Kalonji Farming: कलौंजी की खेती व्यापारिक फसल के तौर पर की जाती है. इसकी बीज बहुत ही ज्यादा लाभकारी होते हैं। विभिन्न जगहों पर इसे कई नामों से जाना जाता है। इसका बीज अत्यंत छोटा होता है। जिसका रंग कला दिखाई देता है। इसके बीज का स्वाद हल्की कड़वाहट लिए तीखा होता है। जिसका इस्तेमाल नान, ब्रैड, केक और आचारों को खुशबूदार बनाने और खट्टापन बढ़ाने के लिए किया जाता है।
सिंचाई प्रबंधन
कलौंजी के पौधों को सामान्य सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई बीजों को खेत में लगाने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए।
दूसरी सिंचाई बीजों के अंकुरित होने तक नमी के आधार पर हल्की सिंचाई देनी चाहिए। पौधे के विकास के दौरान 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई की आवश्यकता परती है।
कलौंजी (मंगरैला) की खेती
उर्वरक की मात्रा:- कलौंजी के पौधे को उर्वरक की आवश्यकता बाकी फसलों की तरह ही होती है। प्रारंभ में खेत की जुताई के वक्त लगभग 10 से 12 गाडी सरी हुई गोबर की खाद तथा रासायनिक खाद के रूप में दो से तीन बोर एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर को खेत में आखिरी जुताई के वक्त देनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण नीदाई-गुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद देनी चाहिए। दो से तीन गुड़ाई इसकी खेती के लिय पर्याप्त है, पहली गुड़ाई के बाद बाकी की गुड़ाई 15 दिन के अंतराल में करना उत्तम होता है।
रोग एवं रोकथाम
कटवा इल्ली – यह रोग पौधे के अंकुरण के बाद किसी भी अवस्था में लग सकता है। इस रोग से पौधा बहुत जल्द खराब हो जाता है। रोग का प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरोपाइरीफास की उचित मात्रा का छिड़काव जड़ो में करें।
जड़ गलन – यह रोग जल जमाव के कारण होता है। रोकथाम के लिए पौधों में जल जमाव की स्थिति ना होने दे।
पौधों की कटाई
सामान्यतः कलौंजी रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद पक-कर तैयार हो जाते हैं । पौधों को जड़ सहित उखाड़ने के बाद उसे कुछ दिन तेज़ धूप में सूखा देते हैं। फिर लकड़ियों से पीट कर दानो को निकाल लिया जाता है।
पैदावार और लाभ
कलौंजी की औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पाई जाती है। जिसका भाव 20 हज़ार प्रति क्विंटल के आस-पास पाया जाता है।
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