वर्तमान समय में देश में बाजरा (Millet) के उत्पादन और खपत को बढ़ावा दिया जा रहा है। बाजरा में छोटे अनाज और मोटे अनाज दोनों शामिल हैं।
International Year of Millets 2023 का उद्देश्य बाजरे की खपत को बढ़ाकर पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है। इसके लिए आठ मिल्लेट्स चिन्हित किए गए हैं, जिनमें ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, कुटकी, कंगनी, चेना, सांवा आदि शामिल हैं।
इनमें से कुछ छोटे अनाज और कुछ मोटे अनाज शामिल हैं। मोटे अनाज पिछले कई दिनों से चर्चा में हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि छोटे अनाज भी पोषण के मामले में काफी आगे हैं।
बाजरा (Millets) मुख्य रूप से राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक आदि राज्यों में उगाया जाता है। राजस्थान में यह देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 46-49 प्रतिशत तक उगाया जाता है। बाजरा की उत्पादकता में हरियाणा का प्रथम स्थान है।
तो आइये जानते है कैसे बाजरा की उपज को बढ़ाया जाये और किसान भाई इन उन्नत तरीकों को अपनाकर इस फसल की उत्पादकता दो गुना तक बढ़ा सकते है। और बाजरा की खेती में अच्छा उत्पादन प्राप्त करके अच्छा मुनाफा कमा सकते है।
जानिए बाजरा की फसल की उपज बढ़ाने के उन्नत तरीके:
गर्मियों में करें खेत की गहरी जुताई
गर्मी के मौसम में 1-2 जुताई एवं 3-4 साल में एक बार प्लाऊ की सहायता से गहरी जुताई आवश्यक रूप से करनी चाहिये। ये रोगों को रोकने एवं नमी के संरक्षण में बहुत लाभदायक हैं।
कम अवधि वाली किस्मों का करें चयन
वर्षा आधारित/बारानी क्षेत्रों में 70-75 दिनों में पकने वाली किस्मों को ही बोना चाहिए, जैसे कि एचएचबी-67, एचएचबी-60, आरएचबी-30, आरएच बी-154 एवं राज.-171 आदि। जहां पर 2-3 सिंचाइयां करने का पानी उपलब्ध हो, वहां पर 80 दिनों से ज्यादा तक पकने वाली सरकारी या निजी क्षेत्र द्वारा विकसित किस्मों को भी बोया जा सकता है।
बुवाई के लिए प्रयोग करें बीज की सही मात्रा
बाजरा की खेती के लिए सही मात्रा में सिफारिश के अनुसार 3-5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज दर का प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि बारानी अवस्था में 60-65 हजार पौधे प्रति एकड़ एवं 75-80 हजार पौधे सिंचित क्षेत्रों में प्राप्त हो सकें।
सही समय पर करें बाजरा की बुवाई
जुलाई का पहला पखवाड़ा इसकी बिजाई का सही समय होता है। 10 जून के बाद 50-60 मि.मी. वर्षा होने पर भी बाजरा बोया जा सकता है। 15 जुलाई से देरी होने के बाद इसकी उपज में कमी होती है। ऐसी परिस्थितियों में नर्सरी विधि द्वारा भी बिजाई की जा सकती है, जिससे देरी से की गई बिजाई की अपेक्षा काफी अच्छी उपज प्राप्त होती है।
बिजाई के 20 दिनों बाद, जहां कम पौधे हैं, वहां खाली जगह भरनी चाहिए एवं जहां सघन पौध हैं, वहां विरलन करके प्रति एकड़ की दर से वांछित पौधों की संख्या प्राप्त करनी चाहिए।
फसल के अच्छे विकास के लिए खरपतवार नियंत्रण अनिवार्य
निराई-गुड़ाई के लिए बिजाई के 15-30 दिनों बाद तक का समय उपयुक्त होता है। इससे खरपतवार नियंत्रण तो होता ही है, भूमि में नमी संरक्षण के लिए भी यह बहुत अच्छा उपाय है। इसके अलावा इससे भूमि में पौधों की जड़ों तक हवा का आवागमन भी हो जाता है।
खरपतवारनाशी के रूप में बाजरे में एट्राजिन (50 डब्ल्यूपी) 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से बिजाई के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए। रोगों एवं कीटों की रोकथाम के लिए बीजों का बुआई से पहले उपचार करना चाहिए। इसके अलावा बीजों का जीवाणु खाद (एजोस्पिरिलम व फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया) द्वारा भी बीजोपचार करना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
बिजाई के समय पर ही आधी मात्रा नाइट्रोजन एवं पूरी मात्रा फॉस्फोरस (40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन + 20 कि.ग्रा. फॉस्फोरस बारानी क्षेत्रों तथा 125 कि.ग्रा. नाइट्रोजन + 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस सिंचित क्षेत्रों के लिए) की मिट्टी में डाल दें तथा शेष नाइट्रोजन की मात्रा दो भागों में बिजाई के 20 दिनों बाद एवं 40 दिनों बाद प्रयोग करें।
बाजरा की खेती में सिंचाई प्रबंधन
जहां सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध है, वहां पर फुटाव व फूल बनते समय एवं बीज की दूधिया अवस्था में सिंचाई बहुत आवश्यक है। जो क्षेत्र वर्षा आधारित हैं, वहां नमी को संरक्षित करने के विभिन्न उपायों को अपनाना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में बाजरे के साथ ग्वार,
अंतरवर्तीय फसलों की करें बुवाई
मूंग, उड़द एवं लोबिया को अंतरवर्तीय फसल के रूप में 2:1अथवा 6:3 के अनुपात में उगाया जा सकता है, जिसमें किसानों को 2500-3000 रुपये प्रति एकड़ अलग से लाभ मिल सकता है।
इस प्रकार यदि हमारे किसान बाजरे की खेती को मजबूरी की खेती न मानकर मन की खेती मानें एवं ऊपर बताये गये सुझावों पर ध्यान दें, तो इसकी उपज को दो गुना तक बढ़ाया जा सकता है।