जैसे की आप जानते है केसर एक आयुर्वेदिक औषधीय और मुनाफे वाली खेती है, केसर जिसे की कश्मीर और पाकिस्तान में जाफरान और इसे ही अंग्रेजी में Saffron (सेफ्रॉन) कहते हैं। केसर जो की स्पेन, इटली, ईरान, पाकिस्तान, चीन तथा भारत का जम्मू-कश्मीर ही इसका सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है, जहाँ पर इसकी खेती की जाती है। भारत में केसर की खेती व्यवसायिक तौर पर मुख्यतः कश्मीर में मानी जाती है। वैसे तो भारत में केसर 95% विदेशों से आयात होती है पर फिर भी भारत में कश्मीर की केसर बहुत ही विश्व प्रसिद्ध है | इसके अलावा भारत में अनेक क्षेत्रों में भी केसर की खेती को अपना रहे हैं लेकिन जलवायु के विविधता के कारण वहां कम कारगर साबित हो रही है। जम्मू कश्मीर में केसर की खेती का राज मुख्यतः वरदान है।
केसर का उपयोग और लाभ
केसर हमारे भोजन के स्वाद, सुगन्ध और रंगत बदलने के साथ-साथ हमारे स्वास्थ के लिए भी बहुत फायदेमंद है। यह हमारे पाचन तंत्र, आँख, सिर और स्किन की देखभाल के साथ हमारी शाररिक शक्ति को बढाने एवं अच्छी नीद के लिए उत्तम है। इसका उपयोग दवाईयों को बनाने में किया जाता है। इसका का उपयोग खाद्य के रूप में खीर, मिठाईयां, बिरयानी बनाने तथा दूध के साथ पीने में किया जाता है।
केसर की पहचान
एक सफ़ेद पेपर पर हम केसर के एक टुकड़े को लेकर उस पर 2-3 बूंद ठंडा पानी डालते हैं। इसमें से हल्का सा पिला रंग निकलता है और पानी पिला हो जाता है, तथा यह अपने मूल लाल रंग में ही रहता है।
बुवाई का समय
केसर का बीज लगाने का सही समय जुलाई से अगस्त अगस्त माह के बीच में उपयुक्त रहता है।
बुवाई का तरीका
इसकी पौधे की खेती कंद से की जाती है। इसके कंद को बल्ब भी कहा जाता है। इसके अलावा इसकी खेती बीज के माध्यम से भी की जाती है। इसका बीज नींबू के आकार का होता है।
केसर का बीज
केसर की खेती बल्ब के अलावा बीज से भी की जाती है का बीज जो की दिखने में निम्बू के बीज की तरह होता है जो की आसानी से बाजार में मिल जाता है।
केसर का बल्फ
केसर की खेती में केसर का बल्फ को जमीन में बोया जाता है जो की दिखने में प्याज की जड़ो की तरह होता है।
अनुकूल जलवायु
यह शीतोष्ण तथा सुखी जलवायु का पौधा है। भारत में जम्मू-कश्मीर की जलवायु इसके लिए सर्वोत्तम है। समुंदर तल से मुख्यतः 1500-2500 मीटर की ऊंचाई वाले पथरीली भूमि स्थान, जलवायु ठंडी तथा शुष्क होनी चाहिए | हल्की धूप वाले क्षेत्रों में ज्यादा विकसित की जा सकती है ज्यादा बारिश वाले स्थान पर पौधे का विकास कम होता है | ज्यादा बारिश वाले स्थान भी प्रभावित करते हैं, फूल लगने की क्रिया भी थोड़ी कम हो जाती है।
भूमि का चयन
वैसे तो इसकी खेती अनेक प्रकार की मिट्टी में की जाती है। लेकिन इसकी खेती केलिए दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं।
खेत की तैयारी
केसर का बीज बोने या लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से जुताई की जाती है। इसके अलावा मिट्टी को भुरभुरा बना कर आखिरी जुताई से पहले 20 टन गोबर का खाद और साथ में 90 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस और पोटास प्रति हेक्टेयर के दर से अपने खेत में डाला जाता है। इससे आपकी जमीन उर्वरक रहेगी एवं केसर की फसल काफी अच्छी होगी।
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
खेत तैयारी के समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट को मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरक मिट्टी परीक्षण के आधार पर और कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर उपयोग में लेना चाहिए।
सिंचाई
केसर की खेती में औसतः 10 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है | एक बार केसर बीज की रोपाई के लगभग 15 -15 दिन के अंतराल में 2-3 सिंचाई करें | सिंचाई करते समय मुख्य ध्यान रखें कि कहीं खेत में जलभराव ना हो विशेष तौर से बारिश के समय यदि हो तो जल निकासी का जल निकासी प्रबंधन करें।
खरपतवार नियंत्रण
पौधों के अच्छे विकास के लिये खरपतवार नियंत्रण अतिआवश्यक होता है, खेत मे देखरेख करते रहना चाहिए, खरपतवार हटा देनी चाहिए।
कटाई
केसर हमें फुल के रूप में मिलता है, फुल को तोड़ने के बाद इन्हें 4-5 घंटे छायादार स्थान पर सुखाया जाता है। एक फुल से 3 केसर होते है। इसके फूल लाल रंग के होते हैं, जिसके अंदर 2 नारंगी रंग के भाग होते है जिन्हें की छाट कर अलग किया जाता है।
पैदावार
तीन महीने में पक कर तैयार होने वाली केसर की ये फसल के हर फूल में मिलने वाले केसर के 1 किलो होने के लिए हमे ऐसे 150,000 फूलो की आवश्यकता होती है। इसकी कीमत बाजार में 2.5 से 3 लाख प्रति किग्रा है।
आज के समय में इसकी खेती राजस्थान और महाराष्ट्र में सफलता पूर्वक की जा रही है। जिसे केसर की खेती में एक क्रांति के रूप में देखा जा रहा है।