Watermelon Farming: तरबूज की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में की जाती है। अन्य फलों की फसलों की तुलना में इस फल को कम समय, कम खाद और कम पानी की आवश्यकता होती है। गर्मी के मौसम की शुरुआत में भारत में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती की जाती है। इस दौरान बाजार में तरबूज के फल की काफी डिमांड रहती है। ऐसे में किसान इसकी खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकता है।
आपको बता दें कि तरबूज़ ग्रीष्म ऋतु का फल है। यह बाहर से हरे रंग के होते हैं, परन्तु अंदर से लाल और पानी से भरपूर व मीठे होते हैं। और इसके रस में प्रोटीन, खनिज और कार्बोहाइड्रेट के साथ 92% पानी होता है। गर्मियों में खुद को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए तरबूज के फल का सेवन अधिक मात्रा में किया जाता है। इससे किसानों का मुनाफा स्वत: ही लाखों के पार पहुंच जाता है।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
गर्म एवं औसत आर्द्रता वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। यह लगभग 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह से विकसित होता है। वहीं इसकी खेती के लिए रेतीली और बलुई दोमट भूमि सबसे अच्छी मानी जाती है। जानकारों के मुताबिक गंगा, यमुना और नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर खेती करना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है।
खेत की तैयारी
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। खेत में पानी कम या ज्यादा नहीं होना चाहिए। गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। अगर रेत की मात्रा अधिक है, तो ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए।
बुवाई का समय
तरबूज की खेती जलवायु और परिस्थितियों के अनुसार पहाड़ी, मैदानी और नदी क्षेत्रों में अलग-अलग महीनों में की जाती है। जबकि उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में तरबूज फरवरी और मार्च में बोया जाता है। इसके अलावा नवंबर से मार्च तक नदियों के किनारे बुवाई करनी चाहिए। जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल तक बुवाई करने की सलाह दी जाती है।