चिंता का विषय कणकी घास
सालो से किसान गेंहू की खेती कर रहे है, हमारे कृषि प्रधान देश में गेंहू की खेती का बहुत ज्यादा महत्व है। आये दिन किसानो को खरपतवारों और जंगली घास जो की गेंहू की फसल या अन्य कोई भी फसल को नुकसान पंहुचाती है। यह समस्या सिर्फ हमारे देश में नहीं बल्कि दुनिया के लगभग 25 देशो में है। गेंहू की फसल में लगने वाली ये कणकी घास का नुकसान अगर आकड़ो के हिसाब से देखा जाये तो 4000 करोड़ रूपये कीमत की फसल हर साल बर्बाद हो जाती है।
चिंता का विषय ये भी है की कई बार इस पर बार -बार किया जाने वाला खरपतवार नाशक का स्प्रे भी इसे खत्म नहीं कर पाता। इस घास से गेंहू की फसल नुकसान में तो आती है और उत्पादन पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। लगभग 80 फीसद पैदावार को कम कर देती है।
इस घास को खत्म करने के लिए 1980 से लेकर 90 तक आइसोप्रोट्यूल दवा का उपयोग किया गया, लेकिन 10 साल के बाद इस दवा का फसल पर असर कम हो गया। इसके बाद डाइक्लोकॉक्स नामक दवा आयी, और दो साल बाद यह भी असर छोड़ गयी। 1998 में टोपिन, प्यूमा पॉवर और लीडर दवा आयी जो 2010 से पहले-पहले बेअसर हो चुकी थीं। और फिर इसके बाद पिनोक्सेडेन, अथलांटिस जैसी दवाओं को किसानों ने खेतों में स्प्रे किया, लेकिन अब ये भी बेअसर ही है।
क्या करे उपाय -
1. इस से निपटने का सबसे अच्छा उपाय बिजाई के तुरंत बाद ही दवा का स्प्रे करे, ताकि 60 से 80 फीसद तक इसकी रोकथाम हो सके।
2. स्प्रे करने वाली दवा का ग्रुप बदल - बदल कर स्प्रे करे।
3. प्रमाणित और असर करने वाली दवाओं का ही स्प्रे करे।