खरीफ सीजन शुरू हो चुका है। सोयाबीन की बुवाई से पहले इन उन्नत किस्मों के बारे में जान लें, अगले महीने से सोयाबीन की बुवाई का समय आ रहा है। भारत में सोयाबीन बहुत अधिक मात्रा में बोया जाता है, इसे देखते हुए किसानों को सोयाबीन की अधिक उपज देने वाली किस्मों के बारे में जानना जरूरी है ताकि वे इन किस्मों में से अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म का चयन कर सकें और समय पर सोयाबीन की बुवाई कर सकें।
सोयाबीन की बुवाई खरीफ सीजन में की जाती है। इसकी बुवाई जून के पहले सप्ताह से शुरू हो जाती है। लेकिन सोयाबीन की बुवाई का सबसे अच्छा समय जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के मध्य तक है।
सोयाबीन की जेएस-2034 किस्म
सोयाबीन की अच्छी पैदावार लेने के लिए जेएस-2034 एक अच्छा विकल्प है। इस पौधे के दाने का रंग पीला, फूल का रंग सफेद होता है। कम वर्षा वाले स्थानों पर किसान इस किस्म की बुवाई कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। जेएस 2034 किस्म का उत्पादन 1 हेक्टेयर में लगभग 24-25 क्विंटल होता है। यह फसल 80-85 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी खासियत यह है कि यह पीला विषाणु रोग, चारकोल रॉट, लीफ स्पॉट, जीवाणु कीट लीफ स्पॉट व कीटों के प्रति प्रतिरोधक है। कम वर्षा में उपयोगी। सोयाबीन की यह किस्म जेएस है। यह JS 95-60 और JS 93-05 से लगभग 8-10 दिन पहले कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता अन्य जल्दी पकने वाली सोयाबीन किस्मों की तुलना में सबसे अधिक है।
सोयाबीन की जेएस-2069 किस्म
सोयाबीन की जेएस-2069 किस्म जल्दी पकने वाली प्रजाति है। इस किस्म की बुवाई के लिए प्रति एकड़ 40 किलो बीज की जरूरत होती है। इस बीज से 1 हेक्टेयर में करीब 22-26 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है। इस किस्म को तैयार होने में 85-90 दिन लगते हैं। इस किस्म के दाने चमकदार होते हैं, 100 दानों का वजन 10 से 11 ग्राम होता है, फूलों का रंग सफेद होता है, फूल आने की अवधि 40 दिन होती है, फलियों के भूरे होने की समस्या नहीं होती है। इस किस्म में अधिक वर्षा व रोग के प्रति विशेष प्रतिरोधक क्षमता तथा अधिक उत्पादन क्षमता होने के कारण यह नवीन किस्म किसानों के लिए वरदान साबित होगी।
सोयाबीन की MACS-1407 किस्म
सोयाबीन की उन्नत किस्मों में MACS-1407 भी शामिल है। यह किस्म उत्तर भारत के बरसाती क्षेत्र के लिए काफी उपयुक्त है। साथ ही सोयाबीन की नई MACS 1407 किस्म को क्रॉस ब्रीडिंग तकनीक से तैयार किया गया है। इस नई किस्म से प्रति हेक्टेयर 39 क्विंटल तक सोयाबीन का उत्पादन हो सकेगा। एमएसीएस 1407 की खासियत की बात करें तो यह किस्म बंपर पैदावार देती है और गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिड्स, व्हाइट फ्लाई और डेफोलिटर्स जैसे खतरनाक कीटों से प्रतिरक्षित है। इसकी खेती मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम और पूर्वोत्तर राज्यों में की जाती है। बुवाई के 43 दिन बाद इस पर फूल खिलने लगते हैं। बुवाई के 104 दिन बाद यह पक जाती है। इसकी बुवाई का सही समय जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक माना जाता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 39 क्विंटल उपज देती है।
सोयाबीन की NRC 181 किस्म
सोयाबीन की NRC 181 किस्म को अधिक उपज देने वाली किस्म माना जाता है। सोयाबीन की इस NRC 181 किस्म (सोयाबीन नई किस्म) की वृद्धि सीमित होती है। इसमें सफेद फूल, गहरे भूरे रंग का हिलम, भूरे बाल होते हैं। यह किस्म कुनिट्ज ट्रिप्सिन अवरोधक से मुक्त है, पीले मोज़ेक और टारगेट लीफ ऑफ स्पॉट के लिए प्रतिरोधी है, राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट, चारकोल रॉट और एन्थ्रेक्नोज के प्रति संवेदनशील है। इस किस्म की खेती भारत के मैदानी इलाकों में की जाती है। इस किस्म को तैयार होने में 90-95 दिन लगते हैं और इसका औसत उत्पादन 16-17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
सोयाबीन की बीएस 6124 किस्म
बीएस 6124 किस्म भी सोयाबीन की उन्नत किस्म में शामिल है। इस किस्म में फूल बैंगनी रंग के होते हैं और पत्ते लंबे होते हैं। यह किस्म बुवाई के 90 से 95 दिन बाद तैयार होने वाली फसल है। यह प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल उपज देती है। यह किस्म 21 प्रतिशत तक तेल उत्पादन भी देती है।