Moong cultivation: मूंग खरीफ मौसम में कम अवधि की एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। मूंग की फसल खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसमों में लगाई जाती है। उन्नत किस्मों और उत्पादन की नई तकनीकी एवं फसल पद्धतियों को अपनाकर उपज को 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है।
जलवायु
मूंग की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में की जाती है। अधिक बारिश मूंग की फसल के लिए हानिकारक है। लगभग 60-76 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इस फसल के लिए उच्च तापमान तथा फली पकने के समय शुष्क मौसम तथा उच्च तापमान लाभदायक होता है।
भूमि का चयन एवं तैयारी
मूंग की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। रेतीली दोमट से दोमट भूमि जिसमें जल निकासी अच्छी हो और जिसका पी.एच. मान 7-8 उपयुक्त है। मिट्टी में फास्फोरस की मात्रा अधिक होना लाभदायक होता है। जून के अंतिम पखवाड़े तक दो या तीन बार जुताई करके खेत को बुआई के लिए तैयार कर लेना चाहिए। दूसरी बुआई से पहले 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद खेत में मिला देनी चाहिए।
उन्नत किस्में
जवाहर 721, जवाहर मूंग 70, के-851, पूसा 16, एम.एल.-131, पी.डी.एम. - 11, एम.एल.-337, बी.एम. 4, एच.यू. एन 1, टार्म-1 आदि प्रमुख मुंग की उन्नत किस्में।
बीज मात्रा एवं उपचार
प्रमाणित बीज का चयन करें। खरीफ सीजन में मूंग का बीज 15-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होता है। जायद में बीज दर 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। प्रति किलोग्राम बीज पर 3 ग्राम थमरस या 1 ग्राम कार्बेडाजिम कवकनाशी से बीजोपचार करने से बीज एवं मिट्टी जनित रोगों से फसल की रक्षा होती है। इसके बाद बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। 5 ग्राम राइजोबियम कल्चर को प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित कर छाया में सुखाकर तुरन्त बो दें। कल्चर के उपचार से पौधे की जड़ों पर अधिक गांठें बन जाती हैं। जिससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया अधिक होती है।
बुवाई का समय और तरीका
बुवाई का उचित समय उच्च उत्पादन का मुख्य कारक है। जायद में बुआई फरवरी के दूसरे-तीसरे सप्ताह से मार्च के दूसरे सप्ताह तक करनी चाहिए। नारी दूफान या तीफान के साथ कतारों में बुवाई करनी चाहिए। कतारों के बीच 30 सेमी. तथा पौधे से पौधे के बीच 10 सेमी. और 4-5 सेमी. की गहराई पर बुआई करें। जायद में कतारों की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखा जाना चाहिए ताकि खरीफ की तुलना में प्रति हेक्टेयर अधिक संख्या में पौधे प्राप्त हों।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा एवं देने की विधि
मूंग के लिए 20 किग्रा नत्रजन, 50 किग्रा फास्फोरस (अर्थात् 100 किग्रा डीएपी प्रति हेक्टेयर) बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए। गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में गंधक उर्वरक 20 किग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। यदि मिट्टी में पोटाश की कमी हो तो बिजाई के समय 20 किग्रा पोटाश प्रति हे0 की दर से डालें।
सिंचाई एवं जल निकासी
जायद में मूंग की फसल को खरीफ की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है। 3-4 सिंचाई 10 से 15 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए और अधिक गर्मी होने पर 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
निराई गुड़ाई
पहली गोडाई बुवाई के समय 20-25 दिन के अन्तराल पर तथा दूसरी गोडाई 30-40 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। खेत में 2-3 बार कुरपा चलाकर खेत की खरपतवार रहित रखें। खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशक दवा जैसे फ्लूक्लोरेलिन 45 ई.सी. या पेंडीमिथालिन का भी 2.5 लीटर प्रति हे0 की दर से उपयोग किया जा सकता है। बासालीन 2 ली/हें. के मान से 600 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी पूर्व खेत में नमी युक्त छिड़काव करें तथा दवा को मिट्टी में मिलायें।
पौध संरक्षण
कीट: फसल की प्रारंभिक अवस्था में तना मक्खी, फली भृंग, हरी इल्ली, सफेद मक्खी, एफिड, हरा तेला, थिप्स आदि का आक्रमण होता है।
फली भृंग:- यह कीट पत्तियों को कुतरकर गोलाकार छिद्र बना लेते हैं। इसके नियंत्रण के लिए क्विनलफॉस 1:5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा/हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
रस चूषक कीट :- फसल पर हरी फुदका, सफेद मक्खी, माहू तथा थ्रिप्स का आक्रमण होता है। ये सभी कीट पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और उपज कम हो जाती है। इसके नियंत्रण के लिए डाइमेथेट 30 ई.सी. 0.03 प्रति, या इमिडाक्लोप्रिड 150 मिली। 500 लीटर प्रति हेक्टेयर। पानी में घोल का छिड़काव करें।
रोग
मेक्रोफिमिना : मेक्रोफिमिना (Macrophymina) और सरकोस्पोरा (Cercospora) कवक द्वारा पत्तियों के निचले हिस्से पर विभिन्न आकार के भूरे भूरे धब्बे बनते हैं। इनके रोकथाम के लिए 0.5 कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या डाइथेन एम. 45 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें।
चूर्णिल आसिता रोग (भभूतिया) (पाउडरी मिल्ड्स):- यह रोग अगस्त के प्रथम सप्ताह में प्रकट होता है तथा 30-40 दिन की फसल में पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है। इस रोग का प्रकोप पछेती फसल पर अधिक होता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए 0.1 प्रतिशत यानि 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। फसल की 30-40 दिन की अवस्था पर छिड़काव करना बहुत लाभकारी पाया गया है।
पीला मोजेक वायरस :- यह सफेद मक्खी द्वारा फैलने वाला विषाणुजनित रोग है। इसमें पत्तियाँ और फलियाँ पीली पड़ जाती हैं। इसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए डाइमेथेट 30 ईसी 750 मिली या इमिडाक्लोप्रिड 150 मिली प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। पीली मोजेक विषाणु प्रतिरोधी किस्में लगाएं।
कटाई एवं गहाई
जब फली काली होकर पक जाए तब उसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। इन फलियों को सुखाकर कूट लेना चाहिए या थ्रेसिंग कर लेना चाहिए।