कठिया गेहूं की उन्नत खेती, जानिए कठिया गेहूं की उन्नतशील किस्मों के बारे में

कठिया गेहूं की उन्नत खेती, जानिए कठिया गेहूं की उन्नतशील किस्मों के बारे में
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Kisaan Helpline

Crops Oct 04, 2022

Kathiya wheat cultivation: भारत में कुल गेहूं उत्पादन का 4 प्रतिशत कठिया गेहूं पैदा किया जाता है। इसकी खेती लगभग 25 लाख हैक्टर में होती है। जिससे 10 से 12 लाख टन का उत्पादन होता है। कठिया गेहूं की खेती मुख्यतः मध्य प्रदेश के मालवा अंचल गुजरात के सौराष्ट्र और कठियावाड़ राजस्थान के कोटा, मालावाड़ एवं उदयपुर तथा उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में की जाती है। इसकी किस्मों में सूखा प्रतिरोधी क्षमता अधिक होती है। इसलिये कठिया गेहूं में मात्र 3 सिंचाई ही पर्याप्त होती हैं। इस वजह से यह सूखे क्षेत्रों में किसानों के लिए बेहतर विकल्प है। 
कठिया गेहूं में 12 से लेकर 14 प्रतिशत प्रोटीन तथा बीटा कैरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन 'ए' बनता है। साधारण गेहूं में यह नहीं मिलता है। इसमें ग्लूटन भी पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है। कठिया गेहूं का उपयोग दलिया, सूजी रखा, पिज्जा, स्पेपेटी, सेवइया नूडल्स और शीघ्र पचने वाले पौष्टिक आहारों में होता है।
अंतर्राष्ट्रीय तर्राष्ट्रीय बाजार में कठिया गेहूं की मांग तेजी से बढ़ रही है। स्थिति यह है कि साधारण गेहूं के मुकाबले इस गेहूं को अधिक कीमत मिल रही है। ऐसे में किसानों का रुझान एक बार फिर कठिया गेहूं को तरफ बढ़ रहा है।


उत्पादन तकनीकी
बुआई का समय व विधि 
असिंचित क्षेत्रों में कठिया गेहूं की बुआई अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से लेकर नवंबर माह के प्रथम सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए। सिंचित अवस्था में नवंबर माह का दूसरा एवं तीसरा सप्ताह बुआई के लिए सर्वोत्तम समय होता है।

बीज की मात्रा
बुआई के लिए 40 कि.ग्रा. प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। बुआई से पहले बीज शोधन अवश्य करें।

बीज उपचार
बीज को वीटावैक्स 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुआई करें।

उन्नत प्रजातियां
एच.डी.-4728 (पूसा मालवी) {HD-4728 (Pusa Malvi)}
यह सिंचित क्षेत्रों के लिए समय से बुआई करने वाली प्रजाति है और मध्य भारत के लिए संस्तुत है। पूसा मालवी 120 दिनों में पककर तैयार होती है। इसका दाना बड़ा, चमकीला और उच्च गुणवत्ता का होता है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 5.42 टन तथा संभावित उत्पादन क्षमता 6.28 टन प्रति हैक्टर है। इस किस्म में तना व पत्ती के गेरुई रोग के लिए अधिक प्रतिरोधी क्षमता पाई जाती है।

एच.आई. - 8498 ( पूसा अनमोल) {H.I. - 8498 (Pusa Anmol)}
यह सिंचित क्षेत्रों के लिए समय से बुआई करने वाली प्रजाति है। पूसा अनमोल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र के लिए संस्तुत किस्म है। इसमे बीटा कैरोटीन की उच्च मात्रा के साथ-साथ जिंक व आयरन की प्रचुर मात्रा पायी जाती है।

एच. आई. - 8381 (मालव श्री ) {H.I. - 8381 (Malav Shree)}
यह मध्यम- देरी से बुआई की जाने वाली प्रजाति है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 4.0 4.2 टन तथा संभावित उत्पादन क्षमता 4.9-5.0 टन प्रति हैक्टर है। 

एम.पी.ओ.-1215 (MPO-1215)
यह समय से बुआई करने वाली प्रजाति है और सिंचित क्षेत्रों के लिए संस्तुत है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 4.6-5.0 टन प्रति हैक्टर है।

एम.पी.ओ - 1106 (MPO - 1106)
यह समय से बुआई करने वाली प्रजाति है और सिंचित क्षेत्रों के लिए संस्तुत है। एमपीओ- 1106 मध्य भारत के लिए संस्तुत किस्म है। इसकी अवधि 113 दिनों की है।

एच.डी. - 4728 ( मालवा रतन ) {HD - 4728 (Malwa Ratan)}
यह असिंचित क्षेत्रों में समय से बुआई की जाने वाली प्रजाति है। इसके दाने आकार में अधिक बड़े होते हैं। इसमें 12.12 प्रतिशत प्रोटीन पायी जाती है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 2.3-2.5 टन तथा संभावित उत्पादन क्षमता 3.0-3.5 टन प्रति हैक्टर है।


एच.आई. - 8627 (मालवा कीर्ति) {H.I. - 8627 (Malwa Kirti)}
यह असिंचित क्षेत्रों में बुआई की जाने वाली प्रजाति है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 2.6-3.0 टन प्रति हैक्टर है। मालवा कीर्ति मध्य भारत के लिए संस्तुत किस्म है। 

एच.आई. - 8713 (पूसा मंगल ) {H.I.- 8713 (Pusa Mangal)}
यह सिंचित क्षेत्रों में देर से बुआई की जाने वाली प्रजाति है। पूसा मंगल मध्य भारत के लिए संस्तुत किस्म है। इसमें प्रोटीन व बीटा कैरोटीन की उच्च मात्रा पायी जाती है।

एच. आई. - 8498 ( मालवा शक्ति) {H.I. - 8498 (Malwa Shakti)}
यह सिंचित क्षेत्रों के लिए समय से बुआई की जाने वाली प्रजाति है। मालवा शक्ति 136-140 दिनों में पककर तैयार होती है। इसका दाना बड़ा होता है तथा इसमें प्रोटीन व बीटा कैरोटीन की उच्च मात्रा पायी जाती है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 4.0 4.5 टन तथा संभावित उत्पादन क्षमता 5.0 5.2 टन प्रति हैक्टर है।

एच. आई. - 8663 (पोषण) {H.I. - 8663 (Poshan)}
इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता अधिक है। इसमें बीटा कैरोटीन, प्रोटीन तथा सूक्ष्म तत्वों की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। यह दोहरे उपयोग के लिए प्रयोग होने वाली किस्म है और इससे चपाती तथा समोलिना दोनों बनाई जाती हैं। यह प्रजाति प्रायः द्वीपीय क्षेत्रों के लिए संस्तुत है, परंतु इसमें टर्मिनल हीट स्ट्रैस तथा सूखाग्रसित क्षेत्रों में अधिक पैदावार देने की क्षमता पाये जाने की वजह से यह किस्म मध्य प्रदेश में भी बृहद रूप में अपनायी जा रही है।


पी. डी.डब्ल्यू. - 291 {P.D.W. - 291}
यह समय से बुआई करने वाली प्रजाति है, जो कि सिंचित क्षेत्रों के लिए संस्तुत है। पी. डी.डब्ल्यू. - 291 पंजाब, हरियाणा, दिल्ली राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए संस्तुत किस्म है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 4.85 टन प्रति हैक्टर है। यह प्रजाति गेरुआ, करनाल बंट, कंड रोग प्रतिरोधी है।

उर्वरकों की मात्रा
संतुलित उर्वरक एवं खाद का उपयोग गेहूं के दानों के श्रेष्ठ गुण तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अतिआवश्यक है। अतः 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन (आधी मात्रा जुताई के समय), 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर सिंचित दशा में पर्याप्त है। इसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करनी चाहिए। असिंचित दशा में 60:30:15 तथा अर्द्ध असिंचित दशा में 80:40:20 के अनुपात में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। उपलब्धता हो तो 10-15 टन प्रति हैक्टर गोबर की खाद का प्रयोग किया जा सकता है। मृदा परीक्षण के आधार पर जिंक की कमी पाये जाने पर 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। 

सिंचाई
सिंचाई के लिए बुआई से पूर्व ही खेत में नमी बनाई जाती है। इसके लिए खेत के चारों तरफ से मेड़बंदी कर उसमें नमी संरक्षित की जाती है।
कठिया गेहूं में सिंचाई का समय
असिंचित दशा
दो सिंचाई: पहली सिंचाई कल्ले फुटाव पर बुआई के 35-40 दिनों बाद एवं दूसरी सिंचाई पौधे में बालियां आने पर 75-80 दिनों पर।
तीन सिंचाई: पहली सिंचाई बुआई के 20-23 दिनों बाद एवं दूसरी सिंचाई बुआई के 45-50 दिनों एवं तीसरी 90-95 दिनों पर।
सिंचित और समय से बुआई की दशा में
चार सिंचाई: पहली सिंचाई बुआई के 20-23 दिनों पर दूसरी सिंचाई | कल्ले फुटाव पर 35-40 दिनों पर तीसरी 55-60 दिनों पर दाने बनने की अवस्था में तथा चौथी 90-95 दिनों पर दूध बनने की अवस्था पर यदि पांच सिंचाई उपलब्ध हो तो बालियां आने पर सिंचाई की जा सकती है।

फसल सुरक्षा
कठिया गेहूं में निराई-गुड़ाई की विशेष आवश्यकता नहीं होती है। कभी-कभी बथुआ व हिरनखुरी नामक खरपतवार दिखता है, जिसकी निराई कर उसे पशुओं को खिलाने के काम में लाते हैं। अधिक खरपतवार होने की दशा में खरपतवारनाशी का प्रयोग किया जा सकता है। संकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के एक साथ नियंत्रण के लिए पेण्डीमेथलीन 30 प्रतिशत ई.सी. की 3.30 लीटर प्रति हैक्टर बुआई के 3 दिनों के अंदर 500-600 लीटर पानी की मात्रा प्रति हैक्टर की दर से फ्लैटफैन नाजेल से छिड़काव करना चाहिए या सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 प्रतिशत + मेट सल्फोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 5 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 400 ग्राम का (2.50 यूनिट) बुआई के 20 से 30 दिनों के अंदर छिड़काव करें। खरपतवारनाशी के प्रयोग के समय खेत में नमी का होना आवश्यक है। 


उपज एवं भंडारण
कठिया गेहूं के झड़ने की आशंका रहती है। अतः पक जाने पर शीघ्र कटाई तथा मड़ाई कर लेनी चाहिए। उन्नत तकनीक से खेती करने पर सिंचित अवस्था में 35-45 क्विंटल उत्पादन/हैक्टर प्राप्त होता है। असिंचित अवस्था में 10-20 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त होती है। सुरक्षित भंडारण के लिए दानों में 10-12 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए। भंडारण के पूर्व कमरों को साफ कर लें। भंडारण कीट के नियंत्रण के लिए एल्यूमिनियम फॉस्फाइड की गोली 3 ग्राम / टन की दर से भंडारगृह में धुंआ करें।

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