करी पत्ता एक बारहमासी मसाले का पेड़ है करी पत्ते को मीठी नीम के नाम से भी जाना जाता है। इसका पेड़ कड़वे नीम की तरह ही होता है, लेकिन इसकी पत्तियां किनारों पर से कटी हुई नहीं होती हैं। इसके पेड़ की लंबाई 14 से 18 फीट तक जा सकती है। करी पत्ते का इस्तेमाल व्यंजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके पत्तों को अधिकतर रसेदार व्यंजनों में प्रयोग किया जाता है। इस कारण लोग इन्हें लगभग 2.5 मीटर तक ही बढ़ने देते हैं, क्योंकि इसके पौधे पर फूल बनने के बाद इसका विकास रुक जाता है।
उपयोग
दक्षिण भारत में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में प्राकृतिक सुवासकारक के रूप में इसके पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। साबुनी सुगंध में स्थिरीकारक के रूप में इसके वाष्पशील तेल का प्रयोग किया जाता है। करी पत्ता खाने के स्वाद और खूशबू दोनों को ही बढ़ा देता है इस लिए दक्षिण भारत खाने में इसका खूब उपयोग किया जाता है. इस पौधे के पत्ते, छाल और जड़ों का उपयोगदेसी दवाइयों में टॉनिक, उत्तेजक, वातहर और क्षुधावर्धक के रूप में किया जाता है।
जलवायु व तापमान
करी पत्ता एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है। इसकी बढ़वार उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में सबसे अच्छी होती है। पूर्ण सूर्य की रोशनी के साथ इसे गर्म तापमान की आवश्यकता होती है। सर्दियों में न्यूनतम 10 और गर्मियों में अधिकतम 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसका पौधा विकास अच्छा होता है। मीठी नीम के पौधे को समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर भी उगाया जा सकता है।
उपयुक्त मृदा
उचित जल प्रबंधन वाली उपजाऊ दोमट भूमि उपयुक्त होती है। करी पत्ते की खेती के लिए जलभरांव वाली चिकनी काली मृदा उपयुक्त नहीं होती। इसके पौधे एक बार लगाने के बाद 10 से 15 वर्षों तक पैदावार देते हैं। बारिश के मौसम में जल भराव होने की वजह से करी पत्ते के पौधों में कई तरह के रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है। मृदा का पी-एच मान 6 से 7 के बीच उपयुक्त माना जाता है।
भूमि की तैयारी
करी पत्ते की खेती के लिए खेत को 2 से 3 जुताइयाँ कर हर जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। खेत को ढेले रहित व भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके बाद खेत में तीन से चार मीटर की दूरी पर हल्के गड्ढे तैयार कर लें। इन गड्ढों को पंक्ति के रूप में ही तैयार करें और पंक्तियों के बीच समान दूरी बनाकर रखें। उसके बाद इन गड्ढों में पुरानी गोबर की खाद और जैविक उर्वरक की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर उन्हें गड्ढों में 15 दिन पहले भर दें। मिट्टी भरने के बाद गड्ढों की सिंचाई कर दें। उर्वरक मात्राः करी पत्ते का औषधियों और मसालों में उपयोग होता है। इस कारण इसकी पैदावार में हमेशा जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। इसकी खेती के लिए गड्ढों की तैयारी के समय लगभग 250-300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद सामान रूप से खेत में मिला देना चाहिए। उसके बाद हर तीसरे महीने जैविक कम्पोस्ट खाद पौधों को दो से तीन कि.ग्रा. की मात्रा में दें।
किस्में
किसान ज्यादातर करी पत्ते की स्थानीय किस्मों को पसंद करते हैं। कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ ने हाल ही में मीठी नीम की दो किस्में डीडब्ल्यूडी-1 और डीडब्ल्यूडी-2 जारी की हैं, जिनमें क्रमश- 5.22 और 4.09 प्रतिशत तेल होता है। दोनों किस्मों में तेज सुगंध पाई जाती है।
बीज रोपाई का तरीका और समय
करी पत्ते के पौधे बीज के माध्यम से लगाए जाते हैं, जबकि किसान इसे कलम के माध्यम से भी लगा सकते हैं। ज्यादातर लोग इसे बीज के माध्यम से ही लगाना पसंद करते हैं। बीज और कलम दोनों ही प्रकार से लगाने पर समान तरीके से पैदावार मिलती है। इसके बीजों को खेत में तीन से चार मीटर की दूरी पर बनाए गए गड्ढों में लगाया जाता है। करी पत्ता के बीजों की रोपाई सर्दी के मौसम को छोड़कर कभी भी की जा सकती है, लेकिन इसे मार्च में उगाना अच्छा होता है। मार्च में बीज लगाने के बाद सितंबर से अक्टूबर तक ये काटने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी पहली कटाई बीज रोपाई के सात महीने बाद की जाती है। उसके बाद हर तीसरे महीने पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है।
सिंचाई, जल निकास व खरपतवार प्रबंधन
करी पत्ते का पौधा अधिक जलमांग वाला पौधा है। किसान गर्मियों में फसल पर नियमित रूप से सिंचाई अवश्य करें। वहीं सर्दियों में हल्की सिंचाई करें, पर ध्यान रहे इस समय उर्वरक बिलकुल नहीं दें।सिंचाई के बाद भूमि नम हो जाने के बाद खरपतवारों की निराई कर फसल से निकाल देना चाहिए। वर्ष में 1-2 बार निराई की आवश्यकता होती है। निराई करते समय पौधों पर मिट्टी चढ़ा दें, ताकि जड़े खुली न रहें।
रोग एवं रोकथाम
करी पत्ते के पौधों की कटाई हर 3 महीने के अंतराल पर की जाती है। इस दौरान इसमें काफी कम रोग ही देखने को मिलते हैं। कीटों का आक्रमण करी पत्ते के पौधे पर कीटों का आक्रमण मौसम परिवर्तन की वजह से देखने को मिलता है। पौधे पर लगने वाले कीट और उनके लार्वा इसकी पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। करी पत्ते की पत्तियों का इस्तेमाल व्यावसायिक रूप से होता है, इसलिए इसकी पत्तियों को कीटों के आक्रमण से बचाने के लिए पौधे पर नीम का तेल या नीम के पानी का छिड़काव करें।
जड़ गलन: यह रोग जल भराव की स्थिति में देखने को मिलता है। इस रोग के लगने पर पूरा पौधा नष्ट हो जाता है। शुरूआत में इससे पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं। उसके कुछ दिनों बाद पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं। जड़गलन का सबसे अच्छा बचाव यह है कि पौधों की जड़ों में पानी भरा न रहने दें। इसके अलावा रोग लगने पर पौधों की जड़ों में ट्राइकोडर्मा का छिड़काव करना चाहिए।
दीमक: यह मिट्टी में रहकर पौधे की जड़ों को नुकसान पहुंचाती है। इसके लगने पर पौधे की पत्तियां मुरझाने लगती हैं। उसके बाद धीरे-धीरे पूरा पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है। दीमक की रोकथाम के लिए बीज को क्लोरोपाइरीफॉस से उपचारित कर खेत में लगाएं या क्लोरोपाइरीफॉस की 2 मि.लीटर प्रति लीटर जल की मात्रा के घोल से पौधे की जड़ों में सिंचाई करें।
तुड़ाई व फसल कटाई का समय
करी पत्ते के पौधे में जब पर्याप्त वानस्पतिक विकास हो जाये तब किसान इसकी पत्तियों की तुड़ाई कर सकते हैं। वैसे तो आवश्यकता पड़ने पर इसकी पत्तियों को किसी भी समय तोड़ा जा सकता है। इसके पौधे बीज लगने के सात महीने बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं करी पत्ते के पौधों की कटाई करते समय इन्हें लगभग आधा फीट ऊपर से काटें, जिससे पौधा फिर से अंकुरित होने में ज्यादा समय नहीं लेता है और शाखाओं की संख्या में भी वृद्धि होती है। पहली कटाई के बाद पौधे तीसरे या चौथे महीने फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके पौधों पर फूल बनने से पहले काट लेना चाहिए. क्योंकि फूल बनने के बाद पौधा विकास नहीं करता।
पैदावार
करी पत्ते की पत्तियों की 2 से 4 टन प्रति हैक्टर पैदावार हो जाती है।
करी पत्तों को सुखाना
इसकी तोड़ी गयी संपूर्ण पत्तियों को इकट्ठा करके छायादार जगह में सुखा लें तथा पत्तियों को पलटते रहें, जिससे कि पत्तियां सड़ने न पायें अन्यथा उनकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। बाजार में ऐसी पत्तियां का उचित दाम भी नहीं मिल पाता। साथ ही ऐसी पत्तियों से बनाये चूर्ण में भी अन्य स्वस्थ पत्तियों से बनाये गये चूर्ण के बराबर खुशबू व गुणवत्ता नहीं होती है ।
भंडारण
इसकी पत्तियों को शुष्क स्थान में भंडारित करना चाहिए | पत्तियों का भंडारण गोदाम में सर्वोत्तम होता है। कोल्ड स्टोरेज इसके लिए उपयुक्त नहीं होता है।