लहसुन की खेती में अधिक पैदावार के लिए करें वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल, जानिए लहसुन की उन्नत खेती के बारे में

लहसुन की खेती में अधिक पैदावार के लिए करें वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल, जानिए लहसुन की उन्नत खेती के बारे में
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Kisaan Helpline

Crops Jul 24, 2021

भारत में बड़े स्तर पर लहसुन की खेती मध्य प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, महांराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा में की जाती है। लहसुन की उचित खेती करके आप लाखो में कमा सकते हैं। जहाँ तक कैसे करे का सवाल है, आपके पास केवल अच्छी जानकारी और वैज्ञानिक तरीके को अपनाकर स्टार्ट किया जा सकता है। लहसुन की खेती को अगर कृषि वैज्ञानिक के बताए गए तरीके से की जाये तो किसानो को बहुत कम खर्च में अच्छा फायदा हो सकता है। अगर भूमि और फसल की अच्छे से देखभाल की जाये तो किसानो को प्रति हेक्टेयर 80 से 120 क्विंटल उपज मिल जाती है।
वैज्ञानिको द्वारा लहसुन की खेती के लिए कैसी भूमि होनी चाहिए, खेत में कब और कितना खाद देना चाहिए, कब कब सिंचाई करनी चाहिए आदि की जानकारी हम आपको निचे बताएँगे।

भूमि: दोमट भूमि इसकी अच्छी पैदावार के लिये उपयुक्त है वैसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। जिस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक होने के साथ-साथ जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो वैसी भूमि लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त होती है। अधिक भारी मिट्टी में गांठों का आकार अच्छा नहीं बनता है।

भूमि की तैयारी : लहसुन की अधिक पैदावार लेने के लिए खेत की 4 से 5 जुताई (10-15 से.मी. गहरी) करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं। खेत को तैयार करने के बाद खेत को छोटे-छोटे क्यारियों एवं नालियों में बांट देते हैं। आखिरी जुताई या रोपाई से तीन सप्ताह पहले 200 से 300 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद देकर एक से दो जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक
  • गोबर की खाद या कम्पोस्ट 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टर
  • नत्रजन: 80 से 100 किलोग्राम प्रति हेक्टर
  • फास्फोरस (स्फुर): 50 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टर
  • पोटाश: 70 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टर
  • जिंक सल्फेट: 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर

खाद एवं उर्वरक देने की विधि
कम्पोस्ट या गोबर खाद का प्रयोग रोपाई/बोआई से 20 से 25 दिन पहले डालकर जुताई करनी चाहिए। नत्रजन को तीन बराबर भाग में बांट कर एक भाग नत्रजन एवं फास्फोरस, पोटाश तथा जिंक की पूरी मात्रा मिट्टी में अंतिम जुताई या रोपाई/बोआई के दो दिन पहले मिला दें। नत्रजन की शेष मात्रा उपरिवेशन (टॉपड्रेसिंग) के रूप में दो बार देना चाहिए। पहला उपरिवेशन 25 से 30 दिन के बाद खेतों से खरपतवार निकालकर सिंचाई करने के बाद दें एवं दूसरा उपरिवेशन पहले उपरिवेशन से 30 से 50 दिन के बीच दें।

उन्नत किस्में
इसकी किस्म को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है। पहले वर्ग के लहसुन में केवल एक गांठ होती है और जवे नहीं होते हैं इसका प्रयोग केवल औषधि के रूप में होता है। दूसरे वर्ग के लहसुन में एक से अधिक जवे हात हैं। जिसकी मुख्य किस्में 
  • जमुना सफेद: इस किस्म के जवे गट्ठा होता है। गांठ का रंग उजला एवं एक गांठ में 28-30 जवे होते हैं। यह किस्म 155 से 160 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी क्षमता 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टर है। यह किस्म परपुल ब्लाच रोग से अवरोधी है।
  • एग्रोफाउण्ड सफेद : इस किस्म का रंग उजला होता है तथा प्रति गांठ में 20 से 25 जवे होते हैं। इसकी उपज क्षमता 130-140 क्विंटल प्रति हेक्टर है। इस किस्म को तैयार होने में 160 से 165 दिन लगते हैं। यह किस्म परपल ब्लॉच से अवरोधी है।
  • पंजाब लहसुन: इसकी गांठ तथा जवा उजले रंग के होते हैं इसकी उपज क्षमता 90 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टर है।
  • लहसुन 56-4 : इसकी गांठ लाल रंग की होती है इसके प्रत्येक गांठ में 25 से 35 जवे होते हैं। यह 150 से 160 दिन में तैयार हो जाती है जबकि इसकी औसत उपज 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टर है। 5. जमुना सफेद-2 : इसकी उपज क्षमता 130 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टर है। इस किस्म को तैयार होने में 160-170 दिन का समय लगता है। गांठ में 18 से 20 जवा होते हैं तथा गांठ ठोस और उजले रंग की होती है।
  • जमुना सफेद-3 : इसकी गांठ सफेद, बड़े आकार की एवं ठोस होती है। प्रत्येक जवा 1.04-1.05 से.मी. मोटा होता है। एक जवा 2.5-2.8 ग्राम वजन का होता है, जवा का रंग सफेद तथा गुदा क्रीम रंग का होता है। इसमें 15 से 18 जवा प्रति गांठ (शल्क) पाये जाते हैं। यह जाति 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदवार 175-200 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है।
  • एग्रोफाउण्ड पार्वती : इसकी गांठ (बल्व) बड़े आकार तथा किमी उजला रंग का होता है। इसके प्रति गांठ में 10 से 16 जवा होता है। इस किस्म को तैयार होने में 160 से 165 दिन का समय लगता है जबकि इसकी उपज क्षमता 175 से 225 क्विंटल प्रति हेक्टर है।

बुवाई का समय : लहसुन की अधिक पैदावार लेने के लिए लहसुन की रोपाई अक्टूबर से नवम्बर तक करते हैं।

बुवाई विधि : लहसुन के कन्दों में कई कलियाँ (क्लोब) होती है इन्हीं कलियों की गाठों से अलग-अलग करके बुआई की जाती है। बोते समय कतारों की दूरी 10-15 से मी. तथा कतारों में कलियों की दूरी 75-10.0 से.मी. रखते हैं। बुआई लगभग 2-3 से.मी. गहरी करते हैं बुआई करते समय यह ध्यान आवश्यक है कि कलियों का नुकीला भाग ऊपर ही रखा जाये। बआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। 

बीज की मात्रा: क्लोब के आकार के अनुसार लगभग 700-1000 किलोग्राम कलियाँ (क्लोब) एक हेक्टर, रोपाई के लिए पर्याप्त होती हैं।

फसल की देखभाल : लहसुन की जड़ें अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती हैं अतः 2-3 बार उथली गुड़ाई करते हैं और खरपतवार निकाल देते हैं। सिंचाई समय-समय पर आवश्यकतानुसार करते हैं। साधारणतया जाड़े के मौसम में 10-15 दिनों के अन्तर पर सिंचाई करते हैं परन्तु गर्मियों में सिंचाई प्रति सप्ताह करते हैं, जिस समय गांठें बन रहीं हो सिंचाई जल्दी करते हैं। टपक सिंचाई पर भी लहसुन की अच्छी फसल ली जाती है। अधिक खरपतवार वाले क्षेत्रों में खरपतवारनाशक दवाईयाँ जैसे स्टॉम्प 3.5 लीटर प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग एकबार खरपतवार हाथ से निकालने पर अच्छी पैदावार ली जा सकती है।

खुदाई एवं लहसुन का सुखाना : जिस समय पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ जायें और सूखने लग जायें सिंचाई बंद कर देनी चाहिये। इसके कुछ दिनों के बाद लहसुन की खुदाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद गांठों को 3-4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं। फिर 2 से 2.25 से मी. छोड़कर पत्तियों को कन्दों से अलग कर लेते हैं। कन्दों को साधारण भंडार में पतली तह में रखते हैं। ध्यान रखें कि फर्श पर नमी न हो।

भण्डारण : अच्छी प्रकार के सुखाये गये लहसुन को उनकी छटाई करके साधारण हवादार घरों में रख सकते हैं। 6-8 महीने भण्डारण में 15-25 प्रतिशत तक नुकसान मुख्य रूप से होता है। पत्ती सहित बंडल बनाकर रखने से कम हानि होती है।

लहसुन की उन्नत खेती की विस्तृत जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें: https://www.kisaanhelpline.com/crops/rabi/8_Garlic

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