पहले उसे उपचारित करके एक रात पानी में अच्छे से भिगो देना चाहिए।
उसके नर्सरी में जैविक खाद के मिश्रण से तैयार की गई भूमि में 10 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए पंक्ति अनुसार बीज की रोपाई करनी चाहिए। लौंग के पौधे तैयार होने में लगभग 2 वर्ष का समय लगता है।
4 से 5 साल बाद पौधा फल देना शुरू कर देता है। लेकिन इसकी नर्सरी बाजार से खरीद कर ही खेत में लगाने से समय की बहुत ज्यादा बचत होती है, तथा पैदावार जल्द मिलने शुरू हो जाते हैं। रोपण के लिए 4 फिट के आस-पास के पौधे उत्तम माने जाते हैं।

पौधों की रोपाई का तरीका
लौंग के पौधे को पहले से तैयार किए गए गड्ढे में लगाया जाता है। पौधे को लगाने के बाद चारों ओर से मिट्टी से अच्छे से ढक दे और सिंचाई कर दें।

सिंचाई प्रबंधन
गर्मियों के मौसम में लौंग के पौधे की सिंचाई सप्ताह में एक से दो बार और सर्दियों में 15-20 दिनों के अंतराल पर करें।

खाद एवं उर्वरक
शुरआत के दिनों में कम उर्वरक की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन गढ्ढा तैयार करते समय अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद मिलायें। पौधों की वृद्धि के साथ-साथ खाद एवं उर्वरक की मात्रा में भी वृद्धि करनी चाहिए।
पौधों पर फल घुटनों में लगता है। तथा रंग लाल गुलाबी होता है जिसे फूल खिलने से पहले ही तोड़ लिया जाता है। लौंग के फल की लंबाई अधिकतम 2 सेंटीमीटर होती है। अच्छे से सुखाने के बाद इसे प्रयोग किया जाता है।
प्रत्येक पौधे को 40-50 किलोग्राम गोबर की खाद तथा 1 किलोग्राम रसायन खाद की मात्रा साल में तीन से चार बार आवश्य दे, इसके बाद पौधों की सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण
शुरुआत अवस्था में खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं पड़ती। रोपाई के लगभग 1 माह बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें। इसके बाद आवश्यकता अनुसार हल्की निराई-गुड़ाई करें तथा बरसात में खाली पड़ी जमीन की जुताई कर दें।

अतिरिक्त कमाई
लौंग की फसल में 3-4 साल बाद ज्यादा बाल आने लगते हैं। इस दौरान लौंग की फसल में बची खाली भूमि में मसालों तथा सब्जियों की खेती करके कमाई की जा सकती है।

रोग और उनकी रोकथाम
लौंग की फसल में रोग ना के बराबर मिलते है। लेकिन कुछ कीट रोग ऐसे हैं जो पौधे को नुक्सान पहुंचाते हैं, जैसे सफेद मक्खी, सुंडी आदि।
इसके अतिरिक्त भूमि में जल भराव के कारण पौधों में रोग लग जाता है, इसलिए भूमि में जल खड़ा न रहने दें।

फलों की तोड़ाई
पौधों पर फल घुटनों में लगता है। तथा रंग लाल गुलाबी होता है जिसे फूल खिलने से पहले ही तोड़ लिया जाता है। लौंग के फल की लंबाई अधिकतम 2 सेंटीमीटर होती है। अच्छे से सुखाने के बाद इसे प्रयोग किया जाता है।

पैदावार
पूर्ण विकसित एक पौधे से एक बार में 3 किलो के आसपास फसल प्राप्त की जा सकती है, जिसकी कीमत बाजार में ₹700 से ₹1000 प्रति किलोग्राम तक है। जिसके हिसाब से एक पौधे से एक बार में ढाई से 3000 तक की कमाई की जा सकती है।

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