कम मेहनत और अधिक लाभ देने वाली पैदावार, अकरकरा की खेती कर किसान भाई कमा सकते है काफी ज्यादा मुनाफ़ा

कम मेहनत और अधिक लाभ देने वाली पैदावार, अकरकरा की खेती कर किसान भाई कमा सकते है काफी ज्यादा मुनाफ़ा
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Kisaan Helpline

Crops Sep 30, 2021

अकरकरा की खेती मुख्य रूप से औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। इसके पौधे की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने में किये जाता है। अकरकरा के इस्तेमाल से कई तरह की बिमारियों से छुटकारा मिलता है। आयुर्वेद में अकरकरा का प्रयोग लगभग 400 वर्षों से किया जा रहा है।

अकरकरा का वानास्पतिक नाम Anacyclus pyrethrum (L.) Lag. (ऐनासाइक्लस पाइरेथम) Syn-Anacyclus officinarum Hayne होता है। अकरकरा Asteraceae (ऐस्टरेसी) कुल का होता है। अकरकरा को अंग्रेजी में Pellitory Root (पेल्लीटोरी रूट) कहते हैं। लेकिन भारत के भिन्न भिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे-
संस्कृत : आकारकरभ, आकल्लक;
हिंदी : अकरकरा;
गुजराती : अकोरकरो (Akorkaro);
तेलगू : अकरकरमु (Akarakaramu);
अंग्रेजी : स्पैनिश पेल्लीटोरी (Spanish pellitory) ईत्यादी।

अकरकरा के औषधीय उपयोग
अकरकरा सिरदर्द से राहत दिलाने में बहुत मदद करता है। अकरकरा के फूल को चबाने से जुकाम के कारण होने वाला सिर-दर्द तथा मस़ूड़ों की सूजन तथा दांत का दर्द कम होता है। इसके जड़ और कपूर के चूर्ण का मंजन करने से सब प्रकार के दंत दर्द से राहत मिलती है। इसके सेवन से मुख-दुर्गन्ध व मसूढ़ों की समस्या दूर होती है। अकरकरा की मूल को चबाने से दंतकृमि (दांत में कीड़ा लगना), दांत दर्द आदि दंत रोगों में बहुत लाभ होता है। अकरकरा मूल या अकरकरा-फूल को मुंह में रखकर चूसने से यह कण्ठ को मधुर है।
हिचकी रोकने के लिए यह मदद करता है। सांस संबंधी समस्याओं में अकरकरा का औषधीय गुण काम आता है। सूखी खांसी से निजाद दिलाता है। पेट संबंधी समस्या में लाभ होता है। हृदय संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करने के लिए अकरकरा काम आता है। आमवात (एक प्रकार का गठिया), लकवा तथा नसों की कमजोरी में लाभ होता है। अकरकरा खुजली के सब परेशानियों को कम करने में मदद करता है।
इसके अलावा हकलाना, लकवा, अल्सर, मिर्गी, चेहरे के पक्षाघात, बुखार, स्पर्म काउन्ट बढ़ाने, बुद्धि का विकास, शरीर की शुन्यता और आलस्य जैसी असंख्य बीमारियों में ये काम आता है।

खेती की जानकारी
मूल-रूप से अरब का निवासी होने के कारण इसको मोरक्को अकरकरा भी कहते हैं। भारत के कुछ हिस्सों में इसकी खेती की जाती है। वर्षाऋतु की प्रथम फूहार पड़ते ही इसके छोटे-छोटे पौधे निकलने शुरू हो जाते हैं। इसकी जड़ का स्वाद चरपरा होता है तथा इसको चबाने से गर्मी महसूस होती है व जिह्वा जलने लगती है। अकरकरा की खेती कम मेहनत और अधिक लाभ देने वाली पैदावार हैं। इसकी खेती कर किसान भाई काफी ज्यादा मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
अकरकरा की खेती 6 से 8 महीने की होती है। इसके पौधों को विकास करने के लिए समशीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से मध्य भारत के राज्यों में की जाती है। जिनमे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्य शामिल हैं। इसके पौधों पर तेज़ गर्मी या अधिक सर्दी का प्रभाव देखने को नही मिलता। इसका पौधा जमीन की सतह पर ही गोलाकार रूप में फैलता हैं। जिस पर पत्तियां छोटी छोटी आती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए।

उपयुक्त मिट्टी
अकरकरा की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है। जिसमे काली मिट्टी, लाल मिट्टी, दोमट मिट्टी शामिल है, जबकि जलभराव और भारी मिट्टी वाली भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6-8 के आसपास होना चाहिए।

जलवायु और तापमान
अकरकरा की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती हुई। भारत में इसकी खेती रबी की फसलों के साथ की जाती है। इसके पौधों को धूप की आवश्यकता ज्यादा होती है। इस कारण इसकी खेती छायादार जगहों में नही की जाती। हालांकि छायादार जगहों में इसका पौधा अच्छा विकास करता है। लेकिन छायादार जगहों में पौधे की जड़ें अच्छे से नही बनती जिसके लिए इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती के लिए ज्यादा बारिश की जरूरत नही होती। अकरकरा के पौधों पर तेज़ सर्दी या गर्मी का असर देखने को नही मिलता। इसके पौधे सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर लेते हैं।
इसके पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तक तापमान की जरूरत होती है। उसके बाद इसके पौधे न्यूनतम 15 और अधिकतम 30 तापमान पर अच्छे से विकास कर लेते हैं। इसके पौधों के पकने के दौरान तापमान 35 डिग्री के आसपास होना अच्छा होता है।

खेत की तैयारी
अकरकरा की खेती के खेत की मिट्टी भुरभुरी और नर्म होनी चाहिए। क्योंकि अकरकरा एक कंदवर्गीय फसल हैं। जिसके फल जमीन के अंदर विकास करते हैं। इसलिए इसकी खेती की तैयारी करते वक्त शुरुआत में खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें। उसके बाद खेत में खाद उचित मात्र में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें। खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें। पलेव करने के कुछ दिन बाद जब जमीन की ऊपरी सतह सूखी हुई दिखाई दे तब खेत की फिर से जुताई कर देनी चाहिए। नीचे बताए खाद और उर्वरकों को जमीन की तयारी करते समय खेद में डालना चाहिए।

केंचुए का खाद/ वर्मीकम्पोस्ट: पौधे के लिए पोषक तत्व प्रदान करता है,
नीम की खली : जमीन में उपस्थित किटकों को मारता है,
जिप्सम पाउडर : जमीन को भुरभुरा रखने में मदद करता है, और
ट्रायकोडर्मा फफूंद नाशक पाउडर : जो जमीन में उपस्थित हानिकारक फफूंद को मारने में उपयोगी होता है। 
ये चारों खाद नीचे बताए गए विधि से जमीन तैयार करते समय खेत में फैलाने है।

पौध तैयार करना
अकरकरा के पौधे को बीज और पौधा दोनों रूप में की उगा सकते हैं। इसकी पौध भी नर्सरी में बीज के माध्यम से ही तैयार की जाती है। इसके बीजों को नर्सरी में पौध तैयार करने के लिए जमीन में उगाने पहले गोमूत्र और ट्रायकोडर्मा से उपचारित करना चाहिए। ताकि पौधों को शुरूआती रोगों से बचाया जा सके। बीजों को उपचारित कर उन्हें प्रो-ट्रे में एक महीने पहले लगा दिया जाता है। बीज के तैयार होने के बाद उन्हें उखाड़कर खेत में तैयार की हुई मेड पर लगाया जाता है। एक एकर खेती के लिए 5 किलो बीजों की आवश्यकता होती है जो लगभग रु.4000 प्रति किलो मिलता है।

पौध लगाने का तरीका
अकरकरा की खेती बीज और पौध दोनों तरीके से की जाती है। बीज के रूप में इसकी खेती के लिए लगभग पाँच किलो बीज काफी होता है। इसके बीज को खेत में उगाने से पहले उसे गोमूत्र और ट्रायकोडर्मा से उपचारित कर लेना चाहिए। उपचारित किये बीज को खेत में लगाने के दौरान इसकी रोपाई मेड पर की जाती है। इसके लिए मेड से मेड की दूरी एक फिट के आसपास होनी चाहिए। जबकि मेड पर इसके पौधों को दोनों तरफ 15 सेंटीमीटर की दूरी पर दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए। पौध के रूप में इसके पौधों की रोपाई भी मेड पर ही की जाती है। मेड पर इसके पौधों को 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर ज़िग जैज़ तरीके से लगाना चाहिए। और पौधों की रोपाई के दौरान उन्हें चार से पाँच सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए। पौध की रोपाई हमेशा शाम के समय करना अच्छा होता है। क्योंकि शाम के वक्त की जाने वाली रोपाई से पौधों का अंकुरण अच्छे से होता हैं।

बुवाई का समय
इसके बीज से नर्सरी बनाने का समय अक्टूबर या नवंबर माह है  तथा बीजों से तैयार होने वाले पौधे नवंबर से दिसम्बर में मुख्य जमीन में लगाए जाते है। 

पौधों की सिंचाई
अकरकरा के पौधे को खेत में लगाने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए। ताकि पौधे को अंकुरित होने में किसी परेशानी का सामना नही करना पड़े। अकरकरा के पौधों की पहली सिंचाई करने के बाद बीज के अंकुरित होने तक खेत में नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए शुरुआत में हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। अकरकरा की खेती सर्दियों के मौसम में की जाती है। इस कारण इसके पौधों को अंकुरित होने के बाद कम सिंचाई की जरूरत होती है। इसके पौधों को पककर तैयार होने के लिए 5 से 6 सिंचाई की ही जरूरत होती है। इसके पौधों को अंकुरित होने के बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण 
अकरकरा की खेती में शुरुआत में खरपतवार नियंत्रण काफी अहम होता है। इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से ही करना चाहिए। क्योंकि रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने पर इसके कंदों की गुणवत्ता में कमी देखने को मिलती है। इसके पौधों की पहली गुड़ाई पौध रोपाई के लगभग 20 दिन बाद कर देनी चाहिए। जबकि बाकी की गुड़ाई पहली गुड़ाई के बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में करनी चाहिए। इसके पौधों की तीन गुड़ाई काफी होती है।

रोग और उनकी रोकथाम
अकरकरा की खेती में कोई ख़ास रोग अभी तक देखने को नही मिला है। लेकिन जल भराव की वजह से इसके पौधों में सडन का रोग लग जाता है। जिससे इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुकसान पहुँचता है। इस कारण इसके पौधों में जलभराव की स्थिति उत्पन्न ना होने दे।

पौधों की खुदाई और सफाई
अकरकरा के पौधे खेत में रोपाई के लगभग 5 से 6 महीने बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं। पूर्ण रूप से पके हुए पौधों की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती है, और पौधा सूखने लगता है। इस दौरान इसकी खुदाई कर लेनी चाहिए। इसकी खुदाई गहरी मिट्टी उखाड़ने वाले हलों से करनी चाहिए। इसकी जड़ों की खुदाई करने से पहले पौधे पर बने बीज वाले डंठलों को तोड़कर एकत्रित कर लेना चाहिए। जिनसे प्रति एकड़ डेढ़ से दो क्विंटल तक बीज प्राप्त हो जाते हैं।
जड़ों को उखाड़ने के बाद उन्हें साफ़ कर पौधों से काटकर अलग कर लिया जाता है। जड़ों को अलग करने के बाद उन्हें दो से तीन दिन तक छायादार जगह या हल्की धूप में सूखाकर बोरो में भरकर बाज़ार में बेचा दिया जाता है। इसकी सिंगल जड़ वाली फसल का बाज़ार भाव ज्यादा मिलता है।

पैदावार और लाभ
अकरकरा की प्रति एकड़ फसल से एक बार में तीन से साढ़े तीन क्विंटल तक बीज और 9 से 11 क्विंटल तक जड़ें प्राप्त होती है। इसकी जड़ों का बाज़ार भाव 10 से 20 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है। और इसके बीज का बाज़ार भाव 8 से 10 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है। जिससे किसान भाई एक बार में एक एकड़ से एक लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।

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