रोग रोधी किस्मों की बुवाई करें। उत्तरी भारत के लिए अनुमोदित बी.टी. किस्मों में से पत्ता मरोड़ के प्रति सहनशील तथा जल्दी पकने वाली किस्मों का चयन करें। जहां पर पत्ता मरोड़ का रोग अधिक होता है, वहां पर बी.टी. कपास की बुवाई ना करके केवल देसी कपास की बुवाई करें, क्योंकि देशी कपास में यह रोग नहीं लगता।
अप्रैल-मई में गहरी जुताई करें तथा पिछली की जड़ों को एकत्रित करके नष्ट करें। जल्दी तैयार होने वाली सिफारिश की गई बी.टी. किस्मों की बुवाई संभव हो तो 10 मई तक पूरी कर लें। लम्बी अवधि वाली किस्मों की बुवाई कभी भी 10 मई के बाद में ना करें।
खेत में पनप रहे विभिन्न कीटों, कीटाणु और बीमारियों को नष्ट करने के लिए फसल की कटाई के की गहरी जुताई करें और 10 से 15 दिन के लिए खाली छोड़ देना चाहिए, जिससे रस चूसक कीट तथा रोग खुले में आने के कारण और धूप में तपश होने के कारण नष्ट हो जाते है तथा पक्षियों द्वारा खा लिए जाते है। तेज धूप से बहुत सारे कीटाणु और फफूंद नष्ट हो जाते है।
लम्बी अवधि वाली किस्मों की बुवाई 10 मई के बाद ना करें। संभव हो सके तो भी जल्दी पकने वाली कम अवधि की किस्मों का चुनाव करें।
नीबू प्रजातियों के बागों में बागों के आस-पास बी.टी. कपास की बुवाई ना करें।
खेतों,नालों, सड़कों और नहर के किनारों पर वैकल्पिक पौधों जैसे कंगी बूटी, पीली बूटी तथा अन्य खरपतवारों को जड़ से उखड कर दबा दें।
जिन फसलों में सफ़ेद मक्खी ज्यादा पाई जाती है, उनको कपास के साथ ना लगाएँ।
नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश तथा लिंक आदि अनुमोदित संतुलित उर्वरकों का ही प्रयोग सिफारिश अनुसार इस्तेमाल करें। नाइट्रोजन वाले उर्वरक को जरूरत से ज्यादा ना डालें। इससे रस चुसक कीटों का प्रकोप अधिक होता हैं।
कपास की मोढ़ी फसल कभी ना लें, क्योंकि यह सफेद मक्खी तथा पत्ता मरोड़ के विषाणु दोनों को पनपने देती हैं।
रोग ग्रसित क्षेत्रों में बीज की मात्रा अधिक रखें, क्योंकि रोग ग्रसित पौधों को शुरू की अवस्था में ही निकाल दें। बुवाई के बाद फसल की लगातार निगरानी रखें।
सफेद मक्खी को नियंत्रण में रखें। सफेद मक्खी के लिए शुरूआत में नीम के तेल का प्रयोग करें। सफ़ेद मक्खी संख्या कटौती रोकने के लिए 15 सितम्बर के बाद सिंथेटिक पायराथ्राइड का प्रयोग ना करें। सिंथेटिक पायराथ्राईड कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से सफेद मक्खी की संख्या में कई गुना बढ़ोत्तरी हो जाती है। छिड़काव पूरी मात्रा में पत्तियों की निचली सतह पर करना सुनिश्चित करें। जहां सफेद मक्खी के अंडे तथा व्यस्क अवस्था पत्तों के रस का शोषण करती है, वहां कीटनाशकों को एक साथ मिला कर प्रयोग ना करें।
दीमक के प्रकोप से बचाव के लिए 10 मिलीलीटर क्लोरोपायरीफॉस 10 मिलीलीटर पानी के साथ मिला कर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।
खेतों में निराई-गुड़ाई आवश्यकता अनुसार करें ताकि घास-फूस नष्ट हो जाएं, क्योंकि घास पर ही कीड़े आश्रित रहते हैं।
मिलीबग के प्रभाव के नियंत्रण हेतु खेतों में आस-पास व खालों, नालों, सड़क के किनारों पर उगने वाले पौधों को काट कर गहरा दबा दें।
मरोड़ या बीमारी से प्रभावित पत्तों को कीटों सहित तोड़ कर गहरा दबा दें। हर खेत में नियमानुसार 10 पौधों का निरीक्षण करें तथा देखें कि वे कौन-कौन से तथा कितने कीड़े चुने हुए पौधों पर हैं। गिनती करें तथा कीटो की संख्या आर्थिक कगार से ज्यादा पहुंचने पर सिफारिश की गई कीटनाशकों का छिड़काव करें तथा बाद में भी फसल पर सर्वेक्षण जारी रखें। प्रमुख कीटों का ध्यान रखें।