Cultivation of Mentha: औषधीय पौधों की खेती हमारे देश में कई वर्षों से हो रही है। किसान इससे अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं, क्योंकि इनका इस्तेमाल कई तरह की दवाइयां बनाने में होता है और इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है। मेंथा एक ऐसी फसल है, जिसकी खेती कर किसान मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। मेंथा की खेती पूरे देश में की जाती है, लेकिन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब के किसान मेंथा की खेती करते हैं। पूरी दुनिया में मेंथा से निकाले गए मेंथा तेल की खपत करीब 9500 मीट्रिक टन है। भारत इसके उत्पादन में दुनिया में पहले नंबर पर है।
मेंथा यानी पिपरमिंट, पुदीने की खेती से किसानों की हालत बदल सकती है। किसान एक एकड़ में फसल उगाकर एक लाख रुपए तक का मुनाफा कमा सकते हैं। और इससे उनकी आय में वृद्धि होगी।
विगत कुछ वर्षों से मेंथा जायद की प्रमुख फसल के रूप में अपना स्थान बना रही है। इसके तेल का उपयोग सुगन्ध के लिए व औषधि बनाने में किया जाता है। मैंथा (पुदीना) एक क्रियाशील जड़ी बूटी है। पुदीना को तेल, टूथ पेस्ट, माउथ वॉश और कई व्यंजनों में स्वाद के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
मेंथा की उन्नत खेती की जानकारी
मेंथा एवं वानिकी पौधों का प्रबंधन फरवरी में बोयी जाने वाली मेंथा एक प्रमुख नगदी फसल है।
मेंथा की उन्नत प्रजातियों कोशी, गोमती, हाइब्रिड-77 व एम.एस.एस.-1 का चयन करें।
मेंथा फसल के लिए मध्यम से लेकर हल्की भारी भूमि उपयुक्त रहती है।
जल निकास का उचित प्रबंध आवश्यक है।
मेंथा की बुआई फरवरी में कर सकते हैं।
बुआई के लिए 400-500 कि.ग्रा. जड़ें प्रति हैक्टर पर्याप्त होती हैं।
जड़ों के 5-7 सें.मी. लम्बे टुकड़े, जिसमें 3-4 गाठें हों, को काटकर 5-6 इंच की गहराई पर 45-60 सें.मी. की दूरी पर बनी पंक्तियों में बुआई करें।
अच्छी फसल लेने के लिए बुआई के समय 30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 75 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। बुआई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई अति आवश्यक है। अन्य सिंचाइयां आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अन्तराल पर करते रहें।